हाईकोर्ट पार्टियों के बीच समझौते में वर्णित प्रक्रिया को नजरंदाज करके स्वत: मध्यस्थ नियुक्त नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

20 July 2020 11:08 AM IST

  • हाईकोर्ट पार्टियों के बीच समझौते में वर्णित प्रक्रिया को नजरंदाज करके स्वत: मध्यस्थ नियुक्त नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट पार्टियों के बीच समझौते में मध्यस्थकार नियुक्त करने को लेकर वर्णित प्रक्रिया को नजरंदाज करके खुद से मध्यस्थ नियुक्त नहीं कर सकता।

    इस मामले में, स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसटीसी) और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के बीच समझौते के उपबंध 19 के माध्यम से इंडियन काउंसिल ऑफ आर्बिट्रेशन (आईसीए) के मध्यस्थता नियमों के तहत दोनों पक्षों के बीच विवाद के निपटारे के लिए प्रक्रिया निर्धारित की गयी थी।

    दोनों पक्षों के बीच विवाद पैदा हुआ और जेएसपीएल ने मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा नौ के तहत दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर करके उससे एसटीसी को करार अनुपालन को लेकर बैंक गारंटी (परफॉर्मेंस बैंक गारंटी) न भुनाने के निर्देश के साथ ही कुछ अन्य दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया था।

    एकल पीठ ने कुछ दिशानिर्देशों के साथ याचिका का निपटारा कर दिया था, लेकिन खंडपीठ ने एकल पीठ के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को खुद से मध्यस्थ नियुक्त कर दिया था।

    सुनवाई के दौरान मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम की धारा नौ के तहत स्वत: मध्यस्थ नियुक्ति के खंडपीठ के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी। अपीलकर्ता एसटीसी की दलील थी कि मध्यस्थ की नियुक्ति का निर्णय दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के उपबंध 19 के प्रावधान के खिलाफ है।

    न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने अपील मंजूर करते हुए तथा समझौते के उपबंध को ध्यान में रखते हुए अपने आदेश में कहा :

    दोनों पक्षों के बीच समझौते का उपबंध 19 किसी भी विवाद के निपटारे के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ आर्बिटेशन (आईसीए) के मध्यस्थता नियमों के पालन पर सहमति प्रदान करता है। जब दोनों पक्षों ने मध्यस्थकार की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर समझौता कर रखा है तो संबंधित अधिनियम की धारा नौ के तहत सुनवाई के दौरान उसे नजरंदाज करके हाईकोर्ट द्वारा स्वत: मध्यस्थ नियुक्त किया जाना, हमारे विचार से सही नहीं था। इसलिए यह आदेश निरस्त करने योग्य है।

    केस का नाम : स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड

    केस नं. : सिविल अपील नं. 2747/2020

    कोरम : न्यायमूर्ति आर. भानुमति और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी

    वकील : स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की ओर से एडवोकेट तारकेश्वर नाथ और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल जैन

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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