तमिलनाडु में प्रमोटेड और डायरेक्ट भर्ती जजों की सीनियरिटी 3:1 अनुपात से तय करने के नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Praveen Mishra

4 Nov 2025 12:28 PM IST

  • तमिलनाडु में प्रमोटेड और डायरेक्ट भर्ती जजों की सीनियरिटी 3:1 अनुपात से तय करने के नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

    तमिलनाडु की एक जिला न्यायाधीश ने राज्य की उच्च न्यायिक सेवा में वरिष्ठता संरचना को पिछली तारीख से बदलने वाले सरकारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, यह कहते हुए कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

    उस समय के चीफ़ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस के. विनोद चंद्रन भी शामिल थे, ने इस याचिका पर नोटिस जारी कर राज्य सरकार से जवाब मांगा।

    यह याचिका एस. समीना, जो वर्तमान में प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज, इरोड के पद पर कार्यरत हैं, ने दायर की है। उन्होंने 7 अक्टूबर 2025 को जारी जी.ओ. (Ms) नंबर 518 को रद्द करने की मांग की है। इस आदेश के तहत तमिलनाडु स्टेट ज्युडिशियल सर्विस (कैडर एंड रिक्रूटमेंट) रूल्स, 2007 में संशोधन कर 1 जनवरी 2012 से प्रभावी किया गया है।

    संशोधन के अनुसार, जिला न्यायाधीशों को दो सूचियों — लिस्ट I (प्रमोटेड जज) और लिस्ट II (प्रत्यक्ष भर्ती वाले जज) — में बाँटा गया है, और उनके बीच वरिष्ठता का अनुपात 3:1 तय किया गया है।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, यह संशोधन 2014 बैच के सीधे भर्ती जिला न्यायाधीशों की वरिष्ठता को प्रभावित करेगा और उन्हें उन अधिकारियों से नीचे रख देगा, जो उनकी नियुक्ति के समय सिविल जज थे।

    याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन “प्रमोशन, एलिवेशन और पेंशन संबंधी लाभों” को सीधे प्रभावित करता है और सेवा नियमों में उचितता, स्थिरता और पूर्वानुमेयता के सिद्धांतों के खिलाफ है।

    राज्य सरकार ने इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट के All India Judges Association बनाम भारत संघ (2002) के फैसले के अनुरूप बताया है, लेकिन याचिकाकर्ता ने कहा कि यह फैसला 3:1 के अनुपात को मंजूरी नहीं देता और इस तरह का वेटेज देना संविधान के खिलाफ है।

    याचिका में कहा गया है —

    “3:1 अनुपात तय करना असंगत और असंवैधानिक है। इससे एक जूनियर सिविल जज, सीधे भर्ती हुए जिला न्यायाधीश से वरिष्ठ हो जाएगा, जो कि सेवा नियमों के सिद्धांतों के विरुद्ध है।”

    याचिकाकर्ता, जिन्हें 9 जनवरी 2014 को नियुक्त किया गया था, ने कहा कि भर्ती विज्ञापन में सेवा शर्तों में किसी बदलाव का उल्लेख नहीं था।

    उन्होंने तर्क दिया कि “पिछली तारीख से संशोधन लागू करने से अर्जित अधिकार छिन जाते हैं” और सरकार ऐसा नहीं कर सकती।

    संशोधन के तहत अब चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल की पात्रता लिस्ट I के लिए 75% और लिस्ट II के लिए 25% तय की गई है। इसका मतलब है कि 2014 बैच के 22 सीधे भर्ती जिला जजों में से केवल 11 को सुपर टाइम स्केल मिल पाएगा।

    याचिका में कहा गया है कि यह नियम हाईकोर्ट में पदोन्नति की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा।

    साथ ही, “जो़न ऑफ कंसिडरेशन” की अस्पष्ट परिभाषा को हाईकोर्ट कोलेजियम की विवेकाधिकार शक्ति में हस्तक्षेप बताया गया है।

    संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस याचिका में याचिकाकर्ता ने विवादित जी.ओ. (Ms) 518/2025 को मनमाना, असंवैधानिक और अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन घोषित करने की मांग की है।

    यह याचिका एडवोकेट स्वेना माधवन नायर के माध्यम से दाखिल की गई है, और इसमें तमिलनाडु राज्य सरकार, मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल, राज्यपाल के प्रमुख सचिव और भारत संघ को प्रतिवादी बनाया गया है।

    गौरतलब है कि इस समय सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ यह भी सुन रही है कि क्या जिला न्यायाधीशों के पद पर पदोन्नति के लिए सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों के लिए कोई कोटा तय किया जा सकता है या नहीं।

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