गैंगस्टर विकास दुबे की पत्नी ने अपने खिलाफ धोखाधड़ी का मामला रद्द करने से इनकार करने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

LiveLaw News Network

29 Nov 2021 9:29 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट में मारे गए गैंगस्टर विकास दुबे (बीकरू, कानपुर के) की पत्नी ऋचा दुबे ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419 और 420 के तहत दर्ज एक मामले में कथित तौर पर उसके नौकर का उसकी मर्जी के बिना सिम कार्ड का इस्तेमाल करने के मामले में पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

    न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ द्वारा मामले/एसएलपी की सुनवाई मंगलवार को होने की संभावना है।

    याचिकाकर्ता ऋचा दुबे ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक अक्टूबर, 2021 के आदेश को चुनौती दी। इसमें हाईकोर्ट ने उसकी सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया था। उक्त याचिका में वर्तमान मामले में दर्ज एफआईआर और उससे उत्पन्न होने वाली कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई है।

    दुबे एक गैंगस्टर विकास दुबे की पत्नी है। विकास दुबे को पिछले साल कानपुर के कुख्यात बिकरू मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या मास्टरमाइंड कहा जाता है।

    अधिवक्ता प्रणव दीश, ऋषभ राज ने एओआर ऋषि कुमार सिंह गौतम के माध्यम से एसएलपी दायर की।

    संक्षेप में मामला

    अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, ऋचा दुबे एक सिम कार्ड का उपयोग कर रही थी, जो मूल रूप से एक महेश के नाम पर था। इस सिम कार्ड इस्तेमाल ऋचा दुबे अपने नौकरी की मर्जी के खिलाफ इस्तेमाल कर रही थी।

    इस मामले में एफआईआर एसआईटी की विस्तृत रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई। यह रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि ऋचा दुबे द्वारा दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया गया, जो कि प्रकृति में अपराध है।

    विशेष रूप से कुख्यात बिकरू मुठभेड़ के बाद उसके नौकर महेश ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत एक बयान दर्ज कराया था। उसने आरोप लगाया था कि उसके मोबाइल सिम कार्ड का इस्तेमाल ऋचा दुबे द्वारा 2017 से उसकी मर्जी के खिलाफ किया गया।

    उसने यह भी दावा किया कि उसने कोई 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' नहीं दिया था, जो अन्यथा ट्राई के दिशानिर्देशों के अनुसार अनिवार्य है। उक्त दिशानिर्देश कहते हैं कि रक्त संबंध के अलावा, सिम कार्डधारक का नाम बिना किसी "आपत्ति प्रमाण पत्र" के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बदला या उपयोग नहीं किया जा सकता है।"

    उसने यह भी दावा किया कि चूंकि दुबे एक गैंगस्टर था, इसलिए उसके पास उसके निर्देश का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

    दूसरी ओर, ऋचा दुबे ने तर्क दिया कि विचाराधीन सिम कार्ड का उनके द्वारा किसी भी अपराध में दुरुपयोग नहीं किया गया। इसलिए उसने जब भी जरूरत पड़ी अपने नौकर के मोबाइल का इस्तेमाल किया और महेश को इससे कोई समस्या नहीं थी।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में कोर्ट ने नोट किया था कि ऋचा दुबे ने एक प्रमुख स्थिति में होने के कारण महेश को अपना नौकर बना दिया कि वह उसे सिम प्रदान करे और उसका उपयोग उसके लाभ के लिए करे।

    इसके अलावा, आईपीसी की धारा 415 के तहत सिम कार्ड को एक संपत्ति के रूप में रखते हुए अदालत ने कहा कि भय मनोविकृति के कारण नौकर मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का साहस नहीं जुटा सका।

    अंत में यह निष्कर्ष निकालते हुए कि अपराध प्रथम दृष्टया आवेदक के खिलाफ बनाया गया, अदालत ने इस प्रकार नोट किया,

    "बनाए जा रहे अपराध केवल प्रतिरूपण और धोखा देने, उसके नौकर और उसे उसकी सहमति के बिना संपत्ति (सिम कार्ड) देने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए, आईपीसी की धारा 419, 420 के तहत अपराध के लिए सामग्री पूरी तरह से बनाई गई है। ऐसा करने में आवेदक का स्पष्ट पुरुषार्थ है, जो प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड के सामने स्पष्ट है। भारत सरकार, संचार मंत्रालय और आईटी विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के खंड -7 और 10 के अनुसार भी है। दूरसंचार विभाग, दिनांक 9.8.2012 के अनुसार, आवेदक के विरुद्ध प्रथम दृष्टया अपराध बनता है।"

    इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ऋचा दुबे की याचिका को खारिज कर दिया था।

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