'पहली पीढ़ी के वकीलों को हमेशा साहसी और धैर्यवान होना चाहिए': MNLU दीक्षांत समारोह में जस्टिस विक्रम नाथ
Shahadat
19 Oct 2025 7:39 PM IST

सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस विक्रम नाथ ने युवा लॉ ग्रेजुएट से, खासकर पहली पीढ़ी के वकीलों के रूप में कानूनी क्षेत्र में प्रवेश करने वाले युवा लॉ ग्रेजुएट्स से साहस, निष्ठा और धैर्य के साथ अपनी पेशेवर यात्रा शुरू करने का आग्रह किया। वे महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (MNLU) में दीक्षांत समारोह में भाषण दे रहे थे, जहां उन्होंने उन मूल्यों के बारे में विस्तार से बात की, जो एक सार्थक और सैद्धांतिक कानूनी करियर को बनाए रखते हैं।
जस्टिस नाथ ने ग्रेजुएट वर्ग को बधाई देते हुए शुरुआत की और दीक्षांत समारोह को केवल उपाधियों का समारोह नहीं, बल्कि "विश्वास का एक अनुबंध" बताया। उन्होंने कहा कि समाज वकीलों पर भरोसा करता है, क्योंकि विधि वह अनुशासन है, जो "स्वतंत्रता की रक्षा करता है, संघर्षों का समाधान करता है और हमारे सामान्य जीवन को गरिमा के साथ व्यवस्थित करता है।"
मुकदमेबाजी में प्रवेश करने के इच्छुक स्टूडेंट्स से सीधे बात करते हुए जस्टिस नाथ ने पहली पीढ़ी के वकीलों के सामने आने वाली कठिनाइयों को स्वीकार किया।
उन्होंने कहा,
"आपने सुना होगा कि सफलता का मार्ग लंबा होता है, घंटे अप्रत्याशित होते हैं। शुरुआत में मौद्रिक लाभ काफी कम होता है। यह सब सच है।"
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पहली पीढ़ी के वकीलों को भले ही लाइब्रेरी या मुवक्किलों की सूची विरासत में न मिले। हालांकि, उन्हें "सही आदतें" विरासत में मिल सकती हैं।
जस्टिस नाथ ने तैयारी, उपस्थिति और ईमानदारी को अच्छी वकालत की तीन बुनियादी आदतों के रूप में पहचाना।
उन्होंने कहा,
"तैयारी पहली आदत है। तथ्यों, प्रक्रिया और जिस राहत की आप तलाश कर रहे हैं, उस पर महारत हासिल करें। अपने तर्कों को ध्यान से लिखें। अपनी फाइलों को अनुक्रमित करें।
उपस्थिति दूसरी आदत है। समय पर पहुंचें। हर बातचीत में शिष्टाचार बरतें। न केवल अपने मुवक्किल, बल्कि अदालत की भी मदद के लिए तैयार रहें। शुरुआती वर्षों में आपको सौंपे गए मामले छोटे लग सकते हैं। लेकिन आपको याद रखना चाहिए कि जब किसी का जीवन, स्वतंत्रता या आजीविका दांव पर हो तो कोई छोटी बात नहीं होती। छोटे-छोटे कामों को बखूबी अंजाम दें और समय के साथ आपकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
ईमानदारी तीसरी आदत है। अपने वचन को अपना बंधन बनाएं। केवल वही कहें जिसका आप कल बचाव कर सकें। ऐसा वादा न करें जो आप पूरा नहीं कर सकते। और हमेशा अपने नैतिक मूल्यों पर अडिग रहें।"
उन्होंने सलाह दी,
"पहली पीढ़ी के वकीलों को हमेशा साहसी और धैर्यवान होना चाहिए। एक-एक करके मददगार काम करके नेटवर्क बनाया जा सकता है। बिना किसी हिसाब-किताब के अपनी मदद पेश करें। हर उस वरिष्ठ से सीखें जो आपको एक मिनट भी देता है। अपने कनिष्ठों के साथ वैसा ही सम्मान से पेश आएं जैसा आप कभी चाहते थे।"
उन्होंने स्टूडेंट्स को याद दिलाया कि इस पेशे में सफलता निरंतर दृढ़ता और नैतिक आचरण से मिलती है।
उन्होंने कहा,
"एक दिन ऐसा आएगा जब आपका नाम इसलिए नहीं पुकारा जाएगा, क्योंकि यह जाना-पहचाना है, बल्कि इसलिए पुकारा जाएगा, क्योंकि इस पर भरोसा किया जाता है।"
अदालत से परे कॉर्पोरेट प्रैक्टिस, नीति, शिक्षा या आंतरिक वकील की भूमिका जैसे करियर चुनने वाले स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए जस्टिस नाथ ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हर कानूनी रास्ते में कानून के शासन को मज़बूत करने की ज़िम्मेदारी होती है।
उन्होंने कहा,
"महत्वपूर्ण बात आपके विज़िटिंग कार्ड पर लगा लेबल नहीं, बल्कि आपके काम के लिए आपके द्वारा निर्धारित मानक हैं।"
न्यायपालिका में शामिल होने के इच्छुक लोगों की ओर मुड़ते हुए जस्टिस नाथ ने कहा कि संस्थान को ऐसे लोगों की ज़रूरत है, जो "धैर्यपूर्वक सुनने और सावधानीपूर्वक तर्क करने में उद्देश्य पाते हैं," और जिनके पास ऐसा विवेक हो, जो "आसान जवाब के प्रलोभन में भी न झुके।"
उन्होंने न्यायिक उम्मीदवारों से अपनी महत्वाकांक्षाओं को सीमित न रखने का आग्रह किया:
“सिविल जज के रूप में पहली नियुक्ति से लेकर सुप्रीम कोर्ट सहित हमारे देश के हाईकोर्ट तक का सफ़र वास्तविक है। इस सफ़र पर वे लोग चलते हैं, जो निरंतरता के साथ काम करते हैं, निष्पक्षता से फ़ैसले लेते हैं और मुश्किल समय में भी डटे रहते हैं।”
जस्टिस नाथ ने क़ानूनी पेशे में कर्तव्य और विनम्रता के महत्व पर भी बात की। अनुशासित कार्य के महत्व को समझाने के लिए भगवद गीता के एक श्लोक का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब वकील और जज ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं तो “अधिकारों के लिए याचना करने की ज़रूरत नहीं होती—वे ईमानदार काम के स्वाभाविक परिणाम के रूप में आते हैं।”
“क़ानून में अधिकार हमेशा भरोसे में होता है, कभी किसी के अधीन नहीं होता,” उन्होंने युवा वकीलों से विनम्रता को एक दैनिक पेशेवर अनुशासन के रूप में विकसित करने का आग्रह किया। “विनम्रता हमें सुधार के लिए खुला रखती है, हमें ग़लतियों से बचाती है और जनता के विश्वास को मज़बूत करती है। हर दिन इसका अभ्यास किया जाए तो यह न केवल एक गुण है बल्कि एक पेशेवर कर्तव्य भी है।”
अपने संबोधन के समापन पर जस्टिस नाथ ने ग्रेजुएट को अपने करियर की अनिश्चितताओं का आत्मविश्वास और जिज्ञासा के साथ सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया।
उन्होंने कहा,
"कोई भी शिखर से शुरुआत नहीं करता। जब आप जिज्ञासा से ऊपर देखते हैं और धैर्य के साथ चढ़ते हैं तो तलहटी से दृश्य सुंदर होता है।"
उन्होंने स्टूडेंट्स से आग्रह किया कि वे अपने सपनों को, चाहे वे वकालत में हों, कॉर्पोरेट कानून में हों या न्यायपालिका में अनुशासन, कल्पनाशीलता और शालीनता के साथ पूरा करें।
उन्होंने कहा,
"जिस दुनिया में आप प्रवेश करने वाले हैं, वह आपकी परीक्षा लेगी। उसे आपको विकसित भी करने दें।"
उन्होंने देश की सेवा "आत्मविश्वास और दयालुता" के साथ करने का आह्वान करते हुए अपने संबोधन का समापन किया।

