सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया : सीआरपीसी की धारा 319 के तहत ट्रायल कोर्ट की असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए

LiveLaw News Network

2 Feb 2021 4:43 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया : सीआरपीसी की धारा 319 के तहत ट्रायल कोर्ट की असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि किसी अपराध के लिए दोषी प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने को लेकर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत ट्रायल कोर्ट की शक्तियां विवेकाधीन और असाधारण हैं, जिसका इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए।

    इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने एक वास्तविक शिकायतकर्ता की ओर से दायर अर्जी मंजूर कर ली और एक व्यक्ति को समन किया। चूंकि वह व्यक्ति पेश नहीं हुआ, इसलिए कोर्ट ने गैर - जमानती वारंट जारी किया और सीआरपीसी की धारा 446 के तहत नोटिस जारी करके स्पष्टीकरण मांगा कि क्यों न उनके दोनों जमानतदारों द्वारा दी गयी श्योरटी (जमानती राशि) को भुना लिया जाये? समन आदेश को चुनौती देते हुए इन लोगों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 446 के तहत नोटिस जारी किये जाने वाले सब्सिक्वेंट ऑर्डर की जानकारी पाकर यह कहते हुए पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी कि ऑर्डर को रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया था।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड़डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि आगे की कार्यवाही किसी भी प्रकार से समनिंग ऑर्डर की वैधता और यथार्थता पर विचार करने का आधार नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत समनिंग ऑर्डर की यथार्थता की जांच नहीं की, बल्कि उसने सब्सिक्वेंट फैक्ट के आधार पर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है।

    बेंच ने इस प्रकार क्रिमिनल कोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्तियों के इस्तेमाल के सिद्धांतों के बारे में कहा :

    "क्रिमिनल कोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्तियों के इस्तेमाल के सिद्धांत पहले से ही पूर्ण रूपेण तय हैं। इस कोर्ट की संविधान पीठ ने 'हरदीप सिंह बनाम पंजाब एवं अन्य (2014) 3 एससीसी 92' मामले में सीआरपीसी की धारा 319 के सभी आयामों पर विस्तार से चर्चा की है। इस कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत प्रदत्त शक्तियां विवेकाधीन एवं असाधारण हैं, जिसका इस्तेमाल संयम से किया जाना चाहिए। इस कोर्ट ने आगे कहा है कि इस्तेमाल किया जाने वाला टेस्ट ऐसा है जो आरोप तय करने के समय इस्तेमाल प्रथम दृष्टया केस से कहीं अधिक है, लेकिन उस हद तक संतुष्टि से कम है कि यदि साक्ष्य बेरोक टोक चलता है तो यह दोषसिद्धि की ओर ले जायेगा।"

    कोर्ट ने 'हरदीप सिंह बनाम पंजाब सरकार एवं अन्य, (2014) 3 एससीसी 92 मामले में संविधान पीठ की टिप्पणियों को पुन: प्रस्तुत किया :

    सीआरपीसी की धारा 319 के तहत प्रदत्त शक्तियां विवेकाधीन और असाधारण हैं। इसका इस्तेमाल संयम से और केवल उन मामलों में किया जाना चाहिए, जहां मामले की परिस्थितियां इसकी मांग करती है। इसका इस्तेमाल सिर्फ इसलिए नहीं होना चाहिए कि मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायाधीश का मानना यह है कि कुछ अन्य व्यक्ति भी संबंधित अपराध के दोषी हो सकते हैं। जहां किसी व्यक्ति के खिलाफ केवल मजबूत एवं अकाट्य साक्ष्य मौजूद होते हैं वहीं इस शक्ति का इस्तेमाल किया जाना चाहिए न कि कैजुअल और बेतकल्लुफ तरीके से।

    इस प्रकार हम मानते हैं कि कोर्ट के समक्ष साक्ष्य से प्रथम दृष्ट्या केस स्थापित किया जाना है, जो जरूरी नहीं कि क्रॉस एक्जामिनेशन के आधार पर जांच हो, लेकिन इसके लिए उसके सहअपराध की महज संभावना के बजाय अधिक मजबूत साक्ष्य की जरूरत होती है।

    इस्तेमाल किया जाने वाला टेस्ट ऐसा है जो आरोप तय करने के समय इस्तेमाल प्रथम दृष्टया केस से कहीं अधिक है, लेकिन उस हद तक संतुष्टि से कम है कि यदि साक्ष्य बेरोक टोक चलता है तो यह दोषसिद्धि की ओर ले जायेगा। ऐसी संतुष्टि की गैर मौजूदगी में सीआरपीसी की धारा 319 का इस्तेमाल करने से कोर्ट को संयम बरतना चाहिए। सीआरपीसी की धारा 319 में "साक्ष्य से ऐसा लगता है कि अभियुक्त न होने के बावजूद उस व्यक्ति ने अपराध किया है" जैसे शब्दों से यह स्पष्ट है कि ''जिसके लिए ऐसे व्यक्ति के खिलाफ अभियुक्त के साथ मुकदमा चलाया जा सकता है।'' इस्तेमाल किये गये ये शब्द 'उनके लिए नहीं है जिसके लिए संबंधित व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता है़।" इसलिए सीआरपीसी की धारा 319 के तहत कार्यरत कोर्ट के पास अभियुक्त को दोषी ठहराये जाने को लेकर कोई राय अख्तियार करने की गुंजाइश नहीं है।"

    यह टिप्पणी करते हुए बेंच ने अपील मंजूर कर ली और हाईकोर्ट को क्रिमिनल रिव्यू पिटीशन पर नये सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।

    केस : अजय कुमार उर्फ बिट्टू बनाम उत्तराखंड सरकार

    [क्रिमिनल अपील नंबर 88 / 2021]

    कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह

    कोरम : एलएल 2021 एससी 54

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