न्यायपालिका की स्थिति के बारे में चर्चा को खत्म करने के बजाय, अवमानना के फैसले ने बहस को तेज़ कियाः प्रशांत भूषण

LiveLaw News Network

7 Sept 2020 3:14 PM IST

  • न्यायपालिका की स्थिति के बारे में चर्चा को खत्म करने के बजाय, अवमानना के फैसले ने बहस को तेज़ कियाः प्रशांत भूषण

    इंडियन एसोसिएशन ऑफ लॉयर्स (IAL) के केरल चैप्टर द्वारा आयोजित एक वेबिनार में बोलते हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके खिलाफ हालिया अवमानना ​​मामला न्यायपालिका के कामकाज के बारे में खुद को व्यक्त करने की इच्छा रखने वालों को चुप कराने का एक प्रयास था।

    हालांकि, उन्होंने कहा, फैसले के ख‌िलाफ सार्वजनिक आक्रोश ने यह सुनिश्चित किया है कि उन्हें अवमानना ​​का दोषी मानने के सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष फैसले का विपरीत प्रभाव पड़ा।

    उन्होंने कहा, "एक पुरातन कानून के के जर‌िए मुझे दंडित करने में अदालत की मंशा मुझे चुप कराने की थी और मेरे जैसे अन्य लोगों को चुप कराने की कोशिश थी, जो न्यायपालिका के कामकाज के बारे में स्वतंत्र रूप से बोलना चाहते हैं। हालांकि, सार्वजनिक आक्रोश के कारण, बिलकुल उल्‍टा हो गया लगता है...

    भूषण ने कहा कि न्यायपालिका की स्थिति और सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका के बारे में चर्चा को खत्म करने के बजाय, फैसले ने बहस को तेज किया और इस पर ध्यान केंद्रित किया कि पिछले 6 वर्षों में हमारे लोकतंत्र में क्या हुआ है।

    कार्यक्रम की शुरुआत में, "संवैधानिक लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां" विषय पर अपने मुख्य भाषण में भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बारे में बात की, जिसमें उन्हें अदालत ने दो ट्वीट्स के संबंध में अवमानना ​​का दोषी पाया था। बिनॉय विश्वम, राज्यसभा सांसद (सीपीआई) ने सत्र की अध्यक्षता की और उन्होंने भूषण को "भारतीय न्याय प्रणाली का बहादुर नायक" कहा और कहा कि केरल बार उनके साथ खड़ा है।

    भूषण ने कहा कि जिस ट्वीट पर ध्यान दिया गया, उसमें पिछले 6 वर्षों में भारतीय लोकतंत्र की स्थिति और अंतिम 4 सीजेआई की भूमिका की चर्चा की गई ‌थी।

    उन्होंने कहा, "मैंने कहा कि जब इतिहासकार पीछे देखेंगे, तो वे देखेंगे कि पिछले 6 वर्षों में लोकतंत्र को काफी हद तक नष्ट किया गया और वे इसमें वे पिछले 4 सीजेआई की भूमिका पर ध्यान देंगे। ट्वीट में मेरे मौलिक विचार और विश्वास ही शामिल थे कि पिछले 6 सालों में जो हुआ है कि उसमें सर्वोच्च न्यायालय और मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका क्या रही है। लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को ऐसे विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, बिना इस बात से भयभीत हुए कि उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।"

    2 सितंबर को सेवानिवृत्त हुए, जस्टिस अरुण मिश्रा की न्यायिक विरासत का आकलन करने वाले हालिया लेखों की ओर इशारा करते हुए भूषण ने यह बताने की कोशिश की कि अवमानना ​​मामले का विपरीत प्रभाव कैसे पड़ा। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उन जैसे अन्य आवाजों को शांत करने के बजाय, इस मामले ने लोकतंत्र की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने के और लोगों को स्वतंत्र रूप से बोलने के संकल्प को और मजबूत बनाया।

    संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों की रक्षा में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की चर्चा करते हुए भूषण ने विस्तार से बताया-

    "जब हमने संविधान बनाया, तो जनता को मालिक होना चाहिए था और लोक सेवक को लोगों की सेवा करना था। संविधान ने मौलिक अधिकार दिए। उच्चतम न्यायालय द्वारा जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की ‌विस्‍तारित व्याख्या की गई थी ...

    सुप्रीम कोर्ट का मुख्य कार्य मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना था कि विधायिका और कार्यपालिका संविधान द्वारा उन्हें दी गई शक्ति के दायरे में रहें, न कि केवल एक अपीलीय अदालत के रूप में कार्य करें। संविधान के विरुद्ध कानूनों और कार्यकारी कार्रवाई को रद्द करना सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका थी।

    सर्वोच्च न्यायालय को कार्यकारी को संवैधानिक कर्तव्य निभाने का आदेश देने की भूमिका दी गई थी। ये महत्वपूर्ण भूमिकाएं हैं। "

    यह कहते हुए, भूषण ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए बनाई गई प्रत्येक संस्था पर हमला किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहली बार चुनाव आयोग और कैग जैसे संस्थानों का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर हमला किया गया है और ज्यादातर मुख्यधारा के मीडिया को सरकार ने नियंत्रित कर लिया है।

    "आज भी हम जो बिना औपचारिक आपातकाल के देख रहे हैं, वह किसी आपातकाल के दौरान भी नहीं हुआ है, उससे कहीं अधिक बुरा है। क्योंकि आज हमारे सभी मौलिक अधिकारों पर राज्य द्वारा हमले किए जा रहे हैं। समानता के अधिकार पर बार-बार हमला किया जाता है ... कानून बनाये जाते हैं और पुलिस को यह सुनिश्चित करने के लिए मजबूर किया जाता है, अल्पसंख्यकों, मुसलमानों और दलितों को कानून के समक्ष समानता न प्राप्त हो, यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत एक हिंदू राष्ट्र बन जाए, जहां हिंदुओं और कुछ अन्य धर्मों को वरीयता दी जाए, जबकि मुस्लिमों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया जाए।

    अनुच्छेद 19 के अधिकारों पर हमला हो रहा है। सरकार के खिलाफ कुछ भी कहने से सड़कों पर पिटाई होती है, जिसे पुलिस असहाय होकर देखती देखती रहती है... न केवल सड़कों पर, बल्कि सोशल मीडिया पर भी एक लिंच मॉब है ... मुख्यधारा के मीडिया के बड़ा हिस्सा पूरी तरह से सरकार के अधीन है।

    हम देखते हैं कि उन लोगों के खिलाफ देशद्रोह कानून का इस्तेमाल हो रहा है, जो उनके खिलाफ बोलते हैं। अब मेरे जैसे लोगों के खिलाफ अवमानना ​​कानून का उपयोग भी हो रहा है।"

    कार्यकर्ताओं और विरोध प्रदर्शनों के बारे में बोलते हुए, भूषण ने कहा कि जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता पर भी 'हमला' किया जा रहा है, यूएपीए जैसे कठोर कानूनों का उपयोग करके कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार, परेशान और भयभीत किया जा रहा है। उनका उत्‍पीड़न किया जा रहा है।

    उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक सोच और आलोचनात्मक दृष्टि को नष्ट करने के लिए शिक्षण संस्थानों पर हमला किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों में अयोग्य कुलपति नियुक्त किए जा रहे हैं, जिनकी एकमात्र योग्यता यह है कि वे या तो आरएसएस से हैं या वे भाजपा के प्रति निष्ठा रखते हैं।

    भूषण ने मुख्यधारा की मीडिया की स्थिति पर भी विस्तार से चर्चा की, जो झूठी सूचनाओं, घृणित सूचनाओं, घृणित झूठे समाचारों को फैलाने और वास्तविक मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मीडिया कवरेज और अभिनेता रिया चक्रवर्ती की जांच का हवाला देकर इस बात की पुष्टि की।

    "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मीडिया सरकार के नियंत्रण में है ... पिछले कुछ महीनों से हम सुशांत सिंह राजपूत की मौत की कवरेज कई चैनलों पर देख रहे हैं जैसे कि यह देश का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। ' एक आपराधी के रूप में रिया चक्रवर्ती को चित्रित करने के लिए बकवास फैलाई जा रही है ...

    यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि लोगों को यह न समझ पाएं कि क्या सही है और क्या गलत है। इस प्रकार आलोचनात्मक दृष्टि और वैज्ञानिक सोच पर हमला करने का एक ठोस प्रयास किया जा रहा है। न केवल यह सरकार द्वारा किया जा रहा है, बल्कि सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया द्वारा भी किया जा रहा है।"

    प्रशांत भूषण ने कहा कि, हालांकि सबसे गंभीर हमला न्यायपालिका पर हुआ है। उन्होंने विस्तार से बताया कि वे क्यों मानते हैं कि पिछले 6 वर्षों में देशा में लोकतंत्र नष्ट किया गया है और सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी रक्षा करने में अपनी भूमिका नहीं निभाई है।

    उन्होंने बताया कि कई ऐसे मामले थे जिनमें तत्‍काल सुनवाई की आवश्यकता थी, लेकिन शीर्ष न्यायालय द्वारा उन्हें लंबित रखा गया और जिन महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की गई थी उन पर संदेहास्पद कार्रवाई की गई।

    भूषण ने कहा कि कश्मीर में इंटरनेट बंद करने, धारा 370 को खत्म करने, हैबियस कॉर्पस की दलीलों के साथ-साथ नागरिकता संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के मामले, जिसे 9 महीने से अधिक समय से लंबित रखा गया है, में कोर्ट नि‌ष्‍क्रिय रही है।

    जिन मामलों में कार्रवाई की गई है, उनमें अयोध्या भूमि विवाद मामला, बिड़ला-सहारा मामला, राफेल सौदे के साथ-साथ हरेन पंड्या और न्यायाधीश लोया की मौत का मामला शामिल था।

    "9 महीने से अधिक समय हो गया है, लेकिन सीएए याचिकाओं पर सुनवाई नहीं हो रही है। वहां निष्क्रियता है, और जहां भी कार्रवाई है ...

    अयोध्या फैसले में, उन्हीं लोगों को जिन्होंने मस्जिद ढहा दिया था और उन पर मुकदमा चल रहा है, उन्हें जमीन का प्रभार दिया गया ... बिड़ला-सहारा मामले में, कोर्ट का कहना है कि बड़े लोगों को कमजोर कागजों के आधार पर जांच की जरूरत नहीं है, जबकि भीमा कोरेगांव मामले में गढ़े हुए सबूतों के आधार पर भी जांच आगे बढ़ सकती है ?!

    मामला दर मामला, हमने देखा है कि उच्चतम न्यायालय भ्रष्टाचार को रोकने में नाकाम रहा है, संदिग्ध हत्याओं में जांच का आदेश देने में विफल रहा है..."

    भूषण ने न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर भी चिंताा जाहिर की। उन्होंने सरकार पर विपक्ष को परेशान करने, मीडिया को सरकार के अधीन लाने, और व्यवसायियों के साथ जबरदस्ती करने के लिए जांच एजेंसियों के उपयोग करने के आरोप भी लगाए।

    उन्होंने न्यायाधीशों को प्रभावित करने के लिए एजेंसियों का उपयोग करने की आशंका भी जाह‌िर की। उन्होंने कहा, "एक भावना है कि एजेंसियों को जजों को लाइन पर लाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एक गंभीर मामला है।"

    न्यायाधीशों की आचार संहिता के बारे में बोलते हुए, भूषण ने कहा कि न्यायाधीशों को राजनेताओं के साथ तब तक मेलजोल न‌हीं करना चाहिए जब तक कि वे व्यक्तिगत मित्र नहीं हैं, और यदि वे करीबी दोस्त हैं, तो न्यायाधीश को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा, जस्ट‌िस अरुण मिश्रा ने भाजपा नेताओं को अपने भतीजे की शादी में अपने आवास पर बुलाया, जबकि बिड़ला सहारा मामला उन्हीं के पास लंबित था। शिवराज सिंह, जिनके बारे में कहा जाता था कि बरामद सहारा डायरी के हिसाब से उन्हें 10 करोड़ रुपये मिले थे, मेहमानों में से एक थे। जस्ट‌िस मिश्रा ने आखिरकार मामले की सुनवाई की और जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया।

    "जस्टिस मिश्रा के करियर के पोस्टमार्टम में, कई टिप्पणीकारों ने बताया कि उन्हें कई महत्वपूर्ण मामले दिए गए थे। लगातार मुख्य न्यायाधीशों ने उन्हें मामले दिए। यही कारण है कि 4 न्यायाधीशों ने उस अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया, जब जज लोया का केस उन्हें दिया गया था। वस्तुतः हर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में, यह बताया गया है कि जस्ट‌िस मिश्रा ने सरकार के अनुसार काम किया।"

    इस समस्या पर जोर देते हुए, भूषण ने कहा कि न्यायपालिका में यह सुनिश्चित करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी कि जिन न्यायाधीशों को नियुक्त किया गया है, उनके पास संविधान के मूल्यों के साथ मेल खाते मूल्य हैं।



    यह कहते हुए कि "न्यायिक नियुक्तियां आज न्यायपालिका की बहुत बड़ी समस्या है, नियुक्तियों में कोई पारदर्शिता नहीं है", भूषण ने न्यायिक सुधार पर जोर देते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि न्यायपालिका में उचित, स्वतंत्र न्यायाधीश नियुक्त किए जाएं।

    न्यायिक सुधारों के लिए एक अभियान का आह्वान करते हुए, भूषण ने आग्रह किया कि वकीलों को इस तरह के अभियान में सबसे आगे होना चाहिए।

    "हमें यह जांचना चाहिए कि पिछले कुछ वर्षों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्यों ध्वस्त हो गई है ... हमें न्यायाधीशों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों की जांच करने के लिए न्यायिक शिकायत आयोग की भी आवश्यकता है ...

    हमें एकजुट होकर अपने गणतंत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए एक अभियान शुरू करना चाहिए। हमारा गणतंत्र..गंभीर खतरे में है।"

    भूषण ने चेतावनी दी कि लोकतंत्र और साथ ही हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए संस्थान गंभीर खतरे में हैं। उन्होंने अपील की-

    "हमारा गणतंत्र अभूतपूर्व खतरे में है। हमारा जो कुछ भी मूल्य है वह दांव पर है। हमें अपने गणराज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए असाधारण प्रयास करने होंगे। यदि हम प्रयास नहीं करेंगे तो हम अपना सब कुछ खो देंगे। हम सब हार जाएंगे। यह देश नष्ट हो जाएगा और हमारा गणतंत्र गर्त में चला जाएगा। ''

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