मादक पदार्थ के संवेदनशील मामले में की गई कार्यवाही भयानक : सुप्रीम कोर्ट ने एनसीबी मुख्यालय से स्पष्टीकरण मांगा

LiveLaw News Network

5 Feb 2021 4:25 AM GMT

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    Supreme Court of India

    एनडीपीएस मामले में बरी होने के खिलाफ एसएलपी दायर करने में 652 दिनों की देरी के कारण, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एनसीबी मुख्यालय से स्पष्टीकरण मांगा कि किस तरह से इस मामले को खुला छोड़ा गया और किस अधिकारी के लिए लापरवाही बरतने पर क्या जवाबदेही तय की गई है।

    न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा,

    "हम यह भी जानना चाहेंगे कि प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।"

    बेंच अन्य बातों के साथ, राजस्थान हाईकोर्ट के दिसंबर, 2018 के फैसले को चुनौती देने वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें प्रतिवादी अजीजुर रहमान को बरी कर दिया था जिसे एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8/22 (सी) और धारा 8/21 (बी) के तहत दोषी ठहराया गया था और 10 साल के सश्रम कारावास और 1 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।

    पीठ ने कहा,

    "हम पाते हैं कि नशीले पदार्थों से संबंधित संवेदनशील मामले में जिस तरह से वर्तमान कार्यवाही के लिए मांग की गई है, वो भयानक है। 652 दिनों की देरी के बाद विशेष अनुमति याचिकाएं दायर की गई हैं, पीठ ने कहा, जिसमें न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय भी शामिल हैं।

    कोर्ट एनसीबी द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण में मौजूद खामियों को इंगित करने के लिए आगे बढ़ी,

    "जो स्पष्टीकरण दिया गया है वह पृष्ठ 44 पर है। इसमें जो गंभीर खामियां स्पष्ट हैं वो हैं .."

    पीठ ने संकेत दिया कि (क) 16.05.2019 को विभाग को छह महीने के बाद एसपीपी की राय दी गई थी।

    और, (ख) एसएलपी का मसौदा एनसीबी मुख्यालय द्वारा 22.08.2019 को प्राप्त किया गया और 22.08.2020 को सुधार के लिए संबंधित विभाग को भेजा गया, एक वर्ष के बाद!

    बेंच ने कहा,

    "इस प्रकार, एनसीबी मुख्यालय एक साल के लिए फाइल पर बैठा रहा।"

    "हम एनसीबी मुख्यालय से स्पष्टीकरण के लिए कहते हैं कि किस तरह से अधिकारियों ने इस मामले को खुला छोड़ा और किस अधिकारी के लिए लापरवाही बरतने पर क्या जवाबदेही तय की गई है हम यह भी जानना चाहेंगे कि प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। हलफनामा महानिदेशक, एनसीबी के हस्ताक्षरों के तहत दायर किया जाएगा। हलफनामा चार सप्ताह के भीतर दायर किया जाएगा।"

    उच्च न्यायालय ने, न्यायिक निर्णय में, टिप्पणी की थी कि मादक पदार्थों की तस्करी को नियंत्रित करने के लिए नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो का गठन किया गया है और इसमें तैनात अधिकारियों को कानून को जानने और कानून को सख्ती से लागू करने के लिए माना जाता है।

    हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एनसीबी की जांच में कई तरह की खामियों की ओर इशारा किया था,

    "आरोपी के रिश्तेदार को गिरफ्तारी का इरादा बताना और उसके बाद गिरफ्तारी मेमो तैयार करना यह दिखाने के उद्देश्य से कि गिरफ्तारी से पहले ही एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत बयान दर्ज किए गए थे।"

    गिरफ्तारी से पहले, कार्यालय आदेश में उल्लेख करना कि अजिजुर रहमान ने रूप कुमार को हेरोइन बेचने के संबंध में बयान दिया है और उसके सहयोगी के बयान अजीजुर रहमान के बयानों के साथ मेल नहीं खा रहे हैं। रूप कुमार को हेरोइन बेचने का तथ्य पहली बार सामने आया है शाम 7.30 से 12.30 बजे के बीच दर्ज किए गए बयानों में जब अजिजुर रहमान 13.7.2003 को हिरासत में था, 13.7.2003 को 00.00 से 00.15 बजे के बीच एक टीम का गठन इस प्रकार तथ्यात्मक रूप से गलत आधार पर आधारित था, तथ्य यह है कि अजीजुर रहमान का बयान दर्ज किया गया था जब वह हिरासत में था, जैसा कि उसकी गिरफ्तारी के बाद उसकी पत्नी को भेजी गई सूचना से स्पष्ट होता है, तथ्य यह है कि नमूने जब्ती अधिकारी के पास 3 दिन तक पड़े रहे, तथ्य यह है कि जब्ती के कुछ दिनों के भीतर नमूनों के वजन में कमी और वृद्धि हुई थी, तथ्य यह है कि सील मालखाना में जमा नहीं किए गए थे, सभी तथ्य एनसीबी द्वारा गड़बड़ी वाली जांच की ओर इशारा करते हैं।

    इसके अलावा, समग्रता में, एनडीपीएस अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया है, अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपराध साबित नहीं कर सका है, " उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए टिप्पणी की और निर्देश दिया कि रहमान को तुरंत हिरासत से रिहा किया जाए।

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