क्या बैंक अकाउंट धोखाधड़ी के रूप में बंद करने से पहले उधारकर्ता की व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है? सुप्रीम कोर्ट ने RBI से जवाब मांगा

Shahadat

5 Nov 2025 1:24 PM IST

  • क्या बैंक अकाउंट धोखाधड़ी के रूप में बंद करने से पहले उधारकर्ता की व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है? सुप्रीम कोर्ट ने RBI से जवाब मांगा

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या बैंक कानूनी रूप से अकाउंट होल्डर्स के अकाउंट को "धोखाधड़ी" के रूप में वर्गीकृत या बंद करने से पहले उनकी व्यक्तिगत सुनवाई करने के लिए बाध्य हैं। इस मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से जवाब मांगा।

    जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई, जो भारतीय स्टेट बैंक बनाम राजेश अग्रवाल 2023 लाइवलॉ (SC) 243 के 2023 के फैसले पर आधारित था। इस फैसले में अकाउंट धोखाधड़ी के रूप में बंद करने से पहले उधारकर्ता के सुनवाई के अधिकार को मान्यता दी गई थी।

    SBI का तर्क: व्यक्तिगत सुनवाई हमेशा संभव नहीं

    SBI की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि राजेश अग्रवाल मामले के फैसले की व्याख्या इस अर्थ में नहीं की जानी चाहिए कि हर मामले में मौखिक या व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है।

    उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी परिस्थितियां हो सकती हैं, जहां इस तरह की सुनवाई करने से अकाउंट को धोखाधड़ी वाला घोषित करने का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा, खासकर जब सार्वजनिक धन की सुरक्षा के लिए तत्काल निवारक उपायों की आवश्यकता हो।

    मेहता ने दलील दी कि बैंक को लचीलापन दिया जाना चाहिए। ऐसे उदाहरणों का हवाला दिया, जहां कार्रवाई में देरी से अकाउंट-होल्डर धन का दुरुपयोग कर सकता है या सबूत नष्ट कर सकता है। उन्होंने इस दृष्टिकोण के समर्थन में पहले के मामलों का हवाला दिया कि कुछ परिस्थितियों में लिखित अभ्यावेदन या कारण बताओ नोटिस के जवाब पर्याप्त हो सकते हैं।

    ऋणी का पक्ष: सुनवाई का अधिकार एक स्थापित कानून

    दूसरी ओर, प्रतिवादी कंपनी अमित आयरन प्राइवेट लिमिटेड का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर ने तर्क दिया कि राजेश अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऋणी सुनवाई के सार्थक अवसर के हकदार हैं, जिसमें उनके अकाउंट को धोखाधड़ी वाला घोषित किए जाने से पहले व्यक्तिगत या मौखिक सुनवाई का अधिकार भी शामिल है।

    परमेश्वर ने ज़ोर देकर कहा कि केवल कारण बताओ नोटिस का लिखित जवाब मांगना अपर्याप्त है, क्योंकि धोखाधड़ी वाला अकाउंट घोषित किए जाने के परिणाम "विनाशकारी" होते हैं, जिसमें वर्षों तक बैंकिंग सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित रहना भी शामिल है।

    तर्कों पर ध्यान देते हुए खंडपीठ ने निर्देश दिया कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को भी यह देखते हुए प्रतिवादी पक्ष बनाया जाए कि बैंकों के सामने आने वाली नियामकीय रूपरेखा और व्यावहारिक कठिनाइयों को समझने में न्यायालय की सहायता के लिए केंद्रीय बैंक की उपस्थिति आवश्यक है।

    कोर्ट ने दोनों पक्षों को संबंधित मामले के कानून के साथ लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करने और उन असाधारण परिस्थितियों को निर्दिष्ट करने का भी निर्देश दिया, जहां बैंकों का मानना ​​है कि व्यक्तिगत सुनवाई की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

    इस मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर, 2025 को होगी, जब न्यायालय ने कहा कि वह सुनवाई समाप्त कर देगा।

    राजेश अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RBI के 2016 के मास्टर निर्देशों के तहत अकाउंट-होल्डर के अकाउंट को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। राजेश अग्रवाल मामले में फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में एक आदेश पारित कर स्पष्ट किया कि उधारकर्ताओं को व्यक्तिगत/मौखिक रूप से सुनने की आवश्यकता नहीं है।

    Case : STATE BANK OF INDIA v. AMIT IRON PRIVATE LIMITED & ANR. | SLP(c) 20618-20619/2025

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