सुप्रीम कोर्ट ने फिर उठाई हाईकोर्ट जजों के कार्य मूल्यांकन की मांग, कहा– जजों को रखना होगा 'स्व-प्रबंधन तंत्र'
Praveen Mishra
22 Sept 2025 6:57 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर हाईकोर्ट जजों के परफॉर्मेंस इवैल्यूएशन (कार्य प्रदर्शन मूल्यांकन) पर दिशा-निर्देश बनाने की ज़रूरत पर जोर दिया और कहा कि जनता की वैध अपेक्षाओं को न्यायपालिका को पूरा करना होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को अपना "स्व-प्रबंधन सिस्टम" रखना होगा ताकि फाइलें लंबित न हों और बार-बार स्थगन (adjournment) से बचा जा सके।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ झारखंड हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक अपीलों में लगभग तीन साल की देरी से फैसले सुनाने के मुद्दे पर विचार कर रही थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य हाईकोर्ट जजों पर “स्कूल प्रिंसिपल” की तरह निगरानी करना नहीं है, बल्कि केवल व्यापक दिशा-निर्देश तय करना है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “परफॉर्मेंस इवैल्यूएशन एक बड़ी चुनौती है। कुछ जज दिन-रात मेहनत करते हैं और उत्कृष्ट निस्तारण करते हैं, लेकिन कुछ जज विभिन्न कारणों से अपेक्षित डिलीवरी नहीं कर पाते। मसलन, क्रिमिनल अपील का एक दिन में निपटारा भी बड़ी उपलब्धि है, जबकि जमानत मामलों में बहुत अधिक लंबित रखना उचित नहीं है। इसलिए कुछ मापदंड और दिशा-निर्देश होने चाहिए।
कोर्ट ने आगे कहा कि केवल ऑपरेटिव पार्ट (परिणाम) सुनाने के बाद, कारणयुक्त निर्णय (reasoned judgment) अधिकतम 5 दिन के भीतर अपलोड होना चाहिए, जैसा कि Ratilal Jhaverbhai Parmar बनाम गुजरात राज्य मामले में तय किया गया था। हांलाकि, व्यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए यह समयसीमा सुप्रीम कोर्ट 10 या अधिकतम 15 दिन तक बढ़ा सकता है।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि सुनवाई के बाद मामलों को स्थगित करना बेहद खतरनाक और निराशाजनक संदेश देता है। कुछ जजों की छवि ऐसे बनी है कि वकील बहस शुरू करें और तुरंत स्थगन मिल जाए — यह प्रवृत्ति बहुत हानिकारक है।
पहले भी खंडपीठ ने कहा था कि हाईकोर्ट्स के “परफॉर्मेंस आउटपुट्स” का आकलन किया जाएगा और जजों की चाय/कॉफी ब्रेक की प्रथा पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स से डेटा मांगा था कि 31 जनवरी 2025 से पहले आरक्षित (reserved) फैसले कब सुनाए और कब अपलोड किए गए।
आज, हाईकोर्ट्स द्वारा दिए गए डाटा पर अमीकस क्यूरी (Adv. फौजिया शकील) ने तालिका प्रस्तुत की। जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया कि समान प्रारूप (uniform format) तैयार किया जाए जिसमें यह तीन बातें साफ लिखी जाएँ — (i) फैसला आरक्षित करने की तारीख (ii) फैसला सुनाने की तारीख (iii) फैसले के अपलोड होने की तारीख। साथ ही, यदि केवल ऑपरेटिव पार्ट सुनाया गया हो तो वह भी स्पष्ट होना चाहिए।
सीनियर एडवोकेट अजीत कुमार सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि सभी जजों के लिए एक ही पैमाना लागू नहीं हो सकता, क्योंकि क्रिमिनल अपीलें सुनने वाले जजों की कार्यप्रणाली और जमानत मामलों वाले जजों की कार्यप्रणाली अलग होती है। उन्होंने यह भी कहा कि कई मामलों में 5 दिन की सीमा कारणयुक्त निर्णय लिखने के लिए बहुत कम हो सकती है।

