यदि लास्ट सीन थ्योरी सिद्ध होती है तो आरोपी को उन परिस्थितियों के बारे में बताना चाहिए, जिनमें उसने मृतक का साथ छोड़ा था: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

5 Aug 2021 12:48 PM IST

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    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में दोहराया है कि एक बार 'अंतिम बाद देखे जाने' (लास्ट सीन थ्योरी) का तथ्य स्थापित हो जाने के बाद, अभियुक्त के खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जा सकता है, यदि वह उन परिस्थितियों की व्याख्या करने में विफल रहता है जिसमें उसने मृतक का साथ छोड़ा था।

    सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ वर्ष 1987 के एक हत्या के मामले में पैदा हुई एक आपराधिक अपील का निपटारा कर रही थी। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी युगल को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, धारा सहपठित धारा 34 के तहत दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में दोषसिद्धि की पुष्टि की थी।

    अपील में, कोर्ट ने नोट किया कि आरोपी की सजा परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है, जो कि (i) लास्ट सीन थ्योरी; (ii) मकसद और (iii) प्रदान की गई झूठी जानकारी और बाद में आरोपी का आचरण से संबंधित है।

    अपील में आरोपी का मुख्य तर्क यह था कि दोषसिद्धि, जो केवल 'लास्ट सीन थ्योरी' के आधार पर है, टिकाऊ नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि लास्ट सीन थ्योरी वहां लागू होती है, जहां आरोपी और मृतक को आखिरी बार जब एक साथ देखा गया था, और जब पीड़ित को मृत पाया गया था, दोनों घटनाओं के बीच अंतराल इतना कम है कि आरोपी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति का अपराधी होना असंभव हो जाता है।

    सतपाल बनाम हरियाणा राज्य में हाल के फैसले का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि जब तक कि अंतिम बार देखे जाने के तथ्य की पुष्टि कुछ अन्य सबूतों से नहीं होती है, यह तथ्य कि मृतक को आखिरी बार आरोपी के आसपास देखा गया था, अपने आप में एक कमजोर सबूत ही होगा।

    "30. हम यह स्पष्ट करने में जल्दबाजी कर सकते हैं कि अंतिम बार देखे गए तथ्य को अलग-थलग का तौला नहीं जाना चाहिए या अभियोजन पक्ष के अन्य साक्ष्यों से अलग नहीं किया जाना चाहिए। अंतिम बार देखे गए सिद्धांत को अभियोजन पक्ष के मामले को संपूर्णता में ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए। इसलिए, न्यायालयों न केवल पिछली बार कब देखा के तथ्या पर विचार करना है, बल्‍कि उन परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना है, जिस बिंदु के पहले और बाद में आरोपी मृतक के साथ देखा गया है।"

    अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने इस मामले में निस्संदेह स्थापित किया है कि मृतक को आखिरी बार आरोपी के साथ जिंदा देखा गया था। अभियोजन पक्ष ने यह आग्रह करने के लिए कि जब मृतक को आखिरी बार आरोपी के साथ देखा गया था, तो यह अनुमान लगता है कि कि उक्त आरोपी ने पीड़ित की हत्या की है, राजस्थान राज्य बनाम काशी राम (2006) 12 एससीसी 254 में दिए निर्णय पर भरोसा किया था।

    इस बारे में पीठ ने कहा, "35. राज्य के वकील काशी राम (सुप्रा) में इस न्यायालय के निर्णय पर भरोसा करने में सही प्रतीत होते हैं, यह दावा करने के लिए कि एक बार अंतिम बार देखे जाने का तथ्य स्थापित हो जाने के बाद, अभियुक्त को उन परिस्थितियों के बारे में कुछ स्पष्टीकरण देना चाहिए जिनमें उसने मृतक का साथ छोड़ा ‌था। कानून की इस स्थिति पर, जैसा कि आईईए की धारा 106 के तहत कवर किया गया था, सतपाल सिंह (सुप्रा) के मामले में विधिवत विचार किया गया था, जिसमें इस न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि यदि आरोपी कोई संभाव्य स्पष्टीकरण देने में विफल रहता है, तो उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जा सकता है।"

    इस मामले में, अदालत ने कहा कि आरोपी उन परिस्थितियों के बारे में कोई स्पष्टीकरण देने में असमर्थ थे, जिनमें उन्होंने मृतक का साथ छोड़ा था। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ अंतिम बार देखे गए सिद्धांत को लेकर अभियोजन पक्ष के बयान पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है।

    38. यदि किसी मामले में मकसद किसी आरोपी के (आरोपों) के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है और उसके बाद साबित हो जाता है, तो उक्त आरोपी द्वारा अपराध किए जाने की संभावना तेज हो जाती है। यही कारण है कि अत्यधिक परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामलों में, मकसद का सबूत पुष्टि करने वाले साक्ष्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा, साथ ही साक्ष्य की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी भी होगा।

    रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि इस मामले में मकसद स्थापित है।

    अदालत ने यह भी देखा कि पहले आरोपी के खिलाफ घटना के बाद के परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं, यानि, उसने मृतक के ठिकाने का खुलासा नहीं किया और फिर अदालत में आत्मसमर्पण करने तक गुप्त रूप से घटनास्थल से गायब हो गया। पीठ ने कहा कि अन्य आरोपियों के खिलाफ घटना के बाद टालमटोल या फरार होने का ऐसा कोई आरोप नहीं है। पीठ ने पहले आरोपी द्वारा किशोर होने की याचिका को भी खारिज कर दिया।

    इस प्रकार, पहले आरोपी के संबंध में दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की गई और दूसरे आरोपी को आरोपों से बरी कर दिया गया।

    केस: सूरजदेव महतो बनाम बिहार राज्य; सीआरए 1677 ऑफ 2011

    कोरम: सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस

    सिटेशन: एलएल 2021 एससी 351

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