'फोरम शॉपिंग को मंजूरी नहीं दी जा सकती; राहत से इनकार का यह भी आधार': सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत रद्द की

LiveLaw News Network

8 Dec 2021 6:44 AM GMT

  • फोरम शॉपिंग को मंजूरी नहीं दी जा सकती; राहत से इनकार का यह भी आधार: सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत रद्द की

    सुप्रीम कोर्ट ने मकोका मामले में हाईकोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत को रद्द करते हुए कहा है कि "फोरम शॉपिंग" भी राहत से इनकार करने का आधार हो सकता है।

    आरोपी महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) और विभिन्न आईपीसी अपराधों के तहत अपराधों का सामना कर रहा था। उन्हें विशेष न्यायाधीश/मकोका और बॉम्बे हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। उसके बाद उन्होंने मकोका की वैधता को चुनौती देते हुए खंडपीठ के समक्ष एक रिट याचिका दायर की। रिट याचिका में खंडपीठ ने उन्हें जमानत पर रिहा करने का अंतरिम आदेश पारित किया।

    खंडपीठ के आदेश को चुनौती देते हुए राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने न्यायिक अदालतों से जमानत हासिल करने के असफल प्रयासों के बाद, कानून के अधिकार को चुनौती देने की आड़ में एक रिट याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इसे "फोरम शॉपिंग" करार दिया और कड़े शब्दों में इस आचरण की निंदा की।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "आरोपी की उपरोक्त गतिविधि को फोरम शॉपिंग कहा जा सकता है, जो बहुत ही निचले स्तर का है, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता है। इस आधार पर भी, आरोपी जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है और हाईकोर्ट द्वारा आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश रद्द किया जाना चाहिए।"

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने यह भी कहा कि आरोपी को अंतरिम राहत के रूप में जमानत पर रिहा करते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ कथित अपराधों की गंभीरता पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया है।

    वर्तमान मामले में, आरोपी पर आईपीसी की धारा 384, 386, 387 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था और उसके खिलाफ मकोका के प्रावधान लागू किए गए थे। इसके बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी के साथ-साथ मकोका के तहत अपराध के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था।

    इसके अलावा, जांच के बाद यह पाया गया कि-

    -आरोपी मटका का धंधा चला रहा है।

    -आरोपी छोटा शकील और उसके गिरोह को फंड मुहैया करा रहा है।

    -आरोपी हथियार खरीदने के लिए पैसे का इंतजाम कर रहा है।

    -आरोपी संगठित क्राइम सिंडिकेट का सक्रिय सदस्य है।

    सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने आईपीसी के तहत अपराधों के संबंध में आरोपों पर बिल्कुल भी विचार नहीं किया है।

    हाईकोर्ट के अवलोकन कि मकोका के प्रावधानों को लागू करने की मंजूरी कानून में खराब है क्योंकि रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है, इस पर बेंच ने कहा कि मकोका के प्रावधानों पर मुकदमा चलाने या लागू करने की मंजूरी पर अंतरिम राहत चरण में इस तरह के अवलोकन की आवश्यकता नहीं थी।

    बेंच के अनुसार, हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत चरण में मकोका के तहत अपराध से आरोपी को बरी कर दिया है और प्रतिवादी को मकोका से मुक्त करते हुए अंतरिम चरण में अंतिम राहत दी है, जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है।

    सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा है कि कई निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, आरोपी को जमानत पर रिहा करना और स्वतंत्रता आदि के दुरुपयोग पर आरोपी की जमानत रद्द करने के गलत आदेश को रद्द करना, दोनों अलग-अलग पायदान पर खड़े होंगे और अलग-अलग मानदंड लागू होंगे। इसलिए वर्तमान मामले में जमानत रद्द करने का सवाल नहीं है बल्कि अदालत द्वारा आरोपी को जमानत पर रिहा करने के गलत आदेश को रद्द करने और खारिज करने का सवाल है।

    ऐसा देखते हुए, बेंच ने जमानत आदेश को रद्द करना उचित समझा, जिसके कारण 2019 में आरोपी को रिहा किया गया था, और आरोपी को तुरंत आत्मसमर्पण करने और मुकदमे का सामना करने का निर्देश दिया। यदि प्रतिवादी तत्काल आत्मसमर्पण नहीं करता है तो पीठ ने निर्देश दिया है कि संबंधित अदालत द्वारा गैर-जमानती वारंट जारी करके उसकी उपस्थिति सुनिश्चित की जाए।

    केस शीर्षक: महाराष्ट्र राज्य बनाम पंकज जग्शी गंगरो

    सिटेशन: एलएल 2021 एससी 716

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