बेंगलुरु नगर निगम ने कर्नाटक हाईकोर्ट से कहा- हमने नहीं ढहाई थीं झुग्गियां
LiveLaw News Network
30 Jan 2020 5:59 PM IST

ब्रुहत बेंगलुरु महानगर पालिके (बीबीएमपी) ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष यह मानने से इनकार कर दिया है कि बांग्लादेशी होने के आरोप में करियम्मना अग्रहार, देवराबिसनसहल्ली, कुंडलाहल्ली और बेल्लंदुरु के इलाकों में रह रहे लोगों को निकालने और उनकी झुग्गियों को ढहाने का अभियान उन्होंने चलाया था।
चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस हेमंत चंदागौदार की खंडपीठ ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), कर्नाटक द्वारा दायर याचिका के मामले में सुनवाई 3 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया है। मामले में प्रतिवादियों की ओर से सूचित किया गया था कि था कि पुलिस आयुक्त घटना की जांच कर रहे हैं और एडवोकट जनरल सुनवाई की अगली तारीख को हाजिर होंगे।
कोर्ट में निगम के वकील ने सहायक अभियंता, (बीबीएमपी) द्वारा स्थानीय पुलिस को पत्र भेजकर झुग्गियों को ढहाने का अनुरोध करने के संबंध में बताया कि- "स्थानीय निवासियों ने अधिकारी से से शिकायत की थी कि झुग्गियों के कारण उपद्रव हो रहा है, इसलिए उन्होंने कार्रवाई की।"
चीफ जस्टिस एस ओका ने अचरज जाहिर करते हुए पूछा कि BBMP ने वैसी ही तत्परता अदालती आदेशों के संबंध में क्यों नहीं दिखाई। उन्होंने कहा- "बीबीएमपी अदालत के आदेश पर कार्रवाई नहीं करता है।"
बीबीएमपी द्वारा घटना से दूरी बनाने की कोशिश पर सीजेआई ने कहा- "यदि बीबीएमपी के अधिकारी इलाके के निवासियों की शिकायत पर तुरंत कार्रवाई करते हैं, तो उन्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए, न कि निलंबित किया जाना चाहिए।"
उल्लेखनीय है कि ऐसी रपटों के आने के बाद कि झुग्गियों में रह रहे लोगों बांग्ला भाषी भारतीय हैं, न कि प्रवासी, झुग्गियों को ढहाने की कार्रवाई पर विवाद हो गया था, जिसके बाद नगर निगम ने अपने एक अधिकारी को निलंबित कर दिया था।
कोर्ट ने बीबीएमपी और राज्य सरकार, दोनों को अगली सुनवाई पर बयान देने का निर्देश दिया है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने पूछा था कि क्या किसी बाहरी ताकत ने झुग्गियों को ढहाने की कार्रवाई की है।
कोर्ट ने उन भूस्वामियों से भी पूछा है, जिनकी जमीनों पर झुग्गियां बनी हैं, कि क्या उन्होंने झुग्गियां गिराई हैं। कोर्ट ने उन्हें अपना बयान दाखिल करने को कहा है।
क्या कहती है याचिका
पीयूसीएल की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि बीबीएमपी और पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई अवैध और असंवैधानिक थी। कार्रवाई ऐसी अफवाहों के आधार पर की गई कि बांग्लादेशी अप्रवासी भूमि पर कब्जा कर रहे हैं।
पीयूसीएल ने कहा कि जबकि उन झुग्गियों में रह रहे लोग उत्तर कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के प्रवासी हैं और अपनी कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण उत्पीड़न का शिकार हुए हैं।
याचिका में कहा गया है कि- "प्रत्येक व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय का अधिकार है। अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त अधिकार को केवल कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया के माध्यम से ही छीना जा सकता है, जबकि वर्तमान मामले में ऐसा नहीं किया गया। उक्त संपत्ति के विध्वंस के लिए किसी भी वैधानिक प्राधिकरण द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किया गया था।"