जेल में बंद महिलाओं को गंभीर पूर्वाग्रहों, कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उनके पुनर्वास को कठिन बनाता है: सीजेआई एनवी रमाना

LiveLaw News Network

16 Sep 2021 11:56 AM GMT

  • जेल में बंद महिलाओं को गंभीर पूर्वाग्रहों, कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उनके पुनर्वास को कठिन बनाता है: सीजेआई एनवी रमाना

    राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) की 32वीं केंद्रीय प्राधिकरण बैठक में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश और पेट्रॉन-इन-चीफ, नालसा जस्टिस एनवी रमाना ने कहा कि समाज में महिला कैदियों को फिर से जोड़ने के लिए कार्यक्रमों और सेवाओं को तैयार करने की आवश्यकता है।

    नालसा के केंद्रीय प्राधिकरण के नव नियुक्त सदस्यों के समक्ष अपने मुख्य भाषण में जस्टिस रमाना ने कहा कि, "अक्सर जेल में बंद महिलाओं को गंभीर पूर्वाग्रहों, कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो उनके पुनर्वास को एक कठिन चुनौती बना देता है।"

    उन्होंने कहा कि, "एक कल्याणकारी राज्य के रूप में, हम महिला कैदियों को ऐसे कार्यक्रम और सेवाएं प्रदान करने के लिए बाध्य हैं, जो उन्हें पुरुषों के समान आधार पर समाज में प्रभावी ढंग से पुन: स्थापित करने में सक्षम बनाती हैं।"

    महिला कैदियों के पुनर्वास पर रिपोर्ट देखने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, सीजेआई ने समाज में महिला कैदियों को दोबारा शामिल करने के लिए कुछ उपायों का सुझाव दिया, जैसे 'शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की गैर-भेदभावपूर्ण उपलब्धता, सम्मानजनक और पारिश्रमिक कार्य'।

    सीजेआई रमाना ने 11 सितंबर को हाल ही में आयोजित लोक अदालत के दौरान देश के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 29.5 लाख से अधिक मामलों का निपटान करने के लिए कानूनी सेवा अधिकारियों को बधाई दी।

    नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस यूयू ललित ने उक्त बैठक की सह-अध्यक्षता की। जस्टिस ललित ने जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे पर प्रकाश डाला और इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।

    उन्होंने यह भी बताया कि चूंकि महामारी के कारण स्कूल बंद थे, किशोर गृहों, अवलोकन गृहों और बाल गृहों में रहने वाले बच्चे अकल्पनीय स्थिति में थे, जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने के लिए केवल एक वीडियो मॉनिटर पर्याप्त नहीं था।

    कानून के छात्रों की प्रतिभा और सेवाओं का उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि कानून के छात्र देश भर में प्रत्येक जिले के तीन या चार तालुकों को अपनाकर इस अंतर को पाट सकते हैं और समाज के जमीनी स्तर तक पहुंच सकते हैं।

    बैठक में भारत के मुख्य न्यायाधीश, कार्यकारी अध्यक्ष, नालसा, उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, असम, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक एसएलएसए के कार्यकारी अध्यक्ष, सचिव, न्याय विभाग, बीसीआई के अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, मीनाक्षी अरोड़ा और केवी विश्वनाथ, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डॉ बीना चिंतलपुरी और प्रीति प्रवीण पाटकर और सदस्य सचिव, नालसा आदि मौजूद थे।

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