ट्रेन लेट होने के कारण फ्लाइट छूटीः सुप्रीम कोर्ट जांच करेगा कि क्या रेलवे को यात्रियों को मुआवजा देना चाहिए?
LiveLaw News Network
8 Aug 2021 2:00 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यूनियन ऑफ इंडिया की तरफ से दायर उस याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें भारतीय रेलवे को ''लापरवाही और सेवा में कमी'' के लिए 40,000 रुपये का मुआवजा देने के आदेश को चुनौती दी गई है। राशि का भुगतान उन व्यक्तियों को किया जाना है,जिनको गंतव्य पर पहुंचने में 6 घंटे की देरी हो गई थी और इस कारण से उनकी फ्लाइट छूट गई।
रेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें जिला फोरम द्वारा दिए गए मुआवजे को बरकरार रखा गया है। यह निर्णय इस आधार पर लिया गया था कि रेलवे देरी का अनुमान लगा सकता था और यात्रियों को इस बारे में सूचित कर सकता था, और इसलिए यह लापरवाही और सेवा में कमी है।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस रवींद्र भट की एक डिवीजन बेंच ने प्रतिवादियों (यानी, रमेश चंद्र व अन्य) को नोटिस जारी करते हुए, फोरम के अधिकार क्षेत्र और भारतीय रेलवे के दायित्व की प्रकृति/सीमा के मुद्दे पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की है।
बेंच ने इस शर्त पर नोटिस जारी किया है कि भारत संघ रेल मंत्रालय के माध्यम से 4 सप्ताह की अवधि के भीतर कोर्ट की रजिस्ट्री में 25,000 की राशि जमा करवाएगा।
कोर्ट ने हालांकि यह स्पष्ट कर दिया है कि वह राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 21 अक्टूबर, 2020 के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक नहीं लगा रहा है।
रेल मंत्रालय के माध्यम से भारत संघ ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया है कि यदि आक्षेपित आदेश को निष्पादित किया जाता है, तो इससे भानुमती का पिटारा खुल जाएगा, जिससे फोरम के समक्ष मुकदमेबाजी की बाढ़ आ जाएगी और इससे किराए की वापसी से संबंधित मामलों के लिए एक बुरी मिसाल कायम होगी।
भारतीय रेलवे द्वारा यह तर्क भी दिया गया है कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर थी; यह यात्रा के दौरान हुई है, न कि प्रारंभिक स्टेशन इलाहाबाद से प्रस्थान के समय। वहां से ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चली थी।
इसके अलावा, यह तर्क दिया गया है कि आयोग ने इस तथ्य पर विचार किए बिना उनके दावे को खारिज कर दिया कि भारतीय रेलवे सम्मेलन कोचिंग दर टैरिफ संख्या 26 भाग- I (खंड I) (Rule 115 of Indian Railway Conference Coaching Rate Tariff No. 26 Part-.I (Volume I))के नियम 115 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रेल प्रशासन टाइम टेबल में दिखाए गए शेड्यूल के अनुसार ट्रेनों के आगमन और प्रस्थान की गारंटी नहीं देता है। इसलिए, नियमों के अनुसार, सामान को हुए किसी भी नुकसान या किसी अन्य असुविधा के लिए रेलवे जिम्मेदार नहीं है।
मामले के तथ्यः वर्तमान मामले में, भारतीय रेलवे के खिलाफ जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, इलाहाबाद के समक्ष प्रतिवादियों द्वारा एक शिकायत दर्ज की गई थी, जिसमें मानसिक परेशानी, उत्पीड़न, पीड़ा, ससुराल वालों के साथ संबंध खराब होने की भरपाई करने के लिए 9 लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया गया था। मुख्य रूप से उनकी ट्रेन लगभग 6 घंटे की देरी से चल रही थी, जिसके परिणामस्वरूप उनकी फ्लाइट छूट गई।
रेलवे ने दलील दी कि देरी अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण और उनके नियंत्रण से बाहर थी क्योंकि एसएलआर से कुछ बंडल गिर जाने के कारण ट्रेन को रोक दिया गया था।
जिला फोरम ने हालांकि इस तर्क को खारिज कर दिया और रेलवे को प्रतिवादियों को 40,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
जब रेलवे ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, लखनऊ के समक्ष एक अपील दायर की, तो उसे खारिज कर दिया गया, जिसके बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली (एनसीडीआरसी) ने भी रेलवे की अपील को खारिज कर दिया।
एनसीडीआरसी ने रेलवे के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि रेलवे देरी का अनुमान लगा सकता था और यात्रियों को जानकारी दे सकता था, और इसलिए यह लापरवाही और सेवा में कमी का गठन करता है।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता अनमोल चौहान, शशांक बाजपेयी, सुघोष सुब्रमण्यम, स्वरूपमा चतुर्वेदी, अमरीश कुमार और राम बहादुर यादव ने किया।
केस का शीर्षकः यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रमेश चंद्र व अन्य
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें