डॉक्टरों को मुफ़्त उपहार | सुप्रीम कोर्ट ने फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस कोड को वैधानिक बल देने का आह्वान किया

Shahadat

19 Nov 2025 9:31 AM IST

  • डॉक्टरों को मुफ़्त उपहार | सुप्रीम कोर्ट ने फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस कोड को वैधानिक बल देने का आह्वान किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (18 नवंबर) को केंद्र सरकार पर दबाव डाला कि क्या वह यूनिफ़ॉर्म कोड ऑफ़ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस (UCPMP), 2024 को वैधानिक समर्थन देने का इरादा रखती है। कोर्ट ने कहा कि स्वैच्छिक व्यवस्था उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाती है और दवा कंपनियों के कदाचार के खिलाफ कोई प्रभावी प्रवर्तन तंत्र प्रदान नहीं करती है।

    एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि 2024 का UCPMP पूरी तरह से स्वैच्छिक 2015 UCPMP से अनिवार्य व्यवस्था में बदलाव है, वहीं जस्टिस मेहता ने कहा कि 2024 की संहिता में आचार समिति का ढांचा उद्योग-नियंत्रित बना रहेगा।

    उन्होंने पूछा,

    "आखिरकार, सरकार का नियंत्रण क्या है? सरल समाधान यह होगा कि नियंत्रण आदेश (आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत) लाया जाए। UCPMP को नियंत्रण आदेश के रूप में शामिल करने से इसे और मज़बूती मिलेगी।"

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच अनैतिक संबंधों को रोकने के लिए दवा विपणन प्रथाओं के वैधानिक विनियमन की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMRAI) से एक वैधानिक तंत्र कैसे काम कर सकता है। इस पर सुझाव देने को कहा और संकेत दिया कि कोर्ट एक वैधानिक ढांचा तैयार होने तक दवा विपणन प्रथाओं को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकता है।

    जस्टिस मेहता ने कहा,

    कोर्ट चाहता है कि आप कम से कम हमें यह तो बताएं कि संहिता कैसी होनी चाहिए, यह कैसे काम करनी चाहिए। प्रक्रिया, उच्च मंच प्रदान करने की आवश्यकता होगी या नहीं? और यदि प्रदान किए जाते हैं तो शिकायत का निपटारा कौन करेगा? इसे कौन लागू करेगा, इसके लिए क्या तंत्र है? फिर विशाखा जैसे कुछ दिशानिर्देश, शायद बाद में आकार ले सकें।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने कहा कि वर्तमान कानूनी व्यवस्था केवल डॉक्टरों को उपहार और लाभ लेने के लिए दंडित करती है, जबकि इस तरह के प्रलोभन देने वाली दवा कंपनियों को कोई वैधानिक परिणाम नहीं भुगतना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह विसंगति ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा देती है, जिनके परिणामस्वरूप तर्कहीन नुस्खे, महंगी दवाएं और मरीजों के लिए हानिकारक अतार्किक संयोजन सामने आते हैं, जो अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।

    उन्होंने दलील दी कि बाजार में लगभग 47% दवा संयोजन अतार्किक बताए गए। कई बार-बार प्रतिबंध लगाने के बावजूद फिर से सामने आ रहे हैं। उन्होंने राज्यसभा की 59वीं रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों का हवाला दिया, जो निर्माताओं, मेडिकल एक्सपर्ट और नियामक अधिकारियों के बीच मिलीभगत का संकेत देते हैं।

    एएसजी केएम नटराज ने दलील दी कि नव संशोधित यूसीपीएमपी 2024 पारिख द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों का पर्याप्त रूप से समाधान करता है। उन्होंने कहा कि संहिता अब आचार समितियों, शिकायत पोर्टलों, अपील तंत्र, लेखा परीक्षकों, संघों से निलंबन या निष्कासन सहित दंड, फटकार आदि का प्रावधान करती है।

    उन्होंने दलील दी कि ये उपाय संहिता को एक स्वैच्छिक प्रणाली से एक "प्रवर्तनीय, प्रणाली-समर्थित ढांचे" में बदल देते हैं। उन्होंने कहा कि ये उपाय औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत प्रदान की गई व्यवस्था के अतिरिक्त हैं।

    हालांकि, जस्टिस मेहता ने बताया कि उपभोक्ताओं और रोगियों के लिए कोई वैधानिक उपाय उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत अभियोजन का अधिकार केवल औषधि निरीक्षकों के पास है और उपभोक्ता या रोगी की उस तंत्र तक पहुंच नहीं है। उन्होंने पूछा कि एक सामान्य व्यक्ति अनैतिक विपणन प्रथाओं को चुनौती देने के लिए अधिनियम का उपयोग कैसे कर सकता है।

    नटराज ने जब प्रस्तुत किया कि उपभोक्ता UCPMP के तहत शिकायत दर्ज कर सकते हैं, तो पीठ ने ₹1,000 जमा राशि की आवश्यकता और कंपनी के निदेशकों के नाम जैसी जानकारी प्राप्त करने में कठिनाइयों की ओर इशारा किया।

    जस्टिस मेहता ने पूछा,

    "औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत शिकायतें, आपकी शिकायतें, इसलिए विफल हो जाती हैं, क्योंकि आपको कंपनी के निदेशकों के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती। आपकी 90% शिकायतें केवल इसी कारण विफल हो जाती हैं। आप उपभोक्ता से क्या अपेक्षा करते हैं? यदि आप एक संहिता लाए हैं तो उस संहिता में उचित उपाय क्यों नहीं होने चाहिए, जिससे उपभोक्ताओं के पास अपनी शिकायत दर्ज करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक सुविधाजनक तंत्र हो कि व्यक्तियों या कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए?"

    उन्होंने आगे कहा कि नया UCPMP, हालांकि कथित तौर पर अनिवार्य है, वास्तव में "लगभग स्वैच्छिक" है, क्योंकि इसमें कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है।

    स्वैच्छिक संहिता की अप्रभावीता को स्वीकार करने वाले सरकार के पूर्व के बयानों का हवाला देते हुए कोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि क्या केंद्र सरकार एक वैधानिक तंत्र लाने का इरादा रखती है। कोर्ट ने उल्लेख किया कि आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत 2017 में एक मसौदा औषधि (नियंत्रण विपणन) आदेश प्रस्तावित किया गया था, लेकिन उसे कभी लागू नहीं किया गया।

    जस्टिस मेहता ने कहा कि एक सरल समाधान यह होगा कि संहिता को शामिल करते हुए एक वैधानिक नियंत्रण आदेश जारी किया जाए। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह एक अधिक कठोर तंत्र की संभावना पर सरकार से निर्देश लेंगे।

    अंततः, कोर्ट ने पक्षकारों को अपने सुझाव प्रस्तुत करने और नटराज को सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए समय दिया और मामले को 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

    मई, 2025 में न्यायालय ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि यदि डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाएं लिखना वैधानिक रूप से अनिवार्य कर दिया जाए तो दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को महंगे ब्रांड बेचने के लिए रिश्वत देने का मुद्दा सुलझ जाएगा।

    Case Title – Federation of Medical and Sales Representatives Associations of India and Ors. v. Union of India and Ors.

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