संदेह के लाभ का हकदार : सुप्रीम कोर्ट ने दहेज के लिए हत्या मामले के आरोपी को बरी किया
LiveLaw News Network
30 Nov 2020 11:50 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा दोषी ठहराये गये व्यक्ति को बरी कर दिया है।
इस मामले में, अभियुक्त की पत्नी ने शादी के डेढ़ साल के भीतर अपने शरीर पर केरोसीन तेल उड़ेलकर खुद को आग लगा ली थी। मरने के समय दिये गये बयान (डाइंग डिक्लरेशन) से यह पता चलता है कि महिला ने अपने पति से घरेलू झगड़े के कारण खुद को आग लगायी थी। ट्रायल कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने डाइंग डिक्लरेशन को ध्यान में रखते हुए तथा कुछ गवाहों के बयानों के मद्देनजर अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-बी और 498-ए के तहत दोषी ठहराया था। दोषी को 10 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील के दौरान अभियुक्त के वकील ने कोर्ट के संज्ञान में लाया था कि मरते वक्त दिये गये बयान से स्पष्ट है कि मृतका ने खुद ही अपने ऊपर केरोसीन तेल उड़ेल लिया था और खुद को आग लगा ली थी। मृतका द्वारा दिये गये बयान की पुष्टि संबंधित डॉक्टर की गवाही से भी हुई थी। वकील ने दलील दी कि कुछ गवाहों द्वारा अभियुक्त के खिलाफ अस्पष्ट आरोपों को दहेज संबंधी उत्पीड़न के पर्याप्त प्रमाण के तौर नहीं लिया जा सकता।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की बेंच ने अपील मंजूर करते हुए कहा :
डाइंग डिक्लरेशन से स्पष्ट है कि मृतका द्वारा खुद पर केरोसीन तेल डालकर आग लगाने का तात्कालिक कारण उसके पति से घरेलू झगड़ा था। डाइंग डिक्लरेशन से न केवल यह विस्तार से पता चलता है कि मृतका कैसे आग लगने से घायल हो गयी थी, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि उसने इतना चरम कदम क्यों उठाया था। इस बात का भी कोई संकेत नहीं मिलता है कि मृतका का 'डाइंग डिक्लरेशन' धोखाधड़ी से हासिल किया गया था या उसमें कोई गड़बड़ी की गयी थी या मृतका का बयान सही तरीके से रिकॉर्ड नहीं किया गया था। मृतका का डाइंग डिक्लरेशन डॉक्टर द्वारा रिकॉर्ड किया गया था, जो न केवल निष्पक्ष व्यक्ति था, बल्कि इसे रिकॉर्ड करने के लिए 'लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र सरकार ' के मामले में इसी कोर्ट द्वारा तय मानकों का भी पालन किया गया था। इन परिस्थितियों में अभियोजन पक्ष इस मामले में भारतीय दंड संहिता की 304-बी और 498-ए धारा उचित केस बनाने में असफल रहा है। इसलिए अपीलकर्ता संदेह का लाभ हासिल करने का हकदार है। हम, इसलिए, इस अपील को मंजूर करते है और दोषी ठहराये जाने का आदेश निरस्त करते हैं, साथ ही यह निर्देश भी देते हैं कि अपीलकर्ता को यदि किसी अन्य मामले में हिरासत में रखे जाने की जरूरत नहीं है तो बरी किया जाये।
केस का नाम : राम कुमार उर्फ ननकी बनाम मध्य प्रदेश सरकार (अब छत्तीसगढ़ सरकार)
क्रिमिनल अपील नंबर – 814 / 2020
कोरम : न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति विनीत सरकार और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट
वकील : एडवोकेट अक्षत श्रीवास्तव, उप एडवोकेट जनरल सौरभ रॉय