डाइंग डिक्लेयरेशन की अनदेखी महज इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि अस्पताल में इसे दर्ज करते वक्त मृतका के सगे-संबंधी मौजूद थे : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

5 March 2021 5:24 AM GMT

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    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डाइंग डिक्लयेरशन (मरते वक्त दिया गया बयान) पर महज इसलिए अविश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि अस्पताल में इसे रिकॉर्ड में लाते वक्त मृतका के माता पिता और सगे संबंधी मौजूद थे।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने हत्या के एक अभियुक्त की अपील खारिज करते हुए कहा,

    "यह स्वाभाविक है कि जब इस तरह की घटना घटती है, माता पिता और सगे संबंधी, रिश्तेतार नातेदार तुरंत अस्पताल पहुंचने का प्रयास करते हैं। महज इसलिए कि वे (माता पिता एवं सगे संबंधी) अस्पताल में मौजूद थे, मजिस्ट्रेट द्वारा रिकॉर्ड किये गये डाइंग डिक्लेयरेशन पर अविश्वास करने का आधार नहीं माना सकता ।"

    न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा रिकॉर्ड किये गये डाइंग डिक्लेयरेशन में मृतका ने कहा था कि अभियुक्त ने उसके ऊपर किरोसीन तेल उड़ेल कर उसे आग लगा दी थी। समवर्ती दोष सिद्धि को चुनौती देते हुए अभियुक्त ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि डाइंग डिक्लेयरेशन सीखा पढ़ाकर कराया गया था तथा यह मृतका के परिवार के सदस्यों के कहने पर तैयार किया गया था, जो अस्पताल में मौके पर उपस्थित थे। अभियुक्त के अनुसार, मृतका ने आत्महत्या का प्रयास किया था और उसने (अभियुक्त ने) आग बुझाने के लिए हरसंभव प्रयास किया था।

    केस रिकॉर्ड की जांच करने के बाद बेंच ने कहा था कि मजिस्ट्रेट ने अपने बयान में स्पष्ट तौर पर कहा था कि मृतका पूजा रानी के सगे संबंधी उसके डाइंग डिक्लेयरेशन रिकॉर्ड किये जाने के समय वहां मौजूद नहीं थे।

    कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा,

    "महज इसलिए कि मृतका के माता पिता एवं अन्य सगे संबंधी अस्पताल में उस वक्त मौजूद थे, जब मृतका का बयान रिकॉर्ड किया गया था, यह नहीं कहा जा सकता कि यह बयान सीखा पढ़ाकर दिलाया गया था। यह पूरी तरह स्वाभाविक है कि जब इस तरह की घटना घटती है, तो माता पिता और अन्य सगे संबंधी आनन फानन में अस्पताल पहुंचने का प्रयास करते हैं। महज इसलिए कि वे अस्पताल में मौजूद थे, मजिस्ट्रेट द्वारा रिकॉर्ड किये गये डाइंग डिक्लेयरेशन पर अविश्वास करने का आधार नहीं बन सकता। मजिस्ट्रेट इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से 16वें गवाह थे।"

    कोर्ट ने अपील खारिज करने के लिए उल्लेख किया कि यदि मरने के समय दिये गये बयान पर अन्य गवाहों द्वारा दी गयी गवाही के साथ विचार किया जाता है तो यह स्थापित होता है कि अभियुक्त का अपराध तार्किक संदेह से परे है।

    केस : सतपाल बनाम हरियाणा सरकार [ सीआरए 261 / 2020 ]

    कोरम : न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी

    वकील : एडवोकेट ननीता शर्मा, डिप्टी ए जी दीपक ठुकराल

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी

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