''मैंने तहे दिल से माफी मांगी है" : एडवोकेट यतिन ओझा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, SC ने कहा, पहले गुजरात हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार करें

LiveLaw News Network

9 Sep 2020 1:57 PM GMT

  • मैंने तहे दिल से माफी मांगी है : एडवोकेट यतिन ओझा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा,  SC ने कहा, पहले गुजरात हाईकोर्ट के आदेश का इंतजार करें

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एडवोकेट यतिन ओझा की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई टाल दी। इस याचिका में ओझा ने उनसे वरिष्ठ पदनाम (designation as senior) वापस लेने के निर्णय को चुनौती दी है।

    इस तथ्य को देखते हुए कि हाईकोर्ट ने अपना आदेश पारित करने के लिए 17 सितंबर की तारीख तय की है।

    सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में इंतजार करना उचित होगा ताकि यह देखा जा सके कि हाईकोर्ट क्या फैसला देती है। इस पीठ में जस्टिस न्यायमूर्ति एसके कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी शामिल थे।

    पीठ ने कहा कि

    "हाईकोर्ट द्वारा फैसला दिए जाने के बाद ओझा के पास ''अपने तर्क रखने के लिए और अधिक तथ्य हो सकते हैं।'' इसलिए इस मामले में दायर अपील पर हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही सुनवाई की जाएगी।"

    पीठ की इस टिप्पणी के बाद दलील दी गई कि जब एक बार हाईकोर्ट सजा तय कर देगी,तो उसके अनुसार भी एक अपील दायर की जा सकती है।

    ओझा की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातार के इस सुझाव पर ,सुप्रीम कोर्ट ने ओझा को इस बात की स्वतंत्रता दे दी कि जब वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करें तो उसकी एक प्रति प्रतिवादियों के पास भी भेज दे ताकि वह अपना जवाब तैयार करके कोर्ट आने में सक्षम हो सकें।

    इसलिए हाईकोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद जैसे ही याचिका दायर की जाए, ओझा उसकी एक काॅपी प्रतिवादियों को भी उपलब्ध करा दें,जो बिना नोटिस के ही अगली सुनवाई पर अपना जवाब दायर कर दें। इससे समय की बचत होगी और मामले को आगे बढ़ाया जा सकेगा।

    इस मामले में आवश्यक समय को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई करने के लिए 29 सितंबर की तारीख तय की है।

    बुधवार को जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है और इसी के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि-

    ''हमें चिंता इस बात की है कि यह कोई पहली घटना नहीं है। वह कई बार इस तरह के अवसरों का उपयोग कर चुके हैं, मैं यहां कोर्ट को ' धमकाने' शब्द उपयोग करूंगा।''

    जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि श्री ओझा ने केवल खुद के लिए चीजों को बदतर बना दिया है।

    वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता पर अदालत से पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए कहा ओझा ने अपने बयानों के लिए कई मौकों पर माफी मांगी है। वरिष्ठ के रूप में ओझा के पदनाम को वापस लेने के संबंध में, सिंघवी ने तर्क दिया कि यह निर्णय कठोर था। ''आप जानते हैं कि गाउन का मामला किसी भी वकील के लिए मौत की सजा के समान है।''

    हालांकि बेंच ने इस स्थिति में एक वकील की दशा के बारे में अपनी अभिज्ञता व्यक्त की, परंतु इस बात पर भी जोर दिया कि पदनाम को मंजूरी देने और वापस लेने की शक्ति हाईकोर्ट के पास निहित है।

    इसी से सहमत होकर, सिंघवी ने इस मामले पर बहस करने और 12 बिंदुओं को सामने लाने की मांग की। हालांकि, न्यायमूर्ति कौल की राय यह थी कि हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार करना बेहतर होगा।

    आदेश पारित होने के बाद, सिंघवी ने न्यायाधीशों को अवगत कराया कि ओझा ने कई अवसरों पर माफी मांगी थी।

    ओझा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने भी उनके समर्थन में आवाज उठाई और कहा कि उन्होंने कई वर्षों तक अच्छा काम किया है, और यद्यपि उनके कुछ तुनकमिजाज वाले मुद्दे रहे हैं, लेकिन ओझा दिल के अच्छे हैं।

    यतिन ओझा ने खुद भी स्पष्ट किया कि वह वास्तव में अपने शब्दों के लिए क्षमाप्रार्थी हैं। साथ ही कहा कि उनके खिलाफ इसलिए कार्रवाई की गई है क्योंकि वह गुजरात हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष थे।

    ओझा ने स्पष्ट किया कि,''मुझे पता है कि मेरे शब्दों ने बहुत नुकसान पहुँचाया है। मैं तहे दिल से माफी माँगता हूँ। यह कोई कागजी माफी नहीं है।''

    इस पर जस्टिस कौल ने कहा, ''देखते हैं कि हम कैसे मामले को सुलझा सकते हैं, मैं बस यही कह सकता हूं कि परिणाम उम्मीद से कम होंगे।''

    मामले की पृष्ठभूमि

    जुलाई के महीने में फेसबुक पर एक लाइव सम्मेलन के दौरान ओझा ने आरोप लगाया था कि हाईकोर्ट की रजिस्ट्री भ्रष्ट प्रथाओं का पालन कर रही है और केवल अमीर और शक्तिशाली लोगों के मामलों को सूचीबद्ध कर रही है और उन्हीं को सुना जा रहा है। इस सम्मेलन में विभिन्न पत्रकारों ने भी भाग लिया था।

    इस तरह की ''गैर जिम्मेदाराना, सनसनीखेज और असयंमित'' टिप्पणी पर कड़ा रूख अपनाते हुए हाइकोर्ट ने ओझा के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करते हुए कहा था कि ओझा के निराधार और असत्यापित तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट की रजिस्ट्री को निशाना बनाते हुए हाईकोर्ट प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया है।

    जिसके बाद ओझा ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अवमानना की कार्यवाही को चुनौती दी थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था।

    अवमानना की ​कार्यवाही के दौरान ही गुजरात हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने निर्णय लिया था कि वह अपने 25 अक्टूबर, 1999 के उस फैसले की समीक्षा करते हुए उसे वापिस लेंगे,जिसके तहत ओझा को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था। यह निर्णय गुजरात हाईकोर्ट(वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पदनाम) नियम 2018 के रूल 26 के तहत लिया गया था।

    इस निर्णय को चुनौती देते हुए ओझा ने शीर्ष अदालत का रुख किया था। जिसमें मांग की गई थी कि उनके पदनाम को हटाने वाली फुल कोर्ट की अधिसूचना को रद्द किया जाए और हाईकोर्ट रूल्स के रूल 26 को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया जाए।

    छह अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ओझा ने कहा था कि वह हाईकोर्ट के खिलाफ की गई अपनी टिप्पणी के लिए बिना शर्त माफी मांगने के लिए तैयार है। इस पर ध्यान देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई ओझा की याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी थी। साथ ही उम्मीद जताई थी कि इस अवधि के दौरान हाईकोर्ट ओझा के प्रतिनिधित्व पर विचार कर लेगी।

    ओझा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह अपनी टिप्पणी के लिए बिना शर्त माफी मांग रहा है, और कहा था ''मैं माफी चाहता हूं। मैं यह माफी गुजरात हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ के समक्ष भी मांगने को तैयार हूं। मैंने अपने कैरियर में कभी ऐसा कुछ नहीं किया है। मैं 44 साल का सीनियर बन गया हूं।''

    10 अगस्त, 2020 को ओझा ने हाईकोर्ट के समक्ष बिना शर्त माफी मांगी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने उनका पक्ष सुनने का मौका प्रदान करने का निर्णय लिया था।

    फुल कोर्ट ने अधिवक्ता यतिन ओझा की माफी को खारिज करने का फैसला किया था। साथ ही कहा था कि ओझा के शब्दों ने न्यायिक संस्थान को ''अपूरणीय क्षति'' पहुंचाई है।

    गुजरात हाईकोर्ट की फुल कोर्ट ने 23 अगस्त को हुई बैठक में प्रस्ताव पास करते हुए कहा था कि-''फुल कोर्ट इस बात से पूरी तरह आश्वस्त है और दृढ़ता से मानती है कि श्री ओझा द्वारा पूर्व में इंगित की गई माफी और आज मांगी गई माफी में कोई नेकनीयती शामिल नहीं है और यह एक कागजी माफी से अधिक कुछ भी नहीं है।''

    हालांकि, तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने ओझा की ''तथाकथित'' अयोग्य माफी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ''पश्चाताप व्यक्त करना तो अपने दुव्र्यवहार या कदाचार के परिणाम से बचने का एक तरीका है।''

    फुल कोर्ट ने यह भी कहा था कि ''तथाकथित अयोग्य सुस्ष्ट माफी अपनी छवि को सुधारने और इस तंग स्थिति से निकलने का एक चतुर और प्रच्छन्न प्रयास है। इसीलिए अपने अचारण के लिए खेद के कुछ शब्दों को व्यक्त किया जा रहा है और बार-बार उन तथाकथित परिस्थितियों को दोष देने का प्रयास किया जा रहा है जिसके कारण यह सब हुआ है। न्यायालय ने कहा था कि अगर वह श्री ओजा की माफी को स्वीकार करता है, तो हाईकोर्ट अपने उस ''आवश्यक कर्तव्य को निभाने में विफल हो जाएगा,जिसे संविधान और लोगों द्वारा सिर्फ हाईकोर्ट को सौंपा गया है।''

    न्यायालय ने कहा था कि श्री ओझा ने अपने लाइव सत्र के दौरान जो टिप्पणी की थी, वह न तो ''क्षणिक'' थी और न ही ''भावनाओं में बहकर'' की गई थी।

    इसके अलावा फुल कोर्ट या पूर्ण न्यायालय ने यह भी कहा था कि,''श्री ओझा क्यों हमेशा हाईकोर्ट से यह अपेक्षा करते हैं कि हाईकोर्ट अपनी उदारता दिखाएगी और उनके कदाचार या दुव्र्यवहार के लिए क्षमा प्रदान कर देगी? क्यों नहीं श्री ओझा संयम अपनाते है और सीनियर काउंसिल के रूप में अपेक्षित व्यवहार करते हैं? बहुत अच्छी तरह से व्यक्त और सचेत हमला संस्थान पर किया गया है और वह भी बिना किसी अच्छे कारण से। इसलिए इसको अनदेखा करना, क्षमा करना या नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। यदि इस तरह के हमले से दृढ़ता से नहीं निपटा गया तो यह राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के सम्मान और प्रतिष्ठा को प्रभावित करेगा।''

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