हाथरस केसः कानून के 510 छात्रों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को ‌लिखा पत्र, दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग

LiveLaw News Network

8 Oct 2020 3:30 AM GMT

  • हाथरस केसः कानून के 510 छात्रों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को ‌लिखा पत्र, दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग

    कानून के 510 छात्रों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को हाथरस की घटना पीड़िता का रात 2.30 बजे अंतिम संस्कार कराने का निर्देश जारी करने में शामिल रहे दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा है।

    छात्रों ने उत्तर प्रदेश पुलिस, हाथरस पुलिस, और हाथरस जिला प्रशासन की जांच सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल द्वारा कराने का निर्देश देने की प्रार्थना की है।

    हर साल बढ़ रहे बलात्कार के मामलों के आंकड़ों और सजा की दर में कोई सुधार नहीं होने की ओर इशारा करते हुए छात्रों का कहना है कि बलात्कार की घटना इतनी आम हो गई है, कि हम केवल ऐसे गिने-चुने मामलों पर ही बात करते हैं, जिसमें अपराध की प्रकृति ऐसी होती है, जिससे समाज की ‌चेतना भी हिल उठती है।

    पत्र में छात्रों ने कहा है कि भले ही हाथरस मामले में पीड़‌िता ने मौत से पहले दिए बयान में बलात्कार और खुद पर हुए अत्याचार का जिक्र किया था, पुलिस अधिकारियों ने पीड़ित परिवार को उनकी बेटी के अंतिम संस्कार से भी वंचित कर दिया। उन्हें अवैध तरीके से घर के अंदर बंद कर दिया।

    पत्र में कहा गया है, "... पुलिस अधिकारी, जो न्याय प्रणाली की जांच शाखा है, और समाज के संरक्षक हैं और संज्ञेय मामलों में आरोपों दर्ज करने, जांच करने और चार्ज फ्रेम करने के लिए कानून द्वारा जिम्मेदार हैं, अब वे ही पीड़ित और पीड़‌ित के परिवार को अंतिम संस्‍कर से वंचित कर रहे हैं....."

    छात्रों ने उन आपराधिक कानून प्रावधानों का जिक्र किया है, जिनमें अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों और प्रक्रियाओं को निर्धारित किया गया है, जिसके आधार पर जांच एजेंसी स्वयं और अपने कृत्यों का संचालन करती है, इसलिए, 30 सितंबर 2020 की रात के कृत्य के लिए पुलिस प्राध‌िकरण पूछताछ का उत्तरदायी है।

    पत्र में कहा गया है कि उक्त कृत्‍य पीड़िता का "गरिमा के साथ मरने का अधिकार छीन लेता है" और यह कि पुलिस अधिकारियों के कृत्य संवैधानिक रूप से और कानून के मूल प्रावधानों के अनुसार उचित नहीं हैं।

    छात्रों ने पत्र में परमानंद कटरा, एडवोकेट बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया (1995) 3 एससीसी 248 का हवाला देते हुए कहा, "मौ‌लिक अधिकार, सम्मान के साथ जीवन का अधिकार, में संस्कृति और परंपरा के अनुसार व्यक्‍ति के उचित अंतिम संस्कार का अधिकार भी शामिल है‌, जिसकी मृत्यु हो गई है।

    छात्रों का दावा है कि आतंकवादी अजमल कसाब को भी उचित अंतिम संस्‍कर दिया गया था, लेकिन वह मानवता हाथरस की घटना की प‌ीड़ित और उसके परिवार के मामले में नहीं दिखी, जिन्होंने भारत में अपना सारा जीवन बिताया है, और अपनी बेटी को खो दिया है...।

    पत्र में कहा गया है, "हाथरस पुलिस ने छात्रों और नागरिकों के दिलों में सत्तावाद का भय पैदा किया है, यह सवाल कि बहुत सारी कानून के छात्राएं पूछ रही हैं कि क्या पुलिस अपराधी के लिए अपराध पूरा करने की भूमिका निभा रही है...।

    उन्नाव रेप केस, कठुआ रेप केस, और हालिया हैदराबाद रेप केस में कोर्ट के हस्तक्षेप की ओर इशारा करते हुए, छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट से बयान, निर्देश, या अवलोकन देने का आग्रह किया है।

    छात्रों ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्भया फंड में मौजूद धन का उपयोग करने के लिए महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ परिवार के अधिकार के संबंध में उपयुक्त दिशानिर्देशों पर चर्चा करने या जारी करने की भी प्रार्थना की है। पत्र में सभी फास्ट ट्रैक कोर्ट समेत सभी उपायों की कड़ाई से कार्यान्वयन की प्रार्थना की गई है।

    पत्र नोएडा के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल से नाओमी टिंग और ज़रीफ़ होसैन ने लिखा है, और देश भर के लॉ स्कूलों के छात्रों ने हस्ताक्षर किए हैं।

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