Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पार्टनरशिप फर्जी न हो तो किराये की संपत्ति पर की गई साझेदारी 'किराये की संपत्त‌ि को किराये पर देने' जैसा नहीं

LiveLaw News Network
8 Jan 2020 10:18 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पार्टनरशिप फर्जी न हो तो किराये की संपत्ति पर की गई साझेदारी किराये की संपत्त‌ि को किराये पर देने जैसा नहीं
x

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर पार्टनरश‌िप असली है तो किरायेदार द्वारा अपने पार्टनर को व्यवसाय या पेशे में शामिल करना किसी किराये की संपत्ति को दोबारा किराये पर देने जैसा नहीं है।

ए महालक्ष्मी बनाम बाला वेंकटरम (डी) में के मामले में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ, जिसमें बेदखली के आदेश को रद्द कर दिया गया था, अपील की अनुमति देते हुए जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि यदि इस तरह की साझेदारी का नकली उद्देश्य व्यवसाय या पेशा चलाना जबकि असली उद्देश्य किसी किराये के परिसर को ऐसे व्यक्ति को दोबारा किराये पर देना है, जिसे व्यवसाय में पार्टनर के रूप में दिखाया जा रहा है तो ये ऐसी गतिविध‌ि को किराये की संप‌त्त‌ि को दोबरा किराये पर देने के बराबर है।

पीठ ने कहा कि किसी किराये की संपत्ति को दोबरा किराये पर देने का मतलब किसी संपत्त‌ि के उपयोग के एक्सक्लूसिव अध‌िकार को तीसरे पक्ष को हस्तांतरित कर देना है।

किराये की सपत्त‌ि को दोबारा किराये पर देने के लिए कानूनी कब्जे में हिस्सेदारी होनी चाहिए, मतलब कानूनी कब्जे में किसी को शामिल करने या किसी को निकालने का अधिकार होना चाहिए। कोर्ट ने कहाः

मकान मालिक की लिख‌ित सहमति के बिना किराये की संपत्त‌ि को दोबारा किराये पर देने, संपत्ति के पूरे या किसी भी हिस्से का कब्जा देने की अनुमति नहीं है और यदि ऐसा किया जाता है, तो इस अधार पर मकान मालिक किरायेदार को बेदखल कर सकता है।

किराये की संपत्ति किराये पर दी गई है, अगर इस आरोप पर बेदखली की मांग की जाती है तो आरोपी साबित करने की जिम्मेदारी मकान मालिक की ही होती है। जैसा कि इस कोर्ट ने एसोसिएटेड होटल्स ऑफ़ इंडिया लिमिटेड बनाम एसबी सरदार रंजीत सिंह, एआईआर 1968 एससी 933 ‌के मामले में कहा है कि अगर मकान मालिक प्रथम दृष्टया ये दिखाता है कि संप‌त्ति पर तीसरे पक्ष एक्सक्लुसिव कब्जा है, तो फिर किरायेदार की जिम्मेदारी होती है कि वो आरोपों को गलत सबित करे।"

पीठ ने सेलिना कोएल्हो परेरा बनाम उल्हास महाबलेश्वर खोलकर, (2010) 1 एससीसी 217 के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें निम्नलिखित सिद्धांत निर्धारित किए गए थे:

रेंट कंट्रोल कानूनों के तहत बेदखली के आधार के रूप में किराये की संपत्त‌ि को दोबारा किराये पर दिए जाने का आरोप साबित करने के लिए दो अवयवों की स्थापना की जानी चाहिए, (एक) किराये की संपत्त‌ि के कब्जे में हिस्सेदारी या इसके कुछ हिस्से का एक्सक्लूसिव अधिकार किसी तीसरे पक्ष को देना (दो) कि कब्जे में हिस्सेदारी मकान मालिक की सहमति के बिना और मुआवजे या किराए के बदले में की गई है।

एक किरायेदार द्वारा व्यवसाय या पेशे में एक साथी या साझेदारों को खुद शामिल करना संपत्त‌ि को किराये पर देने जैसा नहीं है। हालांकि, यदि इस तरह की साझेदारी का उद्देश्य दिखावटी है और वास्तविक लेनदेन छुपाने के लिए साझेदारी के दस्तावेज बनाए गए हैं तो अदालत किरायेदार द्वारा किए गए लेनदेन की वास्तविक प्रकृति का पता लगाने के लिए साझेदारी के दिखावे को दरकिनार कर सकती है।

इस मामले में, तमिलनाडु बिल्डिंग्स (लीज एंड रेंट कंट्रोल) अधिनियम, 1960 के तहत किरायेदारों के खिलाफ बेदखली की कार्यवाही शुरू की गई थी। रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य की समीक्षा के बाद पीठ ने पाया कि कोई मामले में कोई वास्तविक साझेदारी नहीं की गई है और किरायेदार ने साझेदारी का बहना केवल किराये की प्रॉपर्टी को किराये पर देने के आरोप से बचने के लिए बनाया है।

केस का नाम: ए महालक्ष्मी बनाम बाला वेंकटरम (डी)

केस नं: CA 9443 ऑफ 2019

कोरम: जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह

जजमेंट को पढ़ने / डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Next Story