न्यायिक नियुक्ति की सिफार‌िशों पर लंबे समय तक फैसला नहीं लेने का सरकार का रवैया ना तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया और ना ही स्वस्थ परंपराः जस्टिस चेलमेश्वर

LiveLaw News Network

10 Jan 2021 1:17 PM GMT

  • न्यायिक नियुक्ति की सिफार‌िशों पर लंबे समय तक फैसला नहीं लेने का सरकार का रवैया ना तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया और ना ही स्वस्थ परंपराः जस्टिस चेलमेश्वर

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, जस्टिस जे चेलमेश्वर ने केंद्र सरकार द्वारा न्यायिक नियुक्ति की अनुशंसाओं पर लंबे समय तक फैसला नहीं लेने के रवैये की आलोचना की और कहा कि यह "न तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया और न ही स्वस्थ परंपरा है।"

    उन्होंने कहा, "यदि सरकार के पास अनुशंसाओं पर आपत्त‌ि करने के लिए ठोस और कानूनी रूप से तर्कसंगत सामग्री है, तो उन्हें आपत्ति करने और चीफ जस्टिस के साथ चर्चा करने का अधिकार है। लेकिन केवल कुछ तय नहीं करना है अनुशंसाओं को मंजूरी दिए बिना मामलों पर बैठे रहना, निश्चित रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं और न ही यह एक स्वस्थ परंपरा है।"

    जस्टिस जे चेलमेश्वर, कन्नबीरन मेमोरियल लेक्चर सीरीज़ के तहत आयोजित वेब‌िनार में बोल रहे थे, जिसका विषय "न्यायिक नियुक्ति में जवाबदेही और पारदर्शिता: संस्थागत तंत्र की आवश्यकता" ‌था।

    जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि अभिनव चंद्रचूड़ की किताब 'द इन्फॉर्मर कॉन्‍स्ट‌ीट्यूशन' कोलेजियम की सिफारिशों के आधार पर सरकार के ऐसे विशिष्ट उदाहरण हैं।

    "द्वितीय न्यायाधीश मामले से पहले राजनीतिक कार्यकारिणी द्वारा सत्ता के दुरुपयोग के संबंध में उस किताब में साक्ष्य दर्ज किए गए हैं। सरकार चीफ जस्टिस द्वारा की गई अनुशंशाओं पर बैठ गई, सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया में देरी की क्योंकि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों या सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिएग गए सुझाव उनकी पसंद के मुताबिक नहीं थे।"

    "निश्चित रूप से, यदि सरकार के पास अनुशंसाओं पर आपत्त‌ि करने के लिए ठोस और कानूनी रूप से तर्कसंगत सामग्री है, तो उन्हें आपत्ति करने और चीफ जस्टिस के साथ चर्चा करने का अधिकार है। लेकिन केवल कुछ तय नहीं करना है अनुशंसाओं को मंजूरी दिए बिना मामलों पर बैठे रहना, निश्चित रूप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं और न ही यह एक स्वस्थ परंपरा है। ऐसी चीजें होती हैं। "द इन्फॉर्मल कॉन्‍स्ट‌ीट्यूशन" विशिष्ट उदाहरण देती है। मुझे विशेष रूप से मध्य प्रदेश का एक मामला याद आता है, जहां स्थायी नियुक्ति के लिए संबंधित मुख्य न्यायाधीश द्वारा तीन मौकों पर एक अतिरिक्त जज के नाम की सिफारिश की गई। हर बार, भारत सरकार ने अतिरिक्त न्यायाधीश के कार्यकाल को बढ़ाने के आदेश जारी किए।"

    2019 में, गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार ने एके कुरैशी को पदोन्नत करने के प्रस्ताव को रोक रखा है, क्योंकि उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश होने के रूप में सरकार के प्रतिकूल कुछ फैसले दिए थे। जीएचसीएए ने कहा था कि यद्यपि केंद्र ने उसी दिन की गई अन्य सिफारिशों को मंजूरी दे दी थी, लेकिन वह जस्टिस कुरैशी के प्रस्ताव पर बैठ गई। सुप्रीम कोर्ट में याचिका की कई पोस्टिंग के बाद, मंत्रालय ने ज‌स्टिस कुरैशी के उच्चीकरण के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन एक संशोधन के साथ कि उन्हें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के बजाय, जैसा कि मूल रूप से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा सुझाव दिया गया था, त्रिपुरा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। कॉलेजियम ने केंद्र सरकार द्वारा किए संशोधन पर आपत्ति नहीं जताई।

    2019 में, जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की एक डिवीजन बेंच ने भी उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की रिक्तियों की बढ़ती संख्या पर, लगभग 40 प्रतिशत, चेतावनी दी ‌थी। बाद में, उसी पीठ ने दिसंबर, 2019 में आदेश दिया कि सरकार को सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम द्वारा अनुमोदित अनुशंशाओं को छह महीने के भीतर नियुक्त करना चाहिए।

    जस्टिस चेलमेश्वर ने अपने भाषण में कहा, एनजेएसी मामले में उनके असंतोष में ऐसे उदाहरणों का उल्लेख किया गया है "जब कॉलेजियम ने संविधान के अनुसार आधिकारों का कड़ाई से पालन नहीं किया।"

    उन्होंने कहा, "दूसरे न्यायाधीश मामले के बाद, जब कॉलेजियम की संवैधानिक न्यायालयों के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में भूमिका बढ़ गई, ऐसे उदाहरण रहे, जब कॉलेजियम ने संविधान के अनुसार अधिकार का कड़ाई से प्रयोग नहीं किया...जैसा कि द्वितीय न्यायाधीश मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समझाया गया है। मैंने अपने असंतोषपूर्ण निर्णय में कम से कम दो ऐसे उदाहरण दर्ज किए हैं। ऐसा नहीं है कि केवल दो उदाहरण थे, और भी बहुत थे, और उन्हें दर्ज किया गया था। मेरा विचार विवाद पैदा करना नहीं था।"

    ज‌स्टिस चेलमेश्वर द्वारा एनजेएसी मामले में दर्ज असंतोष में उल्लिखित उदाहरण वे घटनाएं हैं, जो शांति भूषण और एक अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और एक अन्य, (2009) 1 एससीसी 657, पीडी दिनाकरन (1) बनाम न्यायाधीश जांच समिति और अन्य, (2011) 8 एससीसी 380, पीडी दिनाकरन (2) बनाम न्यायाधीश जांच समिति और और एक अन्य, (2011) 8 एससीसी 474 में रिपोर्ट किए गए हैं।

    पूरा भाषण पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story