"ये इसलिए हुआ कि आपने पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया था," सुप्रीम कोर्ट ने मोहलत की अवधि में ब्याज वसूलने के मुद्दे पर रुख स्पष्ट न करने पर केंद्र सरकार की खिंचाई की
LiveLaw News Network
26 Aug 2020 4:48 PM IST
COVID-19 के कारण बैंकों की ओर से ऋणों की ईएमआई जमा करने पर दी गई मोहलत 31 अगस्त को समाप्त हो रही है, हालांकि केंद्र सरकार ने उक्त अवधि में ईएमआई पर देय ब्याज के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को फटकार लगाई।
जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने केंद्र सरकार को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें एक सप्ताह के भीतर ब्याज भुगतान के मुद्दे पर स्पष्ट रूप से अपना पक्ष रखने को कहा गया और मामले को आगे विचार करने के लिए 1 सितंबर को सूचीबद्ध किया गया।
सीनियर एडवोकेट राजीव दत्ता ने पीठ को अवगत कराया कि केंद्र सरकार ने अब तक अपना हलफनामा दायर नहीं किया है और स्थगन के बाद स्थगन की मांग कर रहा है, भले ही वह अदालत से कह रहा हो कि वह वित्त मंत्रालय से निर्देश मांगेगा।
दत्ता ने कहा, "शुरुआत से ही, आरबीआई कह रहा है कि वह इन मुद्दों को ध्यान में रखेगा। कितने लोगों ने ऋण लिया है, का आंकड़ा सरकार से मांगा गया है, लेकिन यह अब तक आया नहीं है। जबकि मैं केवल ईएमआई की बात कर रहा हूं।"
इस बिंदु पर, जस्टिस भूषण ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि केंद्र ने इस संबंध में हलफनामा क्यों नहीं दायर किया। उन्होंने कहा आरबीआई ने 6 अगस्त को निर्णय लिया है कि इस मुद्दे पर बैंकों द्वारा क्षेत्रीय आधार पर निर्णय लिया जाएगा। पीठ ने कहा कि यह "मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने" जैसा होगा, और केंद्र सरकार की, अपना रुख न स्पष्ट करने और "आरबीआई के पीछे छिपने" के कारण खिंचाई की।
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि जब 31 अगस्त को मोहलत की अवधि खत्म होने वाली है, एक सितंबर से डिफॉल्ट शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा, "मैं केवल यह कह रहा हूं कि जब तक इन याचिकाओं पर फैसला नहीं होता है, तब तक विस्तार समाप्त न हो।"
हालांकि, पीठ ने एक सितंबर को मामले को सूचीबद्ध करने से पहले ऐसे आदेश पारित नहीं किए। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि COVID-19 महामारी के मद्देनजर दी गई मोहलत की अवधि के दौरान निलंबित ऋण भुगतान किस्तों के लिए "ब्याज पर ब्याज वसूलने में कोई मेरिट नहीं" है और एक बार मोहलत तय हो जाने के बाद, इसे वांछित उद्देश्यों की पूर्ति करनी चाहिए और सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करने पर विचार करना चाहिए क्योंकि बैंकों पर सब कुछ नहीं छोड़ा जा सकता है।
पृष्ठभूमि
पीठ आगरा निवासी गजेंद्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने आरबीआई के 27 मार्च के नोटिफिकेशन के एक हिस्से को "गैर-कानूनी" घोषित करने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि, यह अधिस्थगन अवधि के दौरान ऋण राशि पर ब्याज वसूलता है, जिससे कर्जदार होने के कारण याचिकाकर्ता को कठिनाई हुई है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त 'जीवन के अधिकार' में बाधा पड़ी है।
याचिकाकर्ता ने सरकार और आरबीआई को मोहलत की अवधि के दौरान ब्याज न लेकर ऋण के पुनर्भुगतान में राहत प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी। चार जून को सुप्रीम कोर्ट ने मोहलत के दौरान ऋण पर ब्याज की माफी के मुद्दे पर वित्त मंत्रालय से जवाब मांगा था क्योंकि आरबीआई ने कहा था कि बैंकों की वित्तीय व्यवहार्यता को जोखिम में डालकर ब्याज की माफी करना समझदारी नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में दो पहलू विचाराधीन हैं - मोहलत की अवधि के दौरान ऋण पर कोई ब्याज भुगतान और ब्याज पर कोई ब्याज नहीं लिया जाएगा। कोर्ट ने कहा था कि ये चुनौतीपूर्ण समय हैं और यह एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि एक तरफ, मोहलत प्रदान की जाती है और दूसरी ओर, ऋण पर ब्याज लगाया जाता है।
26 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और आरबीआई से अपील की थी कि वह मोहलत की अवधि के दौरान ऋण पर ब्याज लेने को चुनौती देने वाली याचिका का जवाब दें। आरबीआई ने अपने जवाब में अदालत को बताया था कि COVID-19 के कारण ऋण अदायगी के संबंध में राहत प्रदान करने के लिए सभी संभव उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन मजबूरन ब्याज की छूट के फैसले को विवेकपूर्ण नहीं मानता है, यह बैंकों की वित्तीय व्यवहार्यता के लिए जोखिम भरा होगा, जिसे विनियमित करना अनिवार्य है और जमाकर्ताओं के हितों को खतरे में डालना होगा।
आरबीआई ने अपने बयान में कहा था कि 27 मार्च को जारी किए गए परिपत्र की घोषणा को बाद में 17 अप्रैल और 23 मई को संशोधित किया गया था, जिसके बाद मोहलत की अवधि को तीन और महीने यानी 1 जून से 31 अगस्त, 2020 तक के लिए बढ़ाया गया था।