लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा प्रबलः सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
10 Sept 2021 3:58 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा, "लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा प्रबल होती है"। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सौ संगीता w/o सुनील शिंदे बनाम महाराष्ट्र राज्य और या पंचायत समिति चुनावों में एक पार्टी के ग्रुप लीडर की मंजूरी से संबंधित मामले में यह टिप्पणी की।
शीर्ष अदालत, बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी। हाईकोर्ट के फैसले में प्रतिवादी संख्या तीन डॉ वंदना ज्ञानेश्वर मुरकुटे को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, श्रीरामपुर पंचायत समिति पार्टी (INCPS पार्टी) के गतनेता (समूह नेता) के रूप में चयन को मंजूरी देने के जिला कलेक्टर, अहमदनगर के फैसले को बरकरार रखा गया था।
अपीलार्थी सौ संगीता, प्रतिवादी संख्या 3, 4 और 5 ने वर्ष 2017 में हुए चुनाव में पंचायत समिति, श्रीरामपुर के सदस्य के रूप में चुनी गई थीं। इन चारों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से अधिकृत होने के बाद पंचायत का चुनाव लड़ा था। हालांकि बाद में अपीलकर्ता और प्रतिवादी संख्या 3, 4 और 5 ने INCPS पार्टी के नाम से एक 'पंचायत समिति पार्टी' का गठन किया।
अपीलकर्ता ने दावा किया कि पार्टी के प्रस्ताव के अनुसार, उसे INCPS पार्टी का गननेता (पार्टी लीडर/पार्टी व्हिप) बनाने का निर्णय लिया गया था। इसकी सूचना संबंधित नियमों के अनुसार जिला कलेक्टर को दी गई थी।
2019 में प्रतिवादी 3, 4 और 5 द्वारा जिला कलेक्टर के समक्ष एक शिकायत दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने अपने ढाई साल के कार्यकाल के दौरान न तो INCPS पार्टी के सदस्यों को विश्वास में लिया था और न ही INCPS पार्टी की कोई बैठक बुलाई थी।
चार जनवरी, 2020 को अहमदनगर जिला कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष की अध्यक्षता में हुई बैठक में, जिसमें प्रतिवादी संख्या 3 से 5 तक उपस्थित थे, अपीलकर्ता को INCPS पार्टी के पार्टी नेता के पद से हटाने और प्रतिवादी नंबर तीन को उक्त पद पर नियुक्त करने के लिए एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया। इसकी स्वीकृति जिला कलेक्टर ने दी।
अपीलकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष जिला कलेक्टर के अनुमोदन को चुनौती दी, हालांकि वह असफल रहा और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
अपीलकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने तर्क दिया कि उन्हें महाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण सदस्य अयोग्यता नियम, 1987 के अनुसार पांच साल की अवधि के लिए गननेता के रूप में नियुक्त किया गया था। किसी भी नियम के अभाव में अपीलकर्ता को पांच साल की अवधि पूरी होने तक पार्टी नेता के पद से हटाया नहीं जा सकता था। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता को पार्टी नेता के पद से हटाने के लिए बैठक अहमदनगर जिला कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष ने बुलाई थी, जो एक बाहरी व्यक्ति थे। आगे प्रस्तुत किया गया कि बैठक केवल अपीलकर्ता द्वारा ही बुलाई जा सकती थी।
वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि उक्त नियम खरीद-फरोख्त को रोकने और राजनीतिक व्यवस्था की शुद्धता बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए गए थे। इसी उद्देश्य के साथ नियमों में यह प्रावधान था कि एक बार पार्टी का नेता चुने जाने के बाद उसे पांच साल की अवधि के लिए बने रहना चाहिए।
राज्य और जिला कलेक्टर की ओर से पेश अधिवक्ता सचिन पाटिल ने बताया कि अपीलकर्ता को हटाने और प्रतिवादी संख्या तीन को नियुक्त करने का प्रस्ताव ICPS पार्टी ने तीन-चौथाई बहुमत से पारित किया था, इसलिए जिला कलेक्टर का आदेश कानून के अनुसार है।
प्रतिवादी की ओर से पेश अधिवक्ता रवींद्र अदसुरे ने कहा कि अपीलकर्ता ने उक्त नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन किया था। उन्होंने प्रस्तुत किया कि अपीलकर्ता ने INCPS पार्टी को तोड़कर ...अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का विकल्प चुना और प्रतिद्वंद्वियों के समर्थन से अध्यक्ष के पद के लिए चुने गए।
सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष
कोर्ट ने कहा कि 2017 में हुई पहली बैठक में ही नेता परिवर्तन के संबंध में कदम उठाने का अधिकार जिला कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष को दिया गया था। इसलिए अपीलकर्ता की उस प्रक्रिया के संबंध में शिकायत नहीं सुनी जा सकती है, जो उसे हटाते समय अपनाई गई थी, क्योंकि अपीलकर्ता गतनेता/ पार्टी नेता के रूप में प्रवेश उसी प्रक्रिया से होता है।
फैसले में कहा गया, "अपीलकर्ता को INCPS पार्टी के सभी सदस्यों का समर्थन होन के कारण गतनेता के रूप में चुना गया था। हालांकि, जब उसने अपना अलग रास्ता चुनने का फैसला किया तो उसने INCPS पार्टी के बहुमत का समर्थन खो दिया और इस तरह बहुमत पर अपने नेतृत्व को थोप नहीं सका।"
मामले में सुनील हरिभाऊ काले बनाम अविनाश गुलाबराव मर्दिकर का हवाला दिया गया।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की इच्छा प्रबल होती है
कोर्ट ने आगे कहा, "जैसे ही ऐसा व्यक्ति बहुमत का विश्वास खो देता है वह अवांछित हो जाता है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, बहुमत की इच्छा प्रबल होती है।"
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता ने पार्टी की इच्छा के विपरीत काम किया और प्रतिद्वंद्वी समूह के समर्थन से पंचायत समिति के अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का फैसला किया। कोर्ट ने कहा, "हम अपीलकर्ता के मुंह से खरीद-फरोख्त की दलील सुनकर चकित हैं। यह अपीलकर्ता है, जिसने पार्टी की इच्छा के विपरीत काम किया है और प्रतिद्वंद्वी के समर्थन से पंचायत समिति के अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का फैसला किया है। यह अनुमान कोई भी लगा सकता है कि खरीद-फरोख्त में कौन लिप्त है।"
अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
केस विवरण
शीर्षक: सौ. संगीता w/o सुनील शिंदे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य
कोरम: जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई
प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 437