समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए गे कपल ने केरल हाईकोर्ट में दायर की याचिका

LiveLaw News Network

27 Jan 2020 5:35 PM IST

  • समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए गे कपल ने केरल हाईकोर्ट में दायर की याचिका

    केरल के पहले 'विवाहित' समलैंगिक जोड़े निकेश और सोनू ने विशेष विवाह अधिनियम 1954 के प्रावधानों को चुनौती दी है। उन्होंने केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और समलैंगिक विवाह के पंजीकरण को अनुमति दिए जाने की मांग की है।

    कोर्ट ने उन दोनों की याचिकाओं पर सोमवार को केंद्र और केरल की सरकारों को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना, संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1), 19 (1) (ए) और 21 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनकी मुलाकात मई 2018 में हुई थी और उन्हें एक-दूसरे से प्यार हो गया। उन्होंने शादी करने का फैसला किया। सामाजिक प्रतिक्रिया के डर से उन्होंने एक मंदिर में 'गुप्त' रूप से विवाह किया।

    याच‌िकाकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने पता था कि धार्मिक संस्‍थान उन्हें विवाह प्रमाण पत्र जारी नहीं करेंगे, इसलिए उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत धर्मनिरपेक्ष विवाह का रास्ता चुना। तब उन्हें एहसास हुआ कि विशेष विवाह अधिनियम 1954, समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता है।

    याच‌िकाकर्ताओं ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के NALSA मामले में ‌दिए फैसले में अनुच्छेद 21 के तहत निजता और व्यक्तिगत स्वायत्तता के अधिकार के तहत यौन पहचान को चुनने के अधिकार को मौलिक अध‌िकार के रूप में मान्यता दी है। साथ ही 2018 नवतेज सिंह जौहर के मामले में समलैंगिकता डिक्रिमिनलाइज किया गया है।

    ये निर्णय तब तक निरर्थक और अधूरे होंगे, जब तक कि यौन अल्‍पसंख्यकों को विवाह संस्था में प्रवेश नहीं दिया जाता, ताकि वे भी जैसे चाहते हैं, वैसे अपने प्रेम को प्रकट कर सकें।

    या‌चिका में कहा गया ‌है कि कोई भी कानून, जो किसी व्यक्ति की यौन पहचान के आत्मनिर्णय के अधिकार की रक्षा करने में और उस पहचान के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार करने में विफल रहता है, वह व्यक्तिगत पसंद का अनादर करता है और इसलिए तर्कहीन है और स्पष्ट रूप से स्वेच्छाचारी है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

    यह कहा गया है कि विशेष विवाह अधिनियम से समलैंगिक समूह को बाहर रखना समाज द्वारा पुरुष और महिलाओं को दी गई तर्कहीन और भेदभावपूर्ण रूढ़िवादी लैंगिक भूमिकाओं पर आधारित है और इस प्रकार अनुच्छेद 15 (1) के तहत निर्धारित गैर-भेदभाव के परीक्षण को पास नहीं कर सकता है।

    याचिका में दलील दी गई कि कानून द्वारा समलैंगिक वैवाहिक संघों को मान्यता और स्वीकृति न देना अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि विवाह संस्था समाज में वैवाहिक जीवन के जर‌िए व्यक्तियों को कुछ अधिकार और विशेषाधिकार देती है। विशेष विवाह अधिनियम से समलैंगिक विवाह को बाहर रखने के कारण समलैंगिक जोड़ों को समान अधिकारों और विशेषाधिकारों से वंचित किया जाता है। इसे समलैंगिक जोड़ों की 'व्यक्तिगतता और स्वायत्तता पर हमला' कहा गया है।

    याचिका में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के 2015 के फैसले को संदर्भित किया गया है, जिसमें घोषणा की गई थी कि समलैंगिक जोड़ों को कानून के तहत शादी करने का अधिकार है।

    याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के उन प्रावधानों को, जो वे समलैंगिक जोड़ों को विवाह संस्था तक समान पहुंच से रोकते हैं, उन्हें असंवैधानिक घोषित किया जाए।

    उनकी मांग है कि ये घोषणा की जाए क‌ि वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह और पंजीकृत के हकदार हैं।

    याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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