किसी डॉक्‍टर ने अल्प मात्रा में दवाएं रखी हैं तो यह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 18 (सी) के तहत अपराध नहींः सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

16 March 2023 12:54 PM GMT

  • किसी डॉक्‍टर ने अल्प मात्रा में दवाएं रखी हैं तो यह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 18 (सी) के तहत अपराध नहींः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि किसी डॉक्‍टर ने अगर अल्प मात्रा में दवाएं जमा की हैं तो यह कृत्य ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 18 (सी) के तहत दवाओं के अनधिकृत स्टॉकिंग के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।

    जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, "जब एक पंजीकृत चिकित्सक के परिसर में थोड़ी मात्रा में दवा पाई जाती है, तो यह खुली दुकान के काउंटर पर दवाएं बेचने के समान नहीं होगा।"

    इन्हीं टिप्पणियों के साथ उन्होंने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत तमिलनाडु के एक डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के परिसर से कथित रूप से जब्त की गई दवाओं की मात्रा बहुत कम थी। यह एक ऐसी मात्रा थी, जो आसानी से डॉक्टर के परामर्श कक्ष या घर में पाई जा सकती है।

    मामला

    अपीलकर्ता एस अथिलक्ष्मी एक पंजीकृति चिकित्सक हैं, और वे चेन्नई में प्रैक्टिस करती हैं। मार्च 2016 में ड्रग इंस्पेक्टर ने उनके परिसरों का निरीक्षण किया, जिसमें एक निश्चित मात्रा में दवाएं, लोशन, मलहम आदि पाए गए।

    आरोप लगाया गया कि वैध ड्रग लाइसेंस के बिना उन्होंने बिक्री के लिए ड्रग्स का स्टॉक किया और ड्रग्स बेची, जो अधिनियम की धारा 27 (बी) (ii) के तहत दंडनीय है।

    निरीक्षक ने मुकदमा चलाने की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए औषधि नियंत्रण निदेशक, तमिलनाडु के समक्ष एक आवेदन दायर किया।

    जनवरी 2018 में स्वीकृति प्राप्त हुई, जिसके बाद इंस्पेक्टर ने मजिस्ट्रेट, एग्मोर के समक्ष अपीलकर्ता पर ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 18 (सी) के तहत धारा 27 (बी) (ii) के तहत मुकदमा चलाने के लिए शिकायत दर्ज की, जो अधिनियम की धारा 27(बी)(ii) के तहत दंडनीय है।

    डॉक्टर ने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही को चुनौती दी, हालांकि, धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मौजूदा एसएलपी दायर की।

    निष्कर्ष

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि अपीलकर्ता एक पंजीकृत चिकित्सक थी और उसकी विशेषज्ञता का क्षेत्र त्वचाविज्ञान है, यह संभव था कि वह इन दवाओं को अपने रोगियों को आपातकालीन उपयोग के लिए वितरित कर रही हो और इस प्रकार, वह अधिनियम के तहत संरक्षित है।

    इस संबंध में, न्यायालय ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल, 1945 से जुड़ी अनुसूची (के) 7 का उल्लेख किया, जो अधिनियम के अध्याय IV के प्रावधानों से कुछ दवाओं को छूट देता है (जिसमें ऊपर उल्लिखित धारा 18 और धारा 27 दोनों शामिल हैं, जो दंडात्मक प्रावधान हैं)।

    अनुसूची चिकित्सक के पक्ष में एक अपवाद के रूप में कार्य करती है, जहां अनुसूची 'के' में दी गई दवाओं को अधिनियम के अध्याय 4 के दायरे से छूट दी जाती है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि अनुसूची (के) के तहत प्रविष्टि संख्या 5, जो कि मौजूदा मामले के तथ्यों पर लागू थी, इस प्रकार बताती है-

    "एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा अपने रोगी को आपूर्ति की गई दवाएं या एक पंजीकृत चिकित्सक द्वारा एक अन्य पंजीकृत चिकित्सक के अनुरोध पर अनुसूची सी में निर्दिष्ट कोई भी आपूर्ति की गई दवा, यदि यह विशेष रूप से स्थिति के संदर्भ में और रोगी के व्यक्तिगत उपयोग के लिए तैयार की जाती है, बशर्ते पंजीकृत चिकित्सक ने (ए) दुकान खोल रखी है, या (बी) काउंटर पर बिक्री कर रहा है या (सी) दवाओं के निर्माण, वितरण या बिक्री आयात में लिप्त है, तो यह उसे अधिनियम के अध्याय IV के प्रावधानों के लिए उत्तरदायी बनाता है और उसक नियम के लिए उत्तरदायी बनाता है।

    इस पृष्ठभूमि में यह देखते हुए कि डॉक्टर को अनुसूची के की प्रविष्टि 5 के तहत संरक्षित किया गया था, अदालत ने पाया कि अपीलकर्ता से जब्त की गई दवाओं की मात्रा बहुत कम थी। यह डॉक्टर के परामर्श कक्ष या घर में आसानी से पाई जा सकती है।

    कोर्ट ने कहा,

    "धारा 18 और 27 के प्रावधान प्रासंगिक प्रावधान हैं, जिनका अपना सामाजिक उद्देश्य है, जो अन्य बातों के साथ-साथ अनैतिक चिकित्सकों के शोषण से आम नागरिकों को बचाना है, और इस कारण से धारा 27 के तहत सजा को 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है और 3 साल की न्यूनतम सजा दी जा सकती है।

    लेकिन मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए और यह देखते हुए कि अपीलकर्ता एक पंजीकृत चिकित्सक है, इस तथ्य के साथ कि जब्त की गई दवाओं की मात्रा है बहुत कम है, जो आसानी से डॉक्टर के परामर्श कक्ष या घर में पाई जा सकती है, हमारे विचार से वर्तमान मामले में कोई अपराध नहीं बनता है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "वास्तव में, नियमों के नियम 123 के साथ पठित अनुसूची 'के' के तहत एक अपवाद बनाया गया है, अपीलकर्ता को इन प्रावधानों का लाभ दिया जाना चाहिए था और ऐसे पंजीकृत चिकित्सक को मुकदमे का सामना करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए थी जहां पूरी संभावना है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा होगा।”

    न्यायालय ने आगे कहा कि अपीलकर्ता ने अपनी सच्चाई दिखाने के लिए दवा की दुकानों से कई चालान पेश किए थे और उसके परिसर से जब्त की गई दवाएं 'मानक गुणवत्ता' की थीं, जो इंगित करती हैं कि यह ऐसा मामला नहीं था जहां अपीलकर्ता नकली दवाएं बेचने के लिए एक दुकान चला रही थी।

    न्यायालय ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि अभियोजन के लिए अनुमोदन प्राप्त करने में देरी के लिए मौजूदा मामले में कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया था। इसे देखते हुए, अपील की अनुमति दी गई और मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया। साथ ही मामले में दार आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल: एस. अथिलक्ष्मी बनाम द स्टेट रिप्रजेंटेंड बाय द ड्रग इंस्पेक्टर [एसएलपी (क्रिमिनल) नंबर 9978 ऑफ 2022]

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एससी) 194

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