'भारत भर में कितने मंदिरों का प्रबंधन कानून द्वारा अपने अधीन किया गया?' उत्तर प्रदेश बांके बिहारी मंदिर न्यास अध्यादेश के विरुद्ध याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा
Shahadat
28 July 2025 12:48 PM IST

उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा मंदिर की प्रबंधन समिति से यह पता लगाने को कहा कि देश भर में कितने मंदिरों का प्रबंधन कानूनों के माध्यम से अपने अधीन किया गया।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (मंदिर प्रबंधन समिति की ओर से) की दलील सुनने के बाद मामले को पुनः सूचीबद्ध किया। सिब्बल ने दलील दी कि बांके बिहारी मंदिर से संबंधित एक मामला एक अन्य बेंच के समक्ष सूचीबद्ध है। बेंच ने कहा कि दोनों मामलों को एक ही बेंच के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए चीफ जस्टिस बीआर गवई के आदेश की आवश्यकता होगी।
संक्षेप में मामला
2025 के उत्तर प्रदेश अध्यादेश में मंदिर प्रशासन को वैधानिक न्यास प्रदान करने की बात कही गई। इसके अनुसार, मंदिर का प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुविधाओं की ज़िम्मेदारी 'श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास' द्वारा संभाली जाएगी। 11 न्यासी मनोनीत किए जाएंगे, जबकि अधिकतम 7 सदस्य पदेन हो सकते हैं। सभी सरकारी और गैर-सरकारी सदस्य सनातन धर्म के अनुयायी होंगे।
सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस कांत ने सिब्बल से पूछा कि याचिकाकर्ता इलाहाबाद हाईकोर्ट क्यों नहीं जा सकते। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सिब्बल ने विवाद की संक्षिप्त पृष्ठभूमि प्रस्तुत की और कहा कि राज्य एक निजी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में ले रहा है। उन्होंने आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने एक संबंधित मामले में आदेश पारित किया, जिसमें राज्य को पुनर्विकास परियोजना के लिए 300 करोड़ रुपये के मंदिर कोष का अधिग्रहण करने की अनुमति दी गई।
इसी संबंधित मामले में मंदिर भक्त देवेंद्र गोस्वामी ने न्यायालय के 15 मई के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को कॉरिडोर पुनर्विकास के लिए मंदिर कोष का उपयोग करने की अनुमति दी गई। इस आधार पर कि यह फैसला मंदिर प्रबंधन को सुने बिना पारित किया गया।
सिब्बल की सुनवाई करते हुए जस्टिस कांत ने कहा,
"सरकार ने राज्य ने कितने सैकड़ों मंदिरों का अधिग्रहण किया? जो भी दान [...] मिल रहा है... बेहतर होगा कि आप वहां जाएं और देखें... दो परिवार लड़ रहे हैं, पहला मुकदमा 1938 का था... ऐसे क्षेत्र के विकास का जहां लाखों तीर्थयात्री जाते हैं।"
सीनियर वकील ने जब कहा कि पहले से ही एक प्रशासक है तो जज ने टिप्पणी की,
"यह एक तदर्थ व्यवस्था है। कृपया पूरे देश में पता लगाएं कि कितने मंदिरों का प्रबंधन कानून के माध्यम से अपने अधीन किया गया और एक बोर्ड को सौंपा गया... पहला तमिलनाडु है..."।
हालांकि, सिब्बल ने बताया कि पिछले अधिग्रहण सार्वजनिक मंदिरों से संबंधित थे, जबकि बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है। दो अलग-अलग पीठों के समक्ष समान मुद्दों के लंबित होने को देखते हुए बेंच ने 2-3 दिनों के बाद मामले को फिर से सूचीबद्ध किया, सिब्बल ने कहा कि वह उचित सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस बीआर गवई के समक्ष इस मामले का उल्लेख करेंगे।
वर्तमान याचिका के माध्यम से याचिकाकर्ता-प्रबंधन समिति (जिसमें लगभग 350 सदस्य हैं) और मंदिर सेवायत-रजत गोस्वामी का तर्क है कि उत्तर प्रदेश सरकार का अध्यादेश "दुर्भावनापूर्ण", असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 213 और 300A के विरुद्ध है। यह दावा किया गया कि यह अध्यादेश मंदिर प्रशासन से संबंधित हाईकोर्ट में लंबित जनहित याचिका के परिणाम को अवैध रूप से रोकता और विफल करता है।
इसके अलावा, याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि 5 एकड़ भूमि अधिग्रहण के लिए मंदिर के धन के उपयोग से संबंधित मुद्दे का निर्णय हाईकोर्ट ने 2023 में किया, जिसके विरुद्ध राज्य द्वारा कोई विशेष अनुमति याचिका दायर नहीं की गई। बल्कि राज्य ने गिरिराज सेवा समिति के चुनावों से संबंधित एक निजी मुकदमे में हस्तक्षेप किया था।
यह तर्क देने के लिए कि अध्यादेश समय से पहले लाया गया, हाईकोर्ट में पहले से लंबित एक मामले का हवाला दिया गया, जिसमें अध्यादेश को चुनौती दी गई।
उक्त मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी।
Case Title: MANAGEMENT COMMITTEE OF THAKUR SHREE BANKEY BIHARI JI MAHARAJ TEMPLE AND ANR. Versus STATE OF UTTAR PRADESH AND ORS., W.P.(C) No. 704/2025

