क्या यह पूरे न्यायालय का दृष्टिकोण है? इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों से प्रशांत भूषण अवमानना मामले पर विचार करने का आग्रह किया

LiveLaw News Network

20 Aug 2020 2:29 AM GMT

  • क्या यह पूरे न्यायालय का दृष्टिकोण है? इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों से प्रशांत भूषण अवमानना मामले पर विचार करने का आग्रह किया

    वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि 3-जजों की बेंच, जिसकी अध्यक्षता जस्टिस अरुण मिश्रा ने की है, उसके फैसले पर पुनर्विचार किया जाए, जिसमें अधिवक्ता प्रशांत भूषण को दो ट्वीट्स के कारण अदालत की अवमानना ​​का दोषी करार दिया गया है। जयसिंह ने मामले की सुनवाई के लिए 32 न्यायाधीशों की एक पूर्ण अदालत की मांग की है।

    उन्होंने यह टिप्पणी भारतीय-अमेरिकियों द्वारा आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कीनोट स्पीच के दौरान की है। भारतीय-अमेरिकियों के समूह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भूषण के साथ एकजुटता का प्रदर्शन किया है और उनके खिलाफ अवमानना ​​के आरोपों पर रोष प्रकट किया है।

    उल्‍लेखनीय है कि 14 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई, और कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के बारे में प्रशांत भूषण द्वारा किए गए दो ट्वीटों के मामले अवमानना का दोषी ठहराया। बेंच उन्हें 20 अगस्त को सजा सुनाएगी।

    इस संदर्भ में, जयसिंह ने कहा,

    "अगर मैं अपने मन की बात कहती हूं, इसलिए मेरा अस्त‌ित्व है। लेकिन, अगर यह अधिकार खतरे में पड़ता है, तो मेरी अस्‍त‌ित्व भी नहीं बच पाएगा।"

    उन्होंने कहा कि एक अदालत, जिसके पास जनहित याचिका की सुनवाई की शक्ति है, वह असंतोष के स्वरों को सुनने से खुद को रोक नहीं सकती। उन्होंने कहा, ''आधुनिक उदारवादी लोकतंत्रों में, एक स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता है, और एक स्वतंत्र न्यायपालिका को पारदर्शी होने की आवश्यकता है।"

    जयसिंह ने कहा, "हमारा कर्तव्य है कि यदि हम न्यायालय को उसके रास्ते से भटकते हुए देखें तो बोलें।"

    जयसिंह ने आपराधिक अवमानना ​​के अपराध के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया।

    उन्होंने कहा,

    "हमारा नागरिक के रूप में एक कर्तव्य है कि हम जीवंत आलोचना करें। लेकिन, बोलने की आज़ादी की नींव को झकझोर दिया गया है। हमें स्वतंत्र रूप से बोलने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है? सत्ता के समक्ष सत्य।"

    उन्होंने कहा कि न्याय देने का सुप्रीम कोर्ट मुख्य कार्य सभी के लिए है, और वो बड़े पैमाने पर जनता के प्रति जवाबदेह होना है। यह जवाबदेही अवमानना ​​के भय के बिना, स्वतंत्र भाषण के साथ ही इस्तेमाल की जा सकती है।



    उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जनता का सहयोगी है और एक भारतीय नागरिक का सार्वजनिक क्षेत्राधिकार सार्वजनिक है इसलिए, नागरिकों को असहमति का अधिकार है।

    जयसिंह ने फैसले की विसंगतियों पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, अदालत निष्पक्ष आलोचना के पहलू को संबोधित करने में विफल रही है और यह दिखाने में विफल रही कि ट्वीट न्याय में हस्तक्षेप कैसे हो सकता है। उन्होंने फैसले के उस बयान का मुद्दा भी उठाया, जिसमें कहा गया था कि न्यायालय पर से जनता का विश्वास हिल जाएगा।

    जयसिंह ने कहा, "कहा गया है कि जनता का विश्वास न्यायालय पर से हिल जाएगा। क्या जनता से सलाह ली गई थी? या क्या तीन न्यायाधीश ही जनता हैं?"

    उन्होंने कहा कि कई संपादकीय और फैसले के खिलाफ आए बयानों ने से स्पष्ट है कि लोग बोलने की आजादी के पक्षधर हैं।

    जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से फैसले पर पुनर्विचार करने के साथ अपना भाषण समाप्त किया।

    उन्होंने कहा, "मैं सुप्रीम कोर्ट के 32 जजों की एक पूर्ण अदालत द्वारा फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील करती हूं। क्या यह पूरे न्यायालय का दृष्टिकोण है? हम यह जानना चाहते हैं। मुझे अपनी बात कहने का मौका देने के लिए धन्यवाद।"


    प्रशांत भूषण के मामले में ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस कुरियन जोसेफ ने एक बयान जारी किया है, जिसमें कहा गया कि सुओ मोटो अवमानना ​​मामलों में अंतर-न्यायालयीय अपील की सुनवाई प्रदान की जानी चाहिए।

    उन्होंने सुझाव दिया कि "न्याय के गर्भपात की दूरस्‍थ संभावना से बचने के लिए अंतर-न्यायालयीय अपील की सुरक्षा होनी चाहिए।"

    उन्होंने कहा कि जस्टिस सीएस कर्णन के खिलाफ अवमानना मुकदमे ​​का फैसला 7 जजों की पीठ द्वारा पारित किया गया था।

    उन्होंने यह भी कहा कि "इस प्रकार के महत्वपूर्ण मामलों को प्रत्यक्ष सुनवाई में विस्तार से सुना जाना चाहिए, जहां व्यापक चर्चा और व्यापक भागीदारी की गुंजाइश है।"

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