इंटरनेशनल कोर्ट ने म्यांमार को रोहिंग्याओं का नरसंहार रोकने के उपाय करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

23 Jan 2020 4:52 PM IST

  • इंटरनेशनल कोर्ट ने म्यांमार को रोहिंग्याओं का नरसंहार रोकने के उपाय करने का निर्देश दिया

    इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने गुरुवार को कहा कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ किए गए नरसंहार के आरोपों पर फैसला देने के लिए वह प्रथम दृष्टया अधिकार क्षेत्र है।

    ICJ ने यह बात म्यांमार के खिलाफ गाम्बिया द्वारा 1948 के जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत लाए गए मामले में कही है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी स्टेट पार्टी कन्वेंशन के तहत क्षेत्राधिकार का आह्वान कर सकता है, भले ही वह कथित नरसंहार के कृत्यों से विशेष रूप से प्रभावित न हो। ऐसा जेनोसाइड कन्वेंशन के दायित्वों की सार्वभौमिक प्रकृति के कारण है।

    ICJ के अध्यक्ष अब्दुलकवी अहमद यूसुफ ने फैसले को पढ़ते हुए कहा- "नरसंहार एक पूरे समूह के जीवन के अधिकार से वंचित करना है। जीवन के अधिकार की ऐसी वंचना मानव चेतना को सदमे में डाल देती है।"

    ICJ में गाम्बिया की अपील में राज्य प्रायोजित हिंसा की कथित कार्रवाई के बाद लगभग 730,000 रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रवासन के मुद्दे को उठाया गया है। म्यांमार की स्टेट काउंसलर और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सू की कोर्ट की कार्यवाहियों में शामिल हुई थीं और उन्होंने सरकार का समर्थन किया।

    17 सदस्यीय पीठ, जिसमें म्यांमार और गाम्बिया के एक-एक न्यायाधीश शामिल हैं, ने सर्वसम्मति से यह माना कि रोहिंग्या कन्वेंशन के तहत एक "संरक्षित समूह" थे।

    कोर्ट ने फैक्ट फाइं‌डिंग रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि प्राइमा दृष्टया ऐसी सामग्री उपलब्ध थीं, जिसमें दिखाया गया था कि रोहिंग्याओं ने योजनाबद्घ हिंसा और उत्पीड़न का सामना किया।

    अक्टूबर 2016 के बाद से रोहिंग्या हिंसा का शिकार हैं, जिससे कन्वेंशन के तहत संरक्षित समूह के रूप उनके अधिकार प्रभावित हुए थे।

    कोर्ट ने फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के हवाले से उल्लेख किया कि इस तथ्य के बावजूद कि रोहिंग्या देश की आजादी से पहले से म्यांमार में रह रहे थे, 1982 के नागरिकता कानून ने उन्हें प्रभावी रूप से खारिज कर दिया।

    कोर्ट ने पाया कि म्यांमार में बचे लगभग 600,000 रोहिंग्या बेहद असुर‌क्षित हैं और सेना के हाथों हिंसा का शिकार हो सकते हैं।

    कोर्ट ने कहा कि जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत तय कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए, म्यांमार को रोहिंग्या का नरसंहार रोकने के लिए हर तरह के उपाय करने चाहिए।

    म्यांमार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी सेना और राज्य का कोई भी सशस्त्र समूह रोहिंग्या का नरसंहार न करे, नरसंहार की षडयंत्र में और नरसंहार के ‌लिए सार्वजनिक उकसावे की कार्रवाई न करे।

    म्यांमार को रोहिंग्याओं के खिलाफ कथित नरसंहारों के सबूतों को नष्ट करने की कार्रवाइयों को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। म्यांमार को आईसीजे द्वारा दिए गए आदेश के तहत तय किए गए अनंतिम उपायों के अनुपालन के संबंध में आवधिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि ये अनंतिम उपाय हैं और इसे मामले पर अंतिम राय नहीं माना जा सकता है।

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