आयुष और एलोपैथिक डॉक्टरों के लिए अलग-अलग सेवानिवृत्ति की आयु उचित नहीं: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

4 Aug 2021 9:29 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आयुष प्रणाली का अभ्यास करने वाले डॉक्टरों और एलोपैथिक डॉक्टरों के लिए सेवानिवृत्ति की अलग-अलग उम्र के लिए कोई तर्कसंगत औचित्य नहीं है। न्यायालय ने कहा कि जहां तक ​​सेवानिवृत्ति की आयु का संबंध है, उपचार का तरीका इन दो श्रेणियों के बीच "समझदार अंतर" नहीं माना जाएगा।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ नई दिल्ली नगर निगम द्वारा दायर एक अपील पर फैसला कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि एनडीएमसी के तहत काम करने वाले आयुष डॉक्टर, एलोपैथिक डॉक्टरों की सेवानिवृत्त‌ि की उम्र में वृद्धि किए जाने की तारीख से, पूर्वव्यापी प्रभाव से सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष तक बढ़ाने के हकदार हैं। ।

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए कहा, "अंतर केवल इतना है कि आयुष चिकित्सक आयुर्वेद, यूनानी, आदि जैसी स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग कर रहे हैं और CHS डॉक्टर अपने रोगियों की देखभाल के लिए एलोपैथी का उपयोग कर रहे हैं। हमारी समझ में, प्रचलित योजना के तहत उपचार का तरीका अपने आप में एक समझदार अंतर के रूप में लागू नहीं होगा। इसलिए, इस तरह के अनुचित वर्गीकरण और इसके आधार पर भेदभाव निश्चित रूप से संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप नहीं होगा।"

    केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दिनांक 31.05.2016 को जारी आदेश की प्रयोज्यता से संबंधित मामले में विवाद केंद्रीय स्वास्थ्य योजना [सीएचएस] के सामान्य ड्यूटी चिकित्सा अधिकारियों [जीडीएमओ] के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष किए जाने को लेकर है। मुद्दा यह था कि क्या यह आदेश आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आयुर्वेदिक डॉक्टरों पर लागू होता था।

    30.06.2016 को, एनडीएमसी ने 30.06.2016 को कार्यालय आदेश जारी करके भारत सरकार के आदेश को अपनाया और एनडीएमसी में कार्यरत एलोपैथिक डॉक्टरों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी। एनडीएमसी में कार्यरत आयुर्वेदिक चिकित्सक सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के आदेश में उन्हें नहीं शामिल करने से व्यथित थे। इसलिए, उनमें से कुछ ने कैट से संपर्क किया।

    बाद में 27.09.2017 को आयुष मंत्रालय ने आयुष डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष करने का आदेश जारी किया। इस बीच, कैट ने अन्यायपूर्ण भेदभाव के उनके तर्क को स्वीकार करते हुए आयुर्वेदिक डॉक्टरों द्वारा दायर आवेदनों को स्वीकार कर लिया था।

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने कैट के आदेश को बरकरार रखा और एनडीएमसी को उन आयुर्वेदिक डॉक्टरों को बकाया वेतन और भत्तों का भुगतान करने का निर्देश दिया, जो 60 साल की उम्र के बाद भी एनडीएमसी में काम करते रहे। उच्च न्यायालय ने यह भी माना कि आयुष मंत्रालय के सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने के आदेश को 31.05.2016 से लागू किया जाना चाहिए, जिस तारीख को MoHFW ने अपना आदेश जारी किया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय और कैट के निष्कर्षों को मंजूरी देते हुए कहा, "आयुष और सीएचएस दोनों के तहत डॉक्टर मरीजों को सेवा करते हैं और इस मुख्य पहलू पर, उन्हें अलग करने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए, इन दोनों को सेवानिवृत्ति की विस्तारित आयु का लाभ देने के लिए अलग-अलग तिथियां रखने के लिए कोई तर्कसंगत औचित्य नहीं देखा जाता है। इसलिए, आयुष मंत्रालय के आदेश (F.No.D.4019/4/2016¬E¬I (आयुष)) दिनांक 24.11.2017 को 31.05.2016 से वर्तमान अपीलों में सभी संबंधित प्रतिवादी डॉक्टरों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाना चाहिए। इस निष्कर्ष से सभी परिणामों का पालन करना चाहिए"।

    केस ड‌िटल्स

    केस टाइटिल: एनडीएमसी बनाम डॉ. राम नरेश शर्मा और अन्य

    कोरम: जस्टिस एल नागेश्वर राव और हृषिकेश रॉय

    सिटेशन: LL 2021 SC 346

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