SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची सत्ताधारी पार्टी DMK, बताया असंवैधानिक

Shahadat

4 Nov 2025 9:45 AM IST

  • SIR के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची सत्ताधारी पार्टी DMK, बताया असंवैधानिक

    तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने तमिलनाडु में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। DMK ने इसे "संवैधानिक अतिक्रमण" का मामला बताया। साथ ही कहा कि इससे बड़े पैमाने पर मतदाताओं को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है।

    अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में चुनाव आयोग के 24 जून, 2025 और 27 अक्टूबर, 2025 के आदेशों को चुनौती दी गई, जिसमें विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) करने का निर्देश दिया गया।

    याचिका के अनुसार, तमिलनाडु में अक्टूबर, 2024 और 6 जनवरी, 2025 के बीच एक विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (SSR) पहले ही किया जा चुका है, जिसके दौरान मतदाता सूची को प्रवास, मृत्यु और अयोग्य मतदाताओं के नाम हटाने जैसे बदलावों को दर्शाने के लिए अपडेट किया गया था। संशोधित सूची 6 जनवरी, 2025 को प्रकाशित की गई थी और तब से इसे लगातार अपेडट किया जा रहा है।

    इसके बावजूद, DMK ने कहा कि चुनाव आयोग ने 27 अक्टूबर, 2025 को संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (ROPA), 1950 की धारा 21 के तहत अपनी शक्तियों का कथित रूप से प्रयोग करते हुए तमिलनाडु और कई अन्य राज्यों में मतदाता सूचियों के नए विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश दिया, जिसमें नए दिशानिर्देश पेश किए गए, जो नागरिकता सत्यापन की आवश्यकताएँ लागू करते हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे।

    'संवैधानिक अतिक्रमण' और वैधानिक आधार का अभाव

    याचिका में तर्क दिया गया कि चुनाव आयोग का निर्णय संवैधानिक अतिक्रमण के समान है, क्योंकि अनुच्छेद 324 केवल उन्हीं क्षेत्रों में लागू होता है, जहां कानून लागू नहीं है। साथ ही यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत मौजूदा वैधानिक ढाँचे का स्थान नहीं ले सकता।

    इसमें तर्क दिया गया कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (SIR) मूल अधिनियम और नियमों के विपरीत है, क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा निर्देशित प्रक्रिया का इनमें कोई उल्लेख नहीं है। इसके अलावा, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 28(3) के अनुसार सभी नियमों को आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित किया जाना चाहिए और संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए। SIR के लिए ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई, जिससे यह प्रक्रिया वैधानिक रूप से मान्य नहीं है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं है।

    DMK का दावा है कि चुनाव आयोग ने इतने व्यापक स्वरूप के नए सत्यापन की आवश्यकता के लिए कोई असाधारण या बाध्यकारी कारण नहीं बताया। पार्टी का कहना है कि ये आदेश मनमाने, अनुचित और शक्ति का एक छद्म प्रयोग हैं।

    SIR 'वास्तविक NRC', नागरिकों पर नागरिकता साबित करने का बोझ

    DMK ने चेतावनी दी है कि SIR के ज़रिए चुनाव आयोग ने "व्यक्तियों की नागरिकता का आकलन करने का अधिकार" हासिल कर लिया है, जो नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है।

    नागरिकता परीक्षण जैसी दस्तावेज़ आवश्यकताओं को लागू करके SIR कथित तौर पर चुनाव आयोग को "वास्तविक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC)" में बदल देता है।

    याचिका में कहा गया कि SIR रजिस्टर्ड मतदाता से जुड़ी वैधता की धारणा को उलट देता है और रजिस्टर्ड मतदाताओं पर बिना पर्याप्त सूचना के अपनी नागरिकता पुनः स्थापित करने का भारी बोझ डालता है। यह निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ERO) को उचित प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए नागरिकता अधिनियम के तहत "संदिग्ध विदेशी नागरिकों" को अधिकारियों के पास भेजने का भी अधिकार देता है।

    Case : RS Bharati v Election Commission of India | Diary Number 63055/2025 .

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