Indian Telegraph Act | सुप्रीम कोर्ट ने धारा 16(3) के तहत जिला जज के मुआवज़ा आदेश पर वैधानिक अपील स्थापित करने की सिफ़ारिश की
Shahadat
20 Aug 2025 10:38 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 (Indian Telegraph Act) के तहत जिला जज द्वारा बिजली पारेषण लाइनें बिछाने में इस्तेमाल की गई ज़मीन के लिए दिए गए मुआवज़े के ख़िलाफ़ वैधानिक अपील दायर करने पर विचार करने की सिफ़ारिश की।
यह विवाद पारेषण टावरों और ओवरहेड लाइनों के निर्माण से होने वाले नुकसान से संबंधित था, जहां मुआवज़ा भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत तय होता है। अधिनियम के तहत ऐसे विवादों का निपटारा जिला जजों द्वारा किया जाता है, जिनके आदेश 'अंतिम' माने जाते हैं। उन्हें अपील का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। न्यायालय ने इस विधायी कमी पर ध्यान दिया, क्योंकि अपीलीय उपाय का अभाव पक्षकारों को अनुच्छेद 226/227 के तहत रिट अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने के लिए बाध्य करता है, जहां हाईकोर्ट साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकता। इस रिक्तता को दूर करने के लिए न्यायालय ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह जिला जजों द्वारा दिए गए मुआवज़े के निर्णयों के विरुद्ध वैधानिक अपील प्रणाली शुरू करने पर विचार करे, बजाय इसके कि पक्षों को केवल रिट कार्यवाही तक सीमित रखा जाए।
न्यायालय ने कहा,
"उपर्युक्त पृष्ठभूमि में हमारा मानना है कि इन मुद्दों की भारत के विधि आयोग और भारत सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा जांच की जानी चाहिए ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि 1885 के अधिनियम की धारा 16(3) और 16(4) पेट्रोलियम अधिनियम या किसी अन्य समान क़ानून के तहत पारित निर्णयों/आदेशों के विरुद्ध अपील का वैधानिक उपाय प्रदान किया जाना चाहिए या नहीं।"
न्यायालय ने पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया, जिसमें हरियाणा में 400 केवी बिजली पारेषण लाइन द्वारा मार्गाधिकार (ROW) के लिए जिन भूमियों का उपयोग किया गया, उन्हें एक समान मुआवज़ा देने को उचित ठहराया गया।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने ट्रांसमिशन टावरों और ओवरहेड लाइनों के निर्माण से हुए नुकसान से संबंधित विवादों से उत्पन्न अपीलों पर सुनवाई की, जिससे हरियाणा के सोनीपत और झज्जर जिलों में भूमि प्रभावित हुई।
अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट के निर्णय को इस आधार पर चुनौती दी कि मुआवज़ा निर्धारित करते समय हाईकोर्ट ने विभिन्न भूमियों के साथ एक जैसा व्यवहार करने में गलती की, एक गांव (राई, सोनीपत) के लिए कलेक्टर दर पर भरोसा किया और उसे पूरे 100 किलोमीटर क्षेत्र में लागू किया।
हाईकोर्ट का निर्णय रद्द करते हुए जस्टिस बिंदल द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया:
“भूमि का कुछ भाग राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग या अन्य सड़कों के निकट हो सकता है; कुछ आबादी के निकट हो सकता है, जबकि भूमि का कुछ भाग ग्रामीण क्षेत्रों में पड़ता हो सकता है, जहां भूमि का उपयोग केवल कृषि उद्देश्यों के लिए किया जाता है और सड़कों से कोई संपर्क नहीं है। संपूर्ण ट्रांसमिशन कॉरिडोर के लिए एक समान दर लागू करना, भूमि मालिकों के उचित मुआवजे के आकलन के लिए उचित पद्धति नहीं होगी। सुनवाई के समय भूमि मालिकों द्वारा किसी अन्य स्थान पर मुआवजे की मांग करते हुए दायर की गई किसी अन्य याचिका की स्थिति के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। इसके अभाव में हम यह जांचने में असमर्थ हैं कि उसमें कौन सी पद्धति अपनाई गई।”
उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने हाईकोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया और उसे कानून के अनुसार अपीलकर्ता के मामले की पुनः सुनवाई करने का निर्देश दिया।
इसके अलावा, न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की प्रति भारत सरकार के विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग के सचिव को तत्काल भेजे ताकि वैधानिक अपील के समाधान से संबंधित मुद्दे की जांच की जा सके और उचित कदम उठाए जा सकें।
उल्लेखनीय है कि इसी खंडपीठ ने कुछ दिन पहले एक अन्य मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की वर्तमान प्रथा के स्थान पर टैरिफ निर्धारण हेतु प्रमुख बंदरगाह न्यास अधिनियम, 1961 के अंतर्गत गठित प्रमुख बंदरगाहों के लिए टैरिफ प्राधिकरण (TAMP) के आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई हेतु अपीलीय निकाय के रूप में एक्सपर्ट कमेटी के गठन की सिफारिश की थी।
भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम और पेट्रोलियम अधिनियम के अंतर्गत लाए गए मामलों के नामकरण में एकरूपता की आवश्यकता
न्यायालय ने इस निर्णय की एक प्रति हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजने का भी निर्देश दिया ताकि भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम और पेट्रोलियम अधिनियम के अंतर्गत मुआवज़े का मामला दायर करते समय हरियाणा के विभिन्न जिलों में इस्तेमाल की जा रही अलग-अलग नामकरण पद्धति के मुद्दे का समाधान किया जा सके।
अदालत ने कहा,
"1885 अधिनियम की धारा 16(3) में प्रावधान है कि मुआवजे से संबंधित विवाद की स्थिति में जिला जज के समक्ष आवेदन दायर किया जा सकता है। सोनीपत जिले में इस तरह के आवेदन को सिविल मुकदमे के रूप में पंजीकृत और क्रमांकित किया गया, जिसमें निर्णय और डिक्री पारित की गई। जबकि झज्जर जिले में इसे सिविल विविध आवेदन के रूप में पंजीकृत किया गया और केवल निर्णय पारित किया गया। इस प्रकार की कार्यवाहियों के नामकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता है, जो 1885 अधिनियम के तहत अदालत में आ सकती हैं। पेट्रोलियम और खनिज पाइपलाइन (भूमि में उपयोग के अधिकार का अधिग्रहण) अधिनियम, 1962 के तहत कार्यवाहियों में भी एकरूपता लाने की आवश्यकता है।"
Cause Title: KALPATARU POWER TRANSMISSION LTD. (NOW KNOWN AS KALPATARU PROJECTS INTERNATIONAL LTD.) VERSUS VINOD AND ORS. ETC. (and connected cases)

