हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा: सुप्रीम कोर्ट ने आयोग द्वारा रोके गए उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से परीक्षा में बैठने की अनुमति दी

Avanish Pathak

7 July 2023 4:45 PM IST

  • हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा: सुप्रीम कोर्ट ने आयोग द्वारा रोके गए उम्मीदवारों को अस्थायी रूप से परीक्षा में बैठने की अनुमति दी

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उन याचिकाकर्ता-उम्मीदवारों को 9 जुलाई, 2023 को आयोजित हिमाचल प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने की अस्‍थायी रूप से अनुम‌ति दे दी है, जिन्हें हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (आयोग) ने परीक्षा में शामिल होने के लिए ‌उचित प्रारूप में क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट जमा नहीं करने के कारण रोक दिया था।

    जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने अंतरिम राहत प्रदान करते हुए आयोग को याचिकाकर्ताओं को आवश्यक प्रवेश पत्र जारी करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उनमें परीक्षा केंद्र दर्शाया गया हो।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को परीक्षा में अस्थायी रूप से उपस्थित होने की अंतरिम राहत उनके पक्ष में समानता नहीं बनाएगी और यह याचिका के नतीजे के अधीन है।

    कोर्ट ने कहा,

    “...हम प्रतिवादियों को यह निर्देश देते हुए अंतरिम राहत देने के इच्छुक हैं कि वे याचिकाकर्ताओं को परीक्षा के लिए केंद्र निर्दिष्ट करते हुए आवश्यक प्रवेश पत्र जारी करके 09.07.2023 से शुरू होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में अनंतिम रूप से उपस्थित होने की अनुमति दें। अनंतिम अनुमति देने से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई इक्विटी नहीं बनेगी।"

    खंडपीठ ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी किया, जिसमें याचिकाकर्ताओं को प्रारंभिक परीक्षा लिखने से रोकने के आयोग के फैसले को बरकरार रखा गया था।

    एक याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने पीठ को अवगत कराया कि आयोग के अनुसार क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट के बजाय याचिकाकर्ता ने उस व्यक्ति के आधार कार्ड अपलोड किए थे जिन्होंने क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट जारी किए थे।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि 22 अप्रैल, 2023 को जारी विज्ञापन की शर्तों के अनुसार क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट जमा करने की आवश्यकता एक आवश्यक दस्तावेज नहीं है। उन्होंने आग्रह किया कि उचित प्रारूप में इसे जमा न करना एक सुधार योग्य दोष है।

    दूसरी याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि उनके मामलों में उम्मीदवारी की अस्वीकृति इसलिए हुई क्योंकि दोषपूर्ण क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट अपलोड किए गए थे।

    उन्होंने कहा कि उम्मीदवार का नाम लिखने के बजाय, प्रमाण पत्र जारी करने वाले व्यक्ति ने 'आवेदक' लिखा था।

    वकील ने तर्क दिया कि यह अस्वीकृति का आधार नहीं है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जबकि उनके मुव‌िक्‍कलों की उम्मीदवारी रद्द कर दी गई थी, उत्तरदाताओं ने समान स्थिति वाले उम्मीदवारों को अपने क्रेडेंशियल सर्टीफिकेट को सुधारने का अवसर दिया था।

    जस्टिस विश्वनाथन ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकील से कहा, "देखिए, यह कोई भौतिक उल्लंघन नहीं है।"

    राज्य के वकील ने जवाब दिया कि विज्ञापन के अनुरूप नहीं होने वाले दस्तावेजों को सुधारने के लिए सभी को एक अवसर दिया गया था।

    जस्टिस जेके माहेश्वरी ने कहा,

    “जहां तक प्रमाण-पत्रों का सवाल है, हम समझ सकते हैं कि वे परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं और फिर प्रमाण-पत्रों की आवश्यकता होती है। लेकिन आप इस आधार पर उम्मीदवारी कैसे रद्द कर सकते हैं? उम्मीदवारी रद्द करने का सवाल कहां है?”

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