पूर्व आईएएस/आईपीएस अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपत‌ि को लिखा पत्र, दिल्ली दंगों की जांच के लिए जांच आयोग गठित करने की मांग

LiveLaw News Network

18 July 2020 9:48 AM GMT

  • पूर्व आईएएस/आईपीएस अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपत‌ि को लिखा पत्र, दिल्ली दंगों की जांच के लिए जांच आयोग गठित करने की मांग

    सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण समेत पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों, राजदूतों, पुलिस अधिकारियों, कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने राष्ट्रपति को एक पत्र भेजा है, जिसमें उत्तर-पूर्व दिल्‍ली में फरवरी, 2020 में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच के लिए "जांच आयोग" गठित करने की मांग की गई है।

    पत्र पर 72 व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किया है, और उसमें दिल्‍ली में हुई हिंसा में पुलिस की मिलीभगत के आरोपों को उजागर किया गया है और कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट, 1952 के तहत घटना की उच्‍च न्यायपालिका के वर्तमान/सेवान‌िवृत्त जज से "विश्वसनीय" और "निष्पक्ष" जांच कराने की की मांग की गई है।

    उल्लेखनीय है कि 23 से 26 फरवरी, 2020 के बीच उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई ‌थी। दिल्ली पुलिस ने मामले की जांच के लिए तीन विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है, जिसका नेतृत्व दिल्ली पुलिस के अधिकारी ही कर रहे हैं। इसके अलावा, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल भी दिल्ली दंगों के पीछे साजिश के पहलू की जांच कर रही है।

    पत्र में आरोप लगाया गया है कि दिल्ली पुलिस ने "जानबूझकर" हिंसा पर रोक नहीं लगाई और कुछ स्थानों पर, हिंसा में शामिल भी रही।

    मिसाल के तौर पर, चिट्ठी में मौजपुर मेट्रो स्टेशन के पास के एक वीडियो का जिक्र किया गया है, जिसमें वर्दीधारी पुलिसकर्मी एक घायल युवक को मार रहे थे। उक्त घटना के बाद उस युवक को कथित तौर पर 36 घंटे से अधिक समय तक पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में रखा था और उसे चिकित्सकीय सुविधा भी नहीं दी गई थी।

    पत्र में कहा गया है, भजनपुरा पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई एफआईआर में फैजान को पीटने वाले पुलिस के वीडियो फुटेज का कोई उल्लेख नहीं है और दिल्ली पुलिस ने मामले में किसी भी पुलिसकर्मी को आरोपी नहीं बनाया है।

    पत्र में कहा गया है कि दिल्ली हिंसा में दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही जांच विश्वास नहीं जगाती है और यह धारणा बन रही है कि एजेंसी "अपना बचाव" कर रही है। उन्होंने इसलिए राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हिंसा में शामिल रहे अधिकारी जांच में शामिल न हों। यह सुनिश्चित करने पर ही न्याय हो पाएगा।

    विभिन्न समाचारों और मीडिया चैनलों का हवाला देते हुए, पत्र में दिल्ली पुलिस द्वारा हिरासत में दि गई प्रताड़नाओं, हिरासत में रखे गए लोगों से पैसे की वसूली, और जबर्दस्ती बयान लेने की घटनाओं पर प्रकाश डाला गया है। यह भी आरोप लगाया गया है कि दिल्ली पुलिस पूछताछ के दौरान गैरकानूनी तरीके से काम कर रही है। गवाहों को डराने-धमकाने की कोशिश की जा रही है।

    मौजूदा मामलों में न्यायपालिका की ओर से राहत दिए जाने पर अतिरिक्त एफआईआर और अधिक कठोर धाराओं के तहत एफआईआर किए जाने के "पैटर्न" की ओर भी इशारा किया गया है।

    राजनीतिक पूर्वाग्रह

    पत्र में आरोप लगाया गया है कि पुलिस ने भाजपा नेताओं से जुड़े मामलों में एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया और ऐसी किसी भी शिकायत पर जांच नहीं की।

    पत्र में कहा गया है, "यह अत्यंत चिंताजनक है कि दिल्ली पुलिस ने लगभग 700 एफआईआर को सार्वजन‌िक करने से इनकार कर दिया। वास्तव में, एफआईआर का सारांश भी नागरिकों को उपलब्ध नहीं कराया गया है।"

    विरोध प्रदर्शनों को आपराध‌िक बताना

    पत्र में दिल्ली पुलिस के तरीके पर सवाल उठाया गया है। पुलिस की जांच में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को आपराधिक बताया जा रहा है और उन्हें एक साजिश बताया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में दंगे हुए।

    पत्र में राष्ट्रपति से उक्त मुद्दों का संज्ञान लेने और स्वतंत्र जांच आयोग गठित करने का आग्रह किया गया है, ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्‍चित हो सके।

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