पांच साल निरंतर नौकरी के बाद इस्तीफे पर ग्रेच्युटी का भुगतान अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
18 April 2020 10:45 AM IST
"ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम की धारा 4(एक)(बी) के तहत 'टर्मिनेशन' (सेवा से निष्कासन) में 'इस्तीफा' भी शामिल"
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के तहत पांच साल की निरंतर सेवा के बाद इस्तीफे पर भी ग्रेच्युटी का भुगतान करना होगा।
न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की खंडपीठ ने संबंधित अधिनियम की धारा-4 के तहत 'टर्मिनेशन' शब्द में इस्तीफा भी शामिल होगा।
सुप्रीम कोर्ट राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम लिमिटेड द्वारा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले सभी लाभों के दावे संबंधी एक मृत कर्मचारी की विधवा की याचिका मंजूर कर ली थी।
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इस मामले में कर्मचारी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) की मांग ठुकराये जाने के बाद अपना इस्तीफा सौंप दिया था। उसने खुद को अवसादग्रसित होने का दावा किया था और बाद में उसका स्वास्थ्य और अधिक खराब होता चला गया था। उसका इस्तीफा मंजूर कर लिया गया था। उसकी मौत के बाद उसकी पत्नी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने इस मामले में मृतक को वीआरएस के दायरे में रखे जाने तथा उसके अनुकूल सेवानिवृत्ति का लाभ देने का निर्देश दिया था।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सड़क परिवहन निगम की अपील मंजूर करते हुए बेंच ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्रवाई लंबित होने के बावजूद यदि वीआरएस का आवेदन किया जाता है, तो कर्मचारी को उस आवेदन को मंजूर करने की मांग करने का अधिकार नहीं होगा। यदि नियोक्ता अनुशासनात्मक कार्रवाई संबंधी जांच जारी रखना चाहता है तो वह वीआरएस संबंधी आवेदन पर विचार न करने का हकदार होगा।
बेंच ने आगे कहा :
"मामले के प्रतिवादियों की ओर से पेश रहे वकीलों ने सही कहा है कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम,1972 की धारा 4(एक)(बी) का प्रावधान कहता है कि पांच साल की निरंतर सेवा के बाद यदि कर्मचारी को नौकरी से निकाला जाता है तो भी उसे ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाएगा तथा इस तरह के टर्मिनेशन में इस्तीफा भी शामिल होगा। इस नजरिये से, यदि प्रतिवादी के पति को ग्रेच्युटी की राशि का भुगतान नहीं किया गया है, तो इसके भुगतान का दायित्व नियोक्ता पर बनता है और संबंधित अधिनियम के प्रावधानों के मद्देनजर प्रतिवादी संख्या-एक यह राशि हासिल करने का हकदार है। इस सिलसिले में यह निर्देश दिया जाता है कि अपीलकर्ता तदनुसार ग्रेच्युटी की गणना करेगा और यदि यह राशि प्रतिवादी संख्या-1 को नहीं मिली है, तो इसका भुगतान करेगा। यह भुगतान इस (आदेश की) तारीख से चार सप्ताह के भीतर किया जायेगा।"
केस नं. : सिविल अपील संख्या 2236/2020
केस का नाम : राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम लिमिटेड बनाम श्रीमती मोहनी देवी एवं अन्य
कोरम : न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना
वकील : एडवोकेट ऋतु भारद्वाज एवं एस. महेन्द्रन
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