समान सजा नीति लागू करने की व्यवहार्यता विधि आयोग को भेजी गई: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया
Shahadat
15 Feb 2025 5:38 AM

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि व्यापक और समान सजा नीति लागू करने की व्यवहार्यता को भारत के विधि आयोग को भेजा गया।
यह पिछले साल मई में जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की खंडपीठ द्वारा भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग को 6 महीने के भीतर सजा पर एक व्यापक नीति लागू करने पर विचार करने की सिफारिश के बाद आया।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की खंडपीठ ने कहा,
“सजा पर अभियुक्त की सुनवाई करना अभियुक्त को दिया गया मूल्यवान अधिकार है। वास्तविक महत्व केवल सजा के साथ है, दोषसिद्धि के विपरीत। दुर्भाग्य से जब सजा की बात आती है तो हमारे पास कोई स्पष्ट नीति या कानून नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में यह न्यायाधीश-केंद्रित हो गया और सजा सुनाने में असमानताएं हैं।"
न्यायालय ने कहा कि स्पष्ट सजा नीति के अभाव में सजा सुनाने में जज का निर्णय व्यक्ति दर व्यक्ति अलग-अलग होगा, जहां संपन्न पृष्ठभूमि के जज की मानसिकता साधारण पृष्ठभूमि के जज से भिन्न हो सकती है। एक महिला जज अपने पुरुष समकक्ष की तुलना में इसे अलग तरह से देख सकती है। इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि एक स्पष्ट सजा नीति की आवश्यकता है, जो कभी भी न्यायाधीश-केंद्रित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि समाज को सजा के आधार को जानना होगा।
न्यायालय ने आगे कहा,
"चूंकि यह महत्वपूर्ण पहलू है, जो भारत सरकार के ध्यान से बच गया, इसलिए हम भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग को व्यापक नीति शुरू करने पर विचार करने की सलाह देते हैं, संभवतः एक अलग सजा नीति बनाने के उद्देश्य से विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से युक्त विधिवत गठित सजा आयोग से उचित रिपोर्ट प्राप्त करके। हम भारत सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह आज से छह महीने के भीतर हलफनामे के माध्यम से हमारे सुझाव का जवाब दे।”
इस मामले में एक दिन में ही POCSO Case की सुनवाई पूरी हो गई और उसी दिन फैसला भी सुनाया गया। आरोपी को अपना पक्ष रखने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। फैसला सुनाए जाने के दो दिन बाद आरोपी की सजा पर सुनवाई हुई, जिसमें उसे मौत की सजा सुनाई गई।
हाईकोर्ट ने विवादित फैसले में रिकॉर्ड मंगवाए और उनका गहन अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि CrPC, 1973 की धारा 207, 226, 227 और 230 का अनुपालन नहीं किया गया, निचली अदालत द्वारा दी गई सजा और दोषसिद्धि खारिज की और नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया। संयोग से निचली अदालत द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण में खामियां पाई गईं।
हाईकोर्ट के निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दो आपराधिक अपीलें प्रस्तुत की गईं, अर्थात्, एक अपील सूचक द्वारा गुण-दोष के आधार पर तथा दूसरी अपील हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल कोर्ट के जज के विरुद्ध की गई टिप्पणी के विरुद्ध ट्रायल कोर्ट जज द्वारा।
केस टाइटल: सुनीता देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य | विविध आवेदन संख्या 238/2025, अपराध अपील संख्या 3924/2023 में