'अगर आउटहाउस में नकदी मिली तो जज का दुर्व्यवहार कैसे है?': सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के पक्ष में सिब्बल का तर्क
Shahadat
28 July 2025 4:42 PM IST

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि किसी कार्यरत हाईकोर्ट जज के आउटहाउस में नकदी की मौजूदगी का मतलब "कदाचार" या "सिद्ध अक्षमता" नहीं है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत किसी जज को उसके पद से हटाने के लिए आवश्यक आधार हैं।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ बेहिसाब नकदी विवाद मामले में जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस वर्मा ने इन-हाउस समिति के निष्कर्षों को चुनौती दी, जिसने उन्हें दोषी ठहराया। साथ ही पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने के लिए लिखे गए पत्र की सिफारिश को भी चुनौती दी।
सिब्बल ने महाभियोग की सिफारिश के लिए आंतरिक प्रक्रिया के तहत पूर्व चीफ जस्टिस खन्ना द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा कि यह महाभियोग का आधार नहीं हो सकता। उन्होंने तर्क दिया कि किसी जज को हटाने की प्रक्रिया जज (जांच) अधिनियम के अनुसार होनी चाहिए। इसके अलावा, सिर्फ़ इसलिए कि जज के घर में नकदी पाई गई है, यह "कदाचार" या "सिद्ध अक्षमता" साबित नहीं करता।
सिब्बल ने कहा,
"अगर आउटहाउस में नकदी पाई गई है तो जज के व्यवहार के लिए क्या ज़िम्मेदारी ली जानी चाहिए? व्यवहार का कोई आरोप नहीं है, दुर्व्यवहार की तो बात ही छोड़ दीजिए।"
हालांकि, जस्टिस दत्ता ने जवाब दिया कि यह न्यायिक आचरण के बैंगलोर सिद्धांतों के अर्थ में दुर्व्यवहार हो सकता है। इस पर सिब्बल ने कहा कि यह दुर्व्यवहार हो सकता है, लेकिन उन्हें उनके पद से हटाने की हद तक नहीं।
जस्टिस दत्ता ने आगे कहा:
"न तो आपने आग लगने की घटना पर और न ही नकदी की बरामदगी पर कोई विवाद किया।"
सिब्बल ने कहा कि पुलिस या आंतरिक समिति को कभी पता नहीं चला कि यह नकदी किसकी थी।
सिब्बल का मुख्य तर्क यह था कि चीफ जस्टिस को राष्ट्रपति को महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफ़ारिश करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि इसे संसद सदस्यों द्वारा ही पेश किया जाना है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री इस प्रक्रिया से "अनजान" हैं और सरकार न तो महाभियोग की कार्यवाही शुरू कर सकती है और न ही इसकी सिफ़ारिश कर सकती है।
उन्होंने कहा:
"अगर लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य इस बात से संतुष्ट हैं कि उनका आचरण ऐसा है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए, तो वे प्रस्ताव पेश करेंगे।"
जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की कि समिति के निष्कर्षों को साक्ष्य नहीं माना जाता है, इसलिए इस स्तर पर कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए।
इस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि यह महाभियोग प्रस्ताव का आधार बन गया और कहा:
"सीजेआई ने हटाने की सिफ़ारिश करते हुए एक पत्र भेजा है, संसद इसे स्वीकार करने के अलावा और क्या कर सकती है?"
जस्टिस दत्ता ने स्पष्ट किया कि जज जांच अधिनियम के अनुसार, इससे पहले तीन-जजों वाली समिति द्वारा जांच होनी चाहिए।
अब इस मामले पर बुधवार को सुनवाई होगी।
Case Details: XXX v THE UNION OF INDIA AND ORS|W.P.(C) No. 699/2025

