हाईकोर्ट पीएससी की परीक्षा में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए अध्यादेश लागू करने का निर्देश राज्य सरकार को नहीं दे सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

13 Feb 2020 10:53 AM IST

  • हाईकोर्ट पीएससी की परीक्षा में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए अध्यादेश लागू करने का निर्देश राज्य सरकार को नहीं दे सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लोक सेवा आयोग की परीक्षा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने शुक्रवार को इस संबंध में दायर याचिका खारिज़ कर दी।

    जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में राज्य को इस संबंध में अध्यादेश लागू करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया।

    उन्होंने कहा-

    "यदि राज्य सरकार का आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए अध्यादेश को लागू करने का इरादा नहीं है तो यह न्यायालय राज्य सरकार को एक विशेष अध्यादेश जारी करने का आदेश जारी नहीं कर सकता है, जो समय बीतने के साथ व्यतीत पहले ही समाप्त हो चुका है। यदि राज्य सरकार ने विधानसभा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का अध्यादेश नहीं रखा है तो कोर्ट शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों की बिनाह पर परम आदेश के जर‌िए अध्यादेश को लागू करने के लिए रिट जारी नहीं कर सकता है।"

    उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं ने 27 नवंबर, 2019 को जारी पीएससी के विज्ञापन को चुनौती दी थी, जिसमें ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों को आरक्षण नहीं ‌दिया गया था। याचिका में कहा गया था कि इससे 4 सितंबर, 2019 को राज्यपाल द्वारा लागू 'छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनसुचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) (संशोंधन) अध्यादेश, 2019 को अतिक्रमित किया गया है।

    याचिका में कहा गया था कि यदि परिस्‍थ‌ितियों की आवश्यकता है और यदि राज्य विधानसभा सत्र में नहीं है तो राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 213 (1) के तहत अध्यादेश को लागू करने का अधिकार है। हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 213 (2) के अनुसार ऐसा अध्यादेश, यदि राज्य विधायिका ने इसे पास न करे तो विधानमंडल की बैठक से छह सप्ताह बाद समाप्त हो जाता है।

    मौजूदा मामले में, राज्य विधानसभा की बैठक 2 और 3 अक्तूबर को हुइ थी, इसलिए, 13 नवंबर, 2019 को छह सप्ताह की अवधि समाप्त हो गई और चूंकि अध्यादेश को मंजूरी नहीं दी गई थी, इसलिए वह समाप्त हो गया। नतीजतन, 27 नवंबर को जारी विज्ञापन अध्यादेश के अनुसार नहीं था।

    हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2 अक्तूबर को ‌हुइ सदन की बैठक, अनुच्छेद 213 (2) या अनुच्छेद 174 के प्रयोजनों के लिए आवश्यक विधानसभा की बैठक के अनुरूप नहीं थी, क्योंकि उस बैठक का आयोजन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्मृति में किया गया ‌था, न कि किसी विधायी कार्य के ‌लिए।

    "उस सत्र में कोई विधायी कार्य नहीं किया गया था। बैठक का उद्देश्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देना था। नतीजतन, उस बैठक को अनुच्छेद 213 (2) या अनुच्छेद 174 के उद्देश्य से आयोजित विधानसभा की बैठक नहीं माना जा सकता है।"

    याचिकाकर्ताओं ने आगे कहा कि बाद में 25 नवंबर, 2019 को विधानसभा का सत्र शुरू हुआ और 2 दिसंबर, 2019 को समाप्त हुआ, और उसे ही विधानसभा का सत्र माना जाएगा। इसलिए, 27 नवंबर को पीएससी विज्ञापन को अधिसूचित किया गया, तब अध्यादेश को लागू माना जाएगा।

    हालांकि कोर्ट इन तर्कों से सहमति नहीं हुई और कहा कि 2 अक्तूबर को आयोजित विधानसभा सत्र अनुच्छेद 213 (2) के संदर्भ में एक विधानसभा सत्र था, ‌इसलिए अध्यादेश 14 नवंबर, 2019 को समाप्त हो गया। इसलिए, विज्ञापन में कोई कानूनी ग़लती नहीं है।

    कोर्ट ने कहा-

    "याचिकाकर्ता का तर्क कि 2 और 3 अक्तूबर को आयोजित विधान सभा सत्र में कोई विधायी कार्य नहीं किया गया, इसलिए अनुच्छेद 174 के संदर्भ में एक सत्र नहीं था, कोअनुच्छेद 174 के शब्दों के मद्देनज़र स्वीकार नहीं किया जा सकता है, और इसकी अगली व्याख्या, नए शब्द जोड़ने के बराबर होगी, जोकि अनुच्छेद नहीं है।

    अनुच्छेद 174 को पढ़ने से पता चलता है कि यह राज्यपाल को राज्य विधान सभा की बैठक आयोजित करने की शक्ति प्रदान करता है। यह विधायी कार्य या अन्य कार्य आयोजित करने अंतर या अपवाद नहीं करता है।"

    याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि यदि राज्य सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए अध्यादेश लागू करने का इरादा नहीं रखती है तो न्यायालय राज्य को विशेष अध्यादेश जारी करने के लिए आदेश नहीं देस सकता है।

    "यदि किसी अध्यादेश को अनुच्छेद 213 (2) (ए) के तहत निर्धारित अविधि के बाद भी जारी रखना है तो विधानसभा को उक्त अध्यादेश के प्रावधानों को शामिल करते हुए एक कानून बनाना है। यदि विधानमंडल ने ऐसा नहीं किया है तो यह अदालत विधानमंडल को परम आदेश की रिट जारी नहीं कर सकती क्योंकि यह राज्य के अधिकार में अतिक्रमण करने के बराबर होगा।"

    मामले का विवरण:

    केस टाइटल: इरफान कुरैशी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग व अन्य।

    केस नं : डब्ल्यूपीएस नंबर 198/2020

    कोरम: ज‌स्टिस गौतम भादुड़ी

    वकील: एडवोकेट रोहित शर्मा, तनुज पटवर्धन और अरुण कुमार पाठक (याचिकाकर्ता के लिए); एडिशनल एडवोकट जनरल अमृतो दास (राज्य के लिए); एडवोकेट आशीष श्रीवास्तव ( पीएसी के लिए) की ओर से एडवोकेट रोहिषेक वर्मा।

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