सरकार ने किसान संबंधी कानूनों के तहत विवाद निपटारे के लिए नियम अधिसूचित किये

LiveLaw News Network

22 Oct 2020 11:31 AM GMT

  • सरकार ने किसान संबंधी कानूनों के तहत विवाद निपटारे के लिए नियम अधिसूचित किये

    केंद्र सरकार ने 'फार्मर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज (डिस्प्यूट रिजॉल्यूशन) रूल्स, 2020 को अधिसूचित कर दिया है।

    केंद्र सरकार ने ये नियम मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020 की धारा 22 तथा धारा 14 की उपधारा आठ एवं नौ के तहत प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके तैयार किये हैं।

    इस कानून की धारा 14 विवाद निवारण के लिए तंत्र उपलब्ध कराती है। इसमें प्रावधान किये गये हैं कि, जहां कृषि समझौते के अंतर्गत धारा 13 की उपधारा (1) के तहत जरूरी सुलह प्रक्रिया के प्रावधान नहीं किये गये हैं या कृषि समझौता करने वाली पार्टियां अपने विवाद का निपटारा उस धारा के तहत 30 दिनों के भीतर करने में असफल रहती हैं, तब ऐसी कोई भी पार्टी उस संबंधित सब- डिविजनल मजिस्ट्रेट का दरवाजा खटखटा सकती है, जिसके पास कृषि समझौतों के अंतर्गत सब- डिविजनल ऑथरिटी हो। धारा 22 केंद्र सरकार को नियम बनाने का अधिकार प्रदान करती है।

    अधिसूचित किये गये नये नियमों के अनुसार, संबंधित जमीन, जिस पर उपज पैदा की गयी है या की जानी है, उस क्षेत्र का सब- डिविजनल मजिस्ट्रेट ऐसे विवाद के निर्धारण के लिए सब- डिविजनल अधिकारी होगा। इन नियमों में आवेदन प्रारूप और सुलह बोर्ड के गठन तथा उसके द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया आदि को शामिल किया गया है। यदि सुलह बोर्ड विवाद के निपटारे में असफल रहता है या लेन-देन से जुड़े पक्ष 30 दिनों के भीतर विवाद के निपटारे में असफल रहते हैं तो पीड़ित पक्ष उसके बाद 14 दिनों के भीतर विवाद के निपटारे के लिए संबंधित सब- डिविजनल अधिकारी के समक्ष अर्जी दे सकते हैं। अधिकारी को तब संक्षिप्त रूप से विवाद का निर्धारण करना होगा। इसके लिए अपनायी जाने वाली प्रक्रिया इस नियमावली में दी गयी है।

    संबंधित जिला के कलेक्टर या उनके द्वारा नामित एडिशनल कलेक्टर, सब- डिविजनल अधिकारी द्वारा जारी आदेश के खिलाफ अपील के निर्धारण के लिए अपीलीय अधिकारी होगा।

    संसद द्वारा हाल ही में पारित कृषि सुधारों से संबंधित तीन कानूनों को चुनौती देने वाली रिट याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित हैं। इन कानूनों का देश भर के कई किसान संगठनों ने पुरजोर विरोध किया है।

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