मौजूदा हाईकोर्ट और जिला जजों के अधीन अधीनता संस्कृति के कारण जिला न्यायपालिका विचाराधीन कैदियों को जमानत देने से डरती है: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

Shahadat

17 Feb 2024 2:51 PM GMT

  • मौजूदा हाईकोर्ट और जिला जजों के अधीन अधीनता संस्कृति के कारण जिला न्यायपालिका विचाराधीन कैदियों को जमानत देने से डरती है: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़

    मध्यस्थता केंद्र, प्रयागराज के उद्घाटन और "उत्तर प्रदेश के न्यायालय" पुस्तक के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने जिला न्यायपालिका और हाईकोर्ट के बीच अधीनता की संस्कृति की समस्या पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे यह वादकारियों विशेष रूप से जमानत चाहने वालों को प्रभावी न्याय प्रदान करने को प्रभावित करता है।

    उन्होंने कहा,

    “हमारी जिला न्यायपालिका में भय का माहौल है। जज और बार के सदस्य दोनों मुझसे सहमत होंगे। मैं आलोचनात्मक नहीं हो रहा हूं, लेकिन हमें आत्मनिरीक्षण करना होगा। जिला न्यायपालिका जमानत देने से डरती है, क्योंकि समय के साथ हमारे पास हाईकोर्ट और जिला न्यायपालिका के बीच अधीनता की संस्कृति पनपी है। हमने जिला जजों और हाईकोर्ट के बीच समानता का आधार नहीं बनाया।''

    न्याय वितरण तंत्र में जिला न्यायपालिका के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि जिला न्यायपालिका देश के प्रत्येक राज्य के लिए न्याय प्रशासन की आधारशिला है।

    उन्होंने इस संबंध में कहा,

    "जिला न्यायपालिका संपर्क का पहला बिंदु है, जब किसी नागरिक को कोई समस्या होती है, चाहे वह भरण-पोषण की हो, चाहे उसे ससुराल वालों ने घर से बाहर निकाल दिया हो और घरेलू हिंसा निवारण अधिनियम के तहत उपाय तलाशना हो, या जब सीनियर सिटीजन हों, परिवार के सामने अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए आगे बढ़ना होगा। प्रशासनिक न्यायाधीशों द्वारा निरीक्षण की पूरी प्रक्रिया से जिला जजों के मन में डर पैदा होता है, अधीनता की इस संस्कृति को बदलना होगा।''

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आपराधिक अपीलों पर बहस करने में बार सदस्यों की झिझक पर भी प्रकाश डाला।

    उन्होंने कहा,

    “बार जमानत पर फैसला करने के लिए इतना उत्सुक क्यों है, लेकिन आपराधिक अपील पर बहस करने को तैयार नहीं है? मुझे लगता है कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए हम सभी को साथ बैठने की जरूरत है। क्योंकि यह हमारे राज्य का अहित कर रहा है। बड़ी संख्या में आपराधिक अपीलें लंबित हैं। यह पूर्ववत नहीं किया जा सकता। यह ऐसी स्थिति नहीं है, जो नियंत्रण से बाहर हो गई हो।”

    उन्होंने कहा,

    "इसका एक और परिणाम है, जो मेरे लिए समान रूप से बड़ी चिंता का विषय है, वह है हमारी अदालतों द्वारा विचाराधीन कैदियों को जमानत देने में असमर्थता।"

    उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जजों को जमानत देने के लिए मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि छोटे अपराधों के आरोपी अधिकांश लोग विचाराधीन के रूप में -1-2 साल से जेल में हैं। वे जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ते हैं और जमानत मिल जाती है, क्योंकि जजों को एहसास होता है कि इस तरह उनकी "अपील का नंबर कभी नहीं आएगा।"

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके अलावा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में और यूपी राज्य भर में विभिन्न जिला अदालतों का दौरा करने के अपने अनुभव के बारे में बोलते हुए कहा,

    “जब मैंने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में राज्य भर में यात्रा की तो मुझे उल्लेखनीय अंतर मिला, युवा जज इतने उज्ज्वल, इतने आशा से भरे हुए थे। वे आपसे ऐसे बात करेंगे, जैसे वे किसी मित्र, परिवार के किसी सदस्य से बात कर रहे हों। जितने अधिक सीनियर जज, उतने ही शांत। आपको उन्हें बातचीत में शामिल करना है। वे आपसे बात करने में बहुत झिझकेंगे। इसे बदलना होगा। ऐसा करने का कर्तव्य जजों के रूप में हम पर है।”

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने जिला अदालतों में न्याय के प्रभावी वितरण के लिए उचित और कुशल बुनियादी ढांचे के महत्व पर जोर दिया।

    उन्होंने कहा,

    "हमारी अदालतों को जर्जर पुराने बुनियादी ढांचे, महिलाओं के लिए शौचालयों की कमी, सुविधाओं की कमी के कारण नहीं जाना जाना चाहिए।"

    महाराष्ट्र के कोहलपुर जिले के प्रशासनिक जज के रूप में अपने समय को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उन दिनों महिला जजों के लिए केवल एक ही शौचालय होता था। उस तक पहुंचने के लिए उन्हें गलियारे से होकर गुजरना पड़ता था, जहां विचाराधीन कैदियों और दोषियों को लाया जाता था। उन्होंने कहा कि सीनियर महिला जिला जज ने उन्हें बताया कि इसे पार करना उनके लिए कितना अजीब है। उन्होंने कहा कि उन्हें बताया गया कि महिला जज सुबह 8 बजे घर से निकलती हैं और अगली बार शाम 6 बजे के बाद अपने घर पहुंचने पर शौचालय जाती हैं।

    उन्होंने कहा,

    "यह हमारे सिस्टम की वास्तविकता को दर्शाता है।"

    उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि महिलाओं के लिए शौचालय हों और हर शौचालय में सैनिटरी नैपकिन डिस्पेंसर हो।

    उन्होंने कहा,

    "हम महिलाओं के लिए ऐसा कार्यस्थल कैसे बनाएंगे, जो सुलभ हो, जो उनका स्वागत कर रहा हो।"

    उन्होंने आगे कहा,

    “उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में जिला न्यायपालिका में नई भर्तियों में 50% से अधिक महिलाएं हैं। नए वकील जो शिक्षा के प्रसार के कारण हमारे सिस्टम में आ रहे हैं। कल हमने RPNLU प्रयागराज का उद्घाटन किया, अब हमें यूपी में एनएलयू की ओर जाना है। बड़ी संख्या में महिलाएं इस पेशे में आ रही हैं। महिलाओं को कानूनी पेशे में आने के लिए उनके माता-पिता द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है। उनमें से कई जिला न्यायपालिका में शामिल हो रहे हैं, क्योंकि जिला न्यायपालिका उन्हें काम की सुरक्षित स्थितियां दे रही है। आपको बार में निजी प्रैक्टिस की अनिश्चितता का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनके लिए काम की सम्मानजनक स्थितियां बनाएं, जिससे वे जिला न्यायपालिका में फल-फूल सकें।”

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जल्द ही वे जिला न्यायपालिका के लिए कच्छ, गुजरात में सम्मेलन आयोजित करेंगे, जो उन्हें जजों के साथ बातचीत करने और उनकी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।

    समारोह में बताया गया कि यूपी के विभिन्न जिलों में एकीकृत जिला न्यायालय कार्यक्रम प्रस्तावित किया गया। शुरुआती चरण के लिए 10 जिलों ओरैया, अमेठी, चंदौली, चित्रकूट, हापुड, हाथरस, महोबा, सोहनभद्र, संभल और शामली में पायलट प्रोजेक्ट को चुना गया। 25 एकड़ के भूखंड क्षेत्र की पहचान की गई, जिसमें से 17 एकड़ का उपयोग गैर-आवासीय और 8 एकड़ का उपयोग आवासीय उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मध्यस्थता केंद्र के बारे में बोलते हुए कहा कि इसका नाम इस तरह रखा गया है कि आम जनता तक पहुंच संभव हो सके।

    “इसे मध्यस्थता केंद्र, प्रयागराज कहा जाता है। इसे हाईकोर्ट का मध्यस्थता केंद्र कहने से यह आभास होगा कि यह इलाहाबाद हाईकोर्ट की शाखा है, राज्य की शाखा है, राष्ट्र राज्य की शाखा है। व्यापारिक समुदाय को मध्यस्थता को लेकर हमेशा कुछ आपत्तियां होती हैं।''

    उन्होंने यह भी आग्रह किया कि न केवल जज बल्कि बार के सीनियर और युवा सदस्यों को भी इसका हिस्सा बनना चाहिए।

    उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इंजीनियरों, चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि को भी मध्यस्थता केंद्र का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

    उन्होंने कहा,

    “हम बार के युवा सदस्यों को प्रशिक्षित कर सकते हैं। यह भविष्य में हाईकोर्ट के जज बनने के लिए उनके लिए प्रशिक्षण स्थल होगा। 30 वर्ष या 40 वर्ष की आयु के मध्यस्थ के रूप में नियुक्त वकील अदालत के प्रति कर्तव्य की पुकार के रूप में रिकॉर्ड समय के भीतर मध्यस्थता पूरी करता है। इसलिए मध्यस्थों के चयन में क्षितिज का विस्तार करें और ऐसे लोगों को लाएं, जो इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, बार के युवा सदस्य, बार के वरिष्ठ सदस्य हों। क्योंकि ये वे लोग हैं, जिनके पास समुदाय की आवाज़ है।

    मध्यस्थों को चुनने में शामिल पार्टी की स्वायत्तता के बारे में बात करते हुए सीजेआई ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा,

    “हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में वकील उस न्यायाधीश का चयन नहीं करते, जिसके सामने वे पेश होने जा रहे हैं। हालांकि, मैंने पाया है कि इसमें थोड़ी फोरम शॉपिंग शामिल है, लेकिन वकील किसी जज का चयन नहीं करते हैं।''

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