जामिया में पुलिस हिंसा के खिलाफ दर्ज शिकायत के मामले में मानवाधिकार आयोग ने कहा, दिल्ली पुलिस की विशेष जांच टीम विरोध के पीछे रहे "असली अपराधियों" की पहचान करें ओर उन्हें गिरफ्तार करे
LiveLaw News Network
27 Jun 2020 1:45 PM IST
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई पुलिस हिंसा के मामले में दिल्ली पुलिस की विशेष जांच टीम से विरोध के पीछे रहे "असली अपराधियों" की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने की सिफारिश की है। मानवाधिकार आयोग ने छात्रों को विश्वविद्यालय की उचित अनुमति के बिना विरोध प्रदर्शन करने का दोषी माना है।
एनएचआरसी ने कहा है कि विश्वविद्यालय के छात्र बाहरी लोगों के प्रभाव में आ गए और अनधिकृत विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। वे "गैर-कानूनी सभा" का हिस्सा बने, दिल्ली पुलिस को भड़काया और सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नष्ट किया, इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए अधिकारों का फायदा वे नहीं उठा सकते हैं।
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि विरोध प्रदर्शनों में घातक तत्व मौजूद थे, जिन्हें उजागर किए जाने की आवश्यकता है। आयोग ने कहा है, "असली कर्ताओं को उजागर करने की आवश्यकता है, और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के विरोध में पीछे मकसद को उजागर करने की आवश्यकता है, जो कि बड़ी ही चालाकी से और कथित रूप से छात्रों के आड़ में आयोजित किया गया।"
ऐसी ही टिप्पणियों के आलोक मे एनएचआरसी ने सिफारिश की:
"भारत सरकार दिल्ली के पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करे कि अपराध शाखा की एसआईटी, दिल्ली पुलिस संबंधित मामलों की जांच हिंसक विरोध के पीछे असली अपराधियों की पहचान और गिरफ्तारी करके समयबद्ध तरीके से करे।"
पुलिस हिंसा की स्वतंत्र जांच के लिए कोई सिफारिश नहीं
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पुलिस हिंसा के सीसीटीवी विजुअल्स सामने आने के सात महीने बाद, एनएचआरसी ने भारत सरकार को दिल्ली पुलिस आयुक्त और आरएएफ के लिए सीआरपीएफ महानिदेशक को निर्देश देने को कहा है कि वो सीसीटीवी फुटेज को नुकसान पहुंचाने वाले उन सदस्यों की पहचान करें, जो अनावश्यक रूप से पुस्तकालय के अंदर गए, सीसीटीवी कैमरे तोड़े और आंसू गैस के गोले का उपयोग किया।
"संबंधित संगठनों के नियमों और प्रावधानों के अनुसार उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है।"
शिकायतकर्ताओं ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की निगरानी में एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा पुलिस ज्यादतियों की जांच करने की मांग की थी।
मानवीय अधिकार आयोग ने जीएनसीटीडी को घायल छात्रों को उचित मुआवजा देने के सिफारिश की।
पुलिस की कार्रवाई के संबंध में अन्य प्रमुख सिफारिशें हैं:
* भारत सरकार ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त और आरएफ के लिए सीआरपीएफ के महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करे कि पुलिस बल को संवेदनशील बनाया जाए और इस तरह के कानून और व्यवस्था की स्थितियों को संभालने के लिए विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल चलाए जाएं;
* भारत सरकार दिल्ली के पुलिस आयुक्त को पुस्तकालय के अंदर पुलिस द्वारा किए गए कथित अत्याचारों की प्रशासनिक जांच में तेजी लाने का निर्देश दे, और इसके निष्कर्षों और सिफारिशों पर कार्रवाई करने के लिए तुरंत कार्रवाई की जाए;
* भारत सरकार दिल्ली पुलिस आयुक्त और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को सलाह दे कि वे भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए बेहतर तैयारी करें, एक मजबूत खुफिया एकत्रीकरण प्रणाली की स्थापना करे। सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने और झूठी खबरें फैलाने के मामले में विशेष कदम उठाए जा सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि 15 दिसंबर, 2019 को सीएए के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध कर रहे जामिया के छात्रों पर दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल और उन्हें गिरफ्तार करने के मामले में एनएचआरसी के समक्ष कई शिकायतें दर्ज की गई थीं।
शिकायतों में आरोप लगाया गया था कि पुलिस द्वारा विश्वविद्यालय में प्रवेश करने, पुस्तकालय, छात्रावास और अन्य सार्वजनिक स्थानों को नुकसान पहुंचाने के कारण छात्रों गंभीर रूप से घायल हुए था।
पुलिस द्वारा किए गए कथित अत्याचार पर रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस कानूनी रूप से बाध्य थी। हालांकि, रिपोर्ट में परिसर के अंदर आंसू गैस के गोले के उपयोग को "पुलिस की गैर-जिम्मेदाराना कार्रवाई" माना गया है, जिसे "टाला जा सकता था"।
रिपोर्ट बताती है कि एसएसपी, सुश्री मंजिल सैनी के नेतृत्व में एनएचआरसी की टीम ने घटनास्थल का दौरा किया और बयान दर्ज किए, और फिर निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंची:
विरोध शांतिपूर्ण नहीं थे; पुलिस को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर होना पड़ा
रिपोर्ट में कहा गया कि 2017 की अधिसूचना के बावजूद कि किसी भी तरह की "गतिविधि" के लिए पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है, जामिया के छात्रों ने बिना किसी अनुमति के बिना विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था। प्रदर्शन "शांतिपूर्ण नहीं थे, जैसा कि उन्होंने दावा किया है"।
13 दिसंबर को पुलिस और छात्रों / स्थानीय निवासियों के बीच "झड़प" हुई थी, हालांकि, पुलिस ने उन्हें परिसर के गेट नंबर 1 पर रोकने सफलता हासिल की थी। इस घटना के संबंध में कोई रिपोर्ट / शिकायत दर्ज नहीं कराई गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रों और स्थानीय निवासियों ने फिर से हिंसक विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें "विभिन्न निजी और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा गया। बसों और अन्य वाहनों को जलाया गया। उन्होंने पुलिस पर पत्थर, पेट्रोल बम आदि से हमला किया। छात्रों की सभा को पुलिस ने 'गैरकानूनी' घोषित किया था। "
रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस "कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए इन गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने लिए बाध्य थी"। विरोध शांतिपूर्ण नहीं था, जैसा कि दावा किया गया है। वरिष्ठ अधिकारियों सहित पुलिस द्वारा की गई अपील को प्रदर्शनकारियों ने नजरअंदाज कर दिया था।
हालांकि, विश्वविद्यालय के परिसर के अंदर हुई हिंसा के संबंध में, विशेष रूप से लाइब्रेरी में हुई हिंसा के मामले में, रिपोर्ट में कहा गया है कि पिटाई "अपरिहार्य" थी और इसे "पुलिस की गैर जिम्मेदाराना कार्रवाई" ठहराया जा सकता है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रशासन की विफलता
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के प्रशासन पूर्णतया विफल रहा क्योंकि "उन्होंने छात्रों में बढ़ रही नाराजगी को स्थानीय पुलिस के साथ साझा करने का प्रयास नहीं किया और उनसे कोई सहायता भी नहीं ली।"
प्रॉक्टोरियल टीम की भी विफलता थी, जो छात्रों और पुलिस को शांत कराने के बजाय गेट नंबर 7 से हट गए, जबकि उन्हें वहां रहना चाहिए था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, जैसा कि परिसर एक सड़क के जरिए दो हिस्सों में विभाजित होता है, छात्रों की "स्थानीय आबादी के साथ घुलमिल जाने की संभावना है" और इस समस्या के निस्तारण के लिए प्रशासन को "स्थायी समाधान" खोजने की आवश्यकता है ।
अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भाषण / अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्वक इकट्ठा होने की स्वतंत्रता की "संवैधानिक सीमाएं" हैं। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णयों को यह कहा गया है कि अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लागू हैं।
"यह कानून में तय है कि कानून प्रवर्तन अधिकारी किसी विशेष इलाके में हालात के अनुसार कार्रवाई का फैसला लेने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं, जिस आधार पर बैठक, विरोध प्रदर्शन या किसी विशेष स्थान पर मार्च करने की अनुमति देने के लिए उचित निर्णय लिया जाना है।"
जैसा कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है, रिपोर्ट में कहा गया है, "अंतिम फैसला लेना संबंधित प्राधिकरण का कर्तव्य है। इसलिए, इस अनुच्छेद का लाभ पाने के लिए सभा को शांतिपूर्ण होना चाहिए"।
इन निष्कर्षों की रोशनी एनएचआरसी ने विश्वविद्यालय प्रशासन और एमएचआरडी को निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
* कुलपति, रजिस्ट्रार व अन्य अधिकारियों को छात्रों के साथ बेहतर संवाद का तंत्र स्थापित करने की सलाह दी जाती है, ताकि वे बाहरी लोगों और स्थानीय गुंडों या घटिया राजनेताओं से प्रभावित न हों। इसके अलावा, विश्वविद्यालय प्रबंधन स्थानीय पुलिस के साथ सूचनाएं समय पर साझा करें और नियमित संपर्क में रहे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। भविष्य में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए एक एसओपी तैयार की जा सकता है ";
* सचिव मानव संसाधन विकास मंत्रालय सचिव से सिफारिश है कि परिसर को विभाजित कर रही सड़कों के कारण होने वाली कठिनाई को देखें और भविष्य में कानून और व्यवस्था की समस्याओं से बचने के लिए इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाएं।
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