"जिला स्तर के वकील न्यायिक प्रशासन को रीढ़ और विश्वसनीयता प्रदान करते हैं ": न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ई-कोर्ट पर जागरूकता कार्यक्रम लांच किया

LiveLaw News Network

26 July 2020 9:57 AM GMT

  • जिला स्तर के वकील न्यायिक प्रशासन को रीढ़ और विश्वसनीयता प्रदान करते हैं : न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ई-कोर्ट पर जागरूकता कार्यक्रम लांच किया

    सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और शीर्ष अदालत की ई-समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को ई-कोर्ट सेवाओं और ई-फाइलिंग पर क्षेत्रीय भाषाओं में जिला स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का उद्घाटन किया। साथ ही अधिवक्ताओं के लिए मैनुअल और ट्यूटोरियल भी जारी किया गया है ताकि वे उपलब्ध सेवाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें।

    ऑनलाइन आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने देश के प्रत्येक कोने तक प्रौद्योगिकी पहुंचाने और इसका लाभ दूरस्थ जिलों के वकीलों तक पहुंचाने के लिए ई-समिति के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।

    यह भी बताया गया कि वकीलों के लिए यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 2-आयामी दृष्टिकोण का हिस्सा है जिसे ई-समिति ने अपनाया है। एक तरफ, ऐसी सुविधाएं बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिनके माध्यम से वादी या मुविक्कल और अधिवक्ता ई-गवर्नेंस सुविधाओं तक पहुँच सकें, जबकि दूसरी तरफ बार के सदस्यों को इनमें से अधिकांश सुविधाओं के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,

    ''जब तक बार के सदस्यों को सुविधाओं का उपयोग करने के लिए विधिवत प्रशिक्षण नहीं किया जाएगा,तब तक सुविधाएं उपलब्ध कराने से काम नहीं चलेगा।''

    न्यायपालिका के दायरे में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) को लाने के संबंध में समिति द्वारा कई पहल की गई है। इसी को उजागर करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि प्रत्येक जिले में प्रत्येक अधिवक्ता तक इन विकास की पहुंच बनाना बहुत जरूरी है।

    ''यह 2-आयामी कार्यक्रम इस ज्ञान पर आधारित है कि भारत में एक तकनीकी विभाजन है। महानगरीय शहरों में काम करने वालों के पास सबसे अच्छी तकनीक तक पहुँच है। लेकिन देश की न्यायिक प्रशासन को विश्वसनीयता और रीढ़ उन वकील द्वारा प्रदान की जाती है जो जिला स्तर पर काम करते हैं। अन्याय के साथ नागरिक का पहला इंटरफेस या अन्याय का उपाय खोजने का उनका प्रयास तब शुरू होता है जब वे जिला स्तर पर एक वकील से संपर्क करते हैं। जब तक हम बार के प्रत्येक सदस्य को इस मिशन पर अपने साथ नहीं लेंगे, हम कभी सफल नहीं हो सकते हैं।

    यह परियोजना बार के सदस्यों तक आईसीटी की पहल का ज्ञान फैलाने का एक प्रयास है। इसलिए हमारा लक्ष्य भारतीय बार के सदस्यों में 100 प्रतिशत कंप्यूटर साक्षरता प्राप्त करना है।''

    उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि यह परियोजना एक पहल थी जो केवल तभी सफल हो सकती है जब बार के सदस्य न केवल इसे स्वीकार करें, बल्कि इस पर गर्व महसूस करें। इस दिशा में उन्होंने यह भी सूचित किया कि एक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है। जिसके माध्यम से कुछ ''मास्टर ट्रेनरों'' को समिति ने गहनता से प्रशिक्षित किया है। जिसके बाद इन ''मास्टर ट्रेनरों'' ने व्यापक स्तर पर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया है ताकि वह छोटे-छोटे जिलों में वकीलों को प्रशिक्षण दे सकें।

    न्यायाधीश ने कहा कि,''एक ऐसा प्रोग्राम शुरू करने का विचार है ताकि अधिवक्ताओं के बीच स्वंय प्रशिक्षक बनने शुरू हो जाएं''

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि बार के सदस्यों के लिए सुविधाएं बनाना न्यायालय की जिम्मेदारी थी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जो वकील ग्रामीण परिवेश से आए हैं और श्रमिक या कृषि का काम अपनाने की बजाय कानूनी पेशे में आने में कामयाब रहे हैं,उनके लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वे स्थिर न रहें या उनका विकास न रूकें। इसलिए उन्होंने दोहराया कि युवा वकीलों की उन्नति के लिए सुविधाओं की आवश्यकता है, और 2-आयामी दृष्टिकोण उस दिशा में एक प्रयास था।

    ''उस व्यक्ति के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है कि जिसने लॉ स्कूल पास किया है और अदालत में आया है। अब हम नहीं चाहते कि ये वकील वहीं रहें जहाँ यह थे। हम कामकाज के पुराने रूपों से नए रूपों में आ गए हैं और हमारे युवा वकील इस आंदोलन का हिस्सा होना चाहिए।

    ... हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि एक युवा वकील के पास एक लैपटॉप होगा। एक युवा वकील लैपटॉप खरीदने के लिए 40,000 खर्च कहां से खर्च करेगा ? निश्चित रूप से ऐसी स्थिति में, हमें एक ई-गवर्नेंस केंद्र प्रदान करना चाहिए, जहाँ वे इन सेवाओं का लाभ उठा सकें। यदि उनमें से कोई अगर सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों में नहीं गया है, तो कोर्ट को शिक्षा प्रदान करने के लिए केंद्र बिंदु होना चाहिए, ताकि वे आसानी से सीख सकें।''

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि यह जागरूकता कार्यक्रम ई-समिति के पूर्वोक्त लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम है। वही समिति का अगला कदम पूरे भारत में सभी अधिवक्ताओं की सूची तैयार करना है और उनको उपलब्ध सेवाओं के बारे में जानकारी देना है। तीसरे चरण में ई-समिति उन अधिवक्ताओं को गहनता से प्रशिक्षित करेगी,जिनको चयनित किया जाएगा ताकि वह सभी अधिक्ताओं के बीच में मास्टर ट्रेनर बन सकें।

    उन्होंने कहा कि, ''इस तीन चरण के कार्यक्रम की परिकल्पना की गई है और हमारी योजना इसे अगले कुछ महीनों में सभी बार काउंसिल और जिला बार एसोसिएशनों की मदद से पूरा करने की है।''

    ओपन कोर्ट फिर से शुरू करने के मुद्दे पर विस्तार से बोलते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के 7 न्यायाधीशों की समिति इस मुद्दे पर सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विचार कर रही है। उन्होंने बताया कि समिति प्रख्यात सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय ले रही है और उनसे प्राप्त राय या सलाह के अनुरूप आवश्यक कदम उठा रही है।

    शुक्रवार को हुई हाई पावर मीटिंग का जिक्र करते हुए न्यायाधीश ने यह भी कहा कि समिति ने संकेत दिया है कि ओपन कोर्ट में सुनवाई फिर से शुरू करने का कदम उस समय ''तेजी से उठाया जाएगा'' जब कर्व समतल हो जाएगा या मामलों की संख्या शिथिल पड़ जाएगी।

    ''महामारी के दौरान हमें इसलिए वर्चुअल सुनवाई का सहारा लेना पड़ा, क्योंकि अन्यथा न्याय के द्वार बंद हो जाते। हमारे पास इसके अलावा बिल्कुल कोई विकल्प नहीं था जब संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन था।''

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बताया कि न्याय तक पहुंच बेहद महत्वपूर्ण थी वहीं एक दूसरे को महामारी फैलाने से रोकना भी एक बड़ी चिंता थी।

    इस आलोक में उन्होंने कहा कि-

    ''एक तरह से न्यायालय किसी भी अन्य कार्यालय (कॉर्पोरेट भारत या भारत सरकार) से बहुत अलग है। ये (न्यायालय) वे स्थान हैं जहाँ हर दिन कम से कम हजार लोग एकत्र होते हैं। बार के सदस्यों,वादी और कर्मचारियों सहित विभिन्न हितधारक होते हैं,जो कोर्ट में आते हैं।

    हमें यह सुनिश्चित करना है कि जब न्याय तक पहुंच सभी के लिए खुली हो, उसी समय हम इस महामारी के प्रसार के खिलाफ एक दूसरे की रक्षा करें। इसलिए हम सब इसमें एक साथ हैं। मुझे विश्वास नहीं है कि न्यायाधीश या हमारे पेशे का कोई भी खंड एक-दूसरे से दूर नहीं खड़ा है।

    जो हमारे पेशे के एक हिस्से को प्रभावित करता है वही दूसरे को भी प्रभावित करता है। एक दूसरे के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। आप बार के बिना न्यायिक संस्था की कल्पना नहीं कर सकते हैं। इसी तरह क्या आप बिना जजों के न्यायिक संस्थान की कल्पना कर सकते है? वहीं हम कोर्ट के कर्मचारियों के बिना भी इस संस्था की कल्पना नहीं कर सकते हैं।''

    उन्होंने आगे बढ़ते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ई-समिति के अध्यक्ष ने ई-फाइलिंग के संबंध में अधिवक्ताओं के समक्ष आ रही समस्याओं पर ध्यान दिया है। इसके लिए उन्होंने वकीलों से सहयोग करने का आग्रह किया है ताकि मुद्दों को समझा जा सकें और एकसाथ समाधान खोजने की कोशिश की जा सकें।

    ''हम चाहते हैं कि सभी सदस्य हमारे साथ काम करें। वह देखें कि क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं और हमें अपनी समस्याओं के बारे में बताएं।''

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बताया कि जब भी किसी समस्या के बारे में उनको सूचना दी जाती है तो उसके तुरंत बाद पुणे में स्थित राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र को सूचित कर दिया जाता है। जो आमतौर पर 24-48 घंटों के भीतर उसे ठीक कर देते हैं।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने लाइव स्ट्रीमिंग कोर्ट की कार्यवाही के मुद्दे पर भी बात की और बताया कि उसके लिए मॉडल नियम बनाए जा रहे हैं। ''हमने पहले ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग व ई-फाइलिंग पर मॉडल नियम तैयार कर लिए हैं। वहीं डिजिटलीकरण के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया तैयार करने के लिए एक हाई पाॅवर कमेटी का गठन भी किया गया है।''

    अंत में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस बात पर जोर दिया कि ई-कोर्ट सुविधाओं के ज्ञान के बारे में जागरूक करने और लोगों को उपलब्ध मुफ्त सुविधाओं के बारे में बताने के लिए इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना एक महत्वपूर्ण कदम है।

    उन्होंने कहा, ''वह चाहते हैं कि इस अवसर का लाभ बार के सभी सदस्यों द्वारा उठाया चाहे,भले ही वह बार का सबसे जूनियर सदस्य हो या सबसे सीनियर सदस्य।''

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