दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना को सही भावना से लागू करें: सुप्रीम कोर्ट
Shahadat
22 May 2025 10:59 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हाल ही में निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना, 2025, जिसे 5 मई, 2025 को अधिसूचित किया गया। कोर्ट ने कहा कि इस योजना को सही भावना से लागू किया जाए।
यह योजना मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162 के तहत बनाई गई है, जो सरकार को सड़क दुर्घटना पीड़ितों को “गोल्डन ऑवर” के दौरान कैशलेस उपचार प्रदान करने का आदेश देती है - दर्दनाक चोट के बाद का पहला घंटा।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने सरकार को अगस्त 2025 के अंत तक हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया, जिसमें योजना के कार्यान्वयन का विवरण दिया गया हो और योजना का व्यापक प्रचार किया गया हो।
खंडपीठ ने कहा,
“हम केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि योजना को सही अर्थों में लागू किया जाए। हम केंद्र सरकार को अगस्त, 2025 के अंत तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हैं, जिसमें योजना के कार्यान्वयन का विवरण दिया जाए, जिसमें योजना के तहत नकद रहित उपचार प्राप्त करने वाले लाभार्थियों की संख्या जैसे विवरण शामिल हों। केंद्र सरकार इस योजना का व्यापक प्रचार करेगी।”
अदालत वैधानिक प्रावधान को लागू करने में केंद्र की देरी से संबंधित मामले की सुनवाई कर रही थी। अदालत ने पहले सरकार की आलोचना की कि वह अपने स्वयं के कानून पर काम नहीं कर रही है, जबकि धारा 162 1 अप्रैल, 2022 से लागू है।
योजना के अनुसार, प्रत्येक सड़क दुर्घटना पीड़ित दुर्घटना की तारीख से सात दिनों तक 1.5 लाख रुपये तक का नकद रहित उपचार प्राप्त करने का हकदार है। पीड़ित को लाए जाने के तुरंत बाद नामित अस्पतालों में उपचार प्रदान किया जाना चाहिए।
अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि यह योजना अब 5 मई, 2025 से प्रभावी हो गई और योजना पर आपत्तियों पर उचित चरण में विचार किया जाएगा।
केंद्र ने 28 अप्रैल, 2025 को कहा कि योजना को एक सप्ताह के भीतर अधिसूचित कर दिया जाएगा। उस सुनवाई के दौरान, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के सचिव पहले के निर्देशों का पालन न करने के लिए तलब किए जाने के बाद वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट ने नोट किया था कि 1 अप्रैल, 2022 को धारा 162 के लागू होने के बावजूद कोई योजना तैयार नहीं की गई है और सचिव से देरी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा।
जस्टिस ओक ने टिप्पणी की थी कि उपचार योजना के अभाव में लोग राजमार्गों पर मर रहे हैं। बुनियादी स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित किए बिना राजमार्गों के निर्माण के उद्देश्य पर सवाल उठाया। कोर्ट को बताया गया कि एक मसौदा योजना तैयार की गई, लेकिन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) द्वारा उठाए गए मुद्दों के कारण इसमें बाधाएं आ रही हैं।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर GIC सहयोग नहीं कर रही है, तो दूसरी एजेंसी नियुक्त की जानी चाहिए। सचिव ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि ऐसा किया जाएगा।
केस टाइटल- एस. राजसीकरन बनाम भारत संघ और अन्य।

