अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति उत्तम गुणवत्ता की होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के भाई के कन्फेशन पर संदेह जताया

Shahadat

15 Nov 2023 9:20 AM GMT

  • अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति उत्तम गुणवत्ता की होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट ने मृतक के भाई के कन्फेशन पर संदेह जताया

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हत्या के मामले में दोषी को बरी करते हुए कहा कि जिन व्यक्तियों के समक्ष अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति (extra judicial confession) की जाती है, उनके साक्ष्य उत्कृष्ट गुणवत्ता के होने चाहिए।

    न्यायालय ने कहा,

    "जब अभियोजन पक्ष अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति के साक्ष्य पर भरोसा करता है तो आम तौर पर न्यायालय अपेक्षा करेगा कि जिन व्यक्तियों के समक्ष अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति कथित तौर पर की गई है, उनके साक्ष्य उत्तम गुणवत्ता के होने चाहिए।"

    अदालत ने पीडब्लू-2 और पीडब्लू-3 (मृतक के भाई) के समक्ष दिए गए न्यायेतर कबूलनामे की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि किसी आरोपी के लिए मृतक के असली भाई और करीबी परिचित के सामने कबूल करना असामान्य है।

    जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने आईपीसी की धारा 302 के तहत अपीलकर्ता की सजा की पुष्टि की गई।

    यह मामला 12 नवंबर, 1997 का है, जिसमें हुकाभाई की मौत शामिल है। मुकदमा दो प्रमुख गवाहों मृतक के भाई पीडब्लू-2 कालाभाई और उसी गांव के निवासी पीडब्लू-3 रामाभाई के बयानों पर बहुत अधिक निर्भर था। अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, हुकाभाई पर कथित तौर पर अपीलकर्ता ने हमला किया, जो बांस की छड़ी लिए हुए था। प्रत्यक्षदर्शियों ने दावा किया कि आरोपी ने दोपहर करीब तीन बजे हुकाभाई का उसके खेत की ओर पीछा किया। शाम साढ़े छह बजे हाथ में वही छड़ी लेकर गांव लौट आए। अभियोजन पक्ष ने आगे तर्क दिया कि अपीलकर्ता ने पीडब्लू-2, पीडब्लू-3 और राताभाई नामक अन्य व्यक्ति के समक्ष हमले की बात कबूल की।

    28 अक्टूबर, 1997 को अपीलकर्ता अभाभाई भेमाभाई के साथ कथित तौर पर शराब पीने के बाद विवाद में शामिल हो गए। सरपंच ने शिकायत दर्ज की और हुकाभाई ने आभाभाई का पक्ष लिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 12 नवंबर को हुए घातक विवाद का यही संभावित मकसद था।

    ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया। उक्त निर्णय को हाईकोर्ट ने बरकरार रखा। इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    खून से सने कपड़े आरोपियों को अपराध से जोड़ने में असफल रहे

    मामले का अन्य महत्वपूर्ण पहलू गिरफ्तारी के समय आरोपी द्वारा पहने गए कपड़ों पर खून के धब्बे की मौजूदगी है। अदालत ने सीरोलॉजी रिपोर्ट की ओर इशारा किया, जिसमें विसंगतियां सामने आईं। रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के कपड़ों पर लगा खून 'O' ग्रुप का था, जबकि आरोपी के कपड़ों पर लगा खून 'A' ग्रुप का था। अपीलकर्ता की पतलून पर खून के धब्बों पर अनिर्णायक राय ने अभियोजन पक्ष के मामले को और कमजोर कर दिया।

    इसके अलावा, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि कथित तौर पर अपराध में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी की बरामदगी का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि प्रत्यक्षदर्शियों ने गवाही दी है कि अपीलकर्ता कुल्हाड़ी नहीं बल्कि छड़ी ले जा रहा था।

    इसलिए अदालत ने अपीलकर्ता को बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन उचित संदेह से परे अपीलकर्ता के अपराध को स्थापित करने में विफल रहा।

    केस टाइटल: प्रभातभाई अताभाई दाभी बनाम गुजरात राज्य

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