Deoghar Airport Case : सुप्रीम कोर्ट ने निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के खिलाफ झारखंड की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

Shahadat

19 Dec 2024 9:56 AM IST

  • Deoghar Airport Case : सुप्रीम कोर्ट ने निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी के खिलाफ झारखंड की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (18 नवंबर) को झारखंड राज्य द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें झारखंड हाईकोर्ट द्वारा 2022 के देवघर हवाई अड्डे के मामले में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसदों निशिकांत दुबे, मनोज तिवारी और अन्य के खिलाफ FIR रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई।

    सितंबर 2022 में दर्ज की गई FIR में आरोप लगाया गया कि प्रतिवादियों ने सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करते हुए निजी विमान को उड़ान भरने की अनुमति देने के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) अधिकारियों को धमकाया और मजबूर किया। FIR में आईपीसी की धारा 336, 447 और 448 के साथ-साथ विमान अधिनियम, 1934 की धारा 10 और 11ए का इस्तेमाल किया गया।

    हाईकोर्ट ने इस आधार पर FIR रद्द कर दिया था कि यह विमान अधिनियम के तहत अपेक्षित शिकायत या मंजूरी के बिना दायर की गई। इसने माना कि जब कोई विशेष कानून विशिष्ट दंड का प्रावधान करता है तो आईपीसी प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस अभय ओक और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने संकेत दिया कि न्यायालय हाईकोर्ट के निर्णय को संशोधित करेगा, जिससे जांच के दौरान एकत्रित सामग्री को नागरिक उड्डयन महानिदेशक (DGCA) को प्रस्तुत करने की अनुमति दी जा सके। इसने नोट किया कि DGCA सामग्री पर विचार कर सकता है और यह निर्धारित कर सकता है कि विमान अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की जा सकती है या नहीं।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "हम इस आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। हम कहेंगे कि जो भी सामग्री एकत्र की गई, उसे महानिदेशक के समक्ष रखा जाए। अब न्यायालय ने कहा कि आप जांच नहीं कर सकते। इसलिए हम अभी भी आपको नागरिक उड्डयन महानिदेशक के समक्ष एकत्रित की गई सामग्री को प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं। वह इस बात पर विचार करेंगे कि क्या इसका उपयोग शिकायत में किया जा सकता है। हम आदेश के उस हिस्से को नहीं छेड़ेंगे, जिसके द्वारा विमान अधिनियम के तहत अपराध रद्द किया जाता है। निदेशक को आगे की जांच करने से कोई नहीं रोकता है।"

    राज्य ने तर्क दिया कि घटना की जांच के लिए विमान अधिनियम की धारा 10 और 11 ए के तहत पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "जहां तक ​​विमान अधिनियम का सवाल है, शिकायत दर्ज किए बिना संज्ञान नहीं लिया जा सकता।"

    राज्य के वकील ने कहा कि विमान अधिनियम की धारा 12बी के तहत आवश्यक शिकायत दर्ज नहीं की गई, क्योंकि मामला जांच के चरण में है।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    "अब आप इसे दर्ज नहीं कर सकते, क्योंकि निरस्तीकरण आदेश है। समस्या यह है कि आपको हाईकोर्ट जाना चाहिए और कहना चाहिए था कि आप शिकायत दर्ज करेंगे।"

    FIR में आईपीसी के प्रावधानों का भी हवाला दिया गया। राज्य ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने यह मानने में गलती की कि विमान अधिनियम आईपीसी से ऊपर है। तर्क दिया कि आईपीसी के प्रावधान अभी भी लागू हो सकते हैं।

    जस्टिस ओक ने धारा 336 के आवेदन पर सवाल उठाते हुए पूछा,

    "उन्होंने कहां लोगों की जान जोखिम में डाली? वे और पायलट बस इतना कह रहे हैं कि हमें उड़ान भरने की अनुमति दी जाए। अगर उसने विमान उड़ाया होता या उड़ान भरने का प्रयास किया होता तो धारा 336 लागू होती।"

    उन्होंने धारा 447 की प्रयोज्यता पर भी सवाल उठाते हुए कहा,

    "और आपराधिक अतिचार कैसे लागू होगा? (एटीसी में प्रवेश करने पर) प्रतिबंध कहां है? धमकी कहां से आती है?”

    राज्य ने तर्क दिया कि एटीसी रूम एक संरक्षित क्षेत्र है और प्रतिवादियों ने एटीसी कर्मचारियों पर दबाव बनाया।

    जस्टिस ओक ने जवाब दिया,

    “कोई अपराध करने का इरादा नहीं है। वे बस इतना कह रहे हैं कि हमें उड़ान भरने की अनुमति दी जाए और अधिकारियों ने उन्हें बताया कि ऐसा नहीं किया जा सकता।”

    खंडपीठ ने देखा कि विमान अधिनियम के तहत अपराध मुख्य रूप से लागू होते हैं।

    जस्टिस ओक ने कहा,

    “विमान अधिनियम के तहत सभी अपराध लागू होंगे। हम विवादित निर्णय में वह संशोधन करेंगे। एकत्र की गई सामग्री का उपयोग उस अधिकारी द्वारा किया जा सकता है, जो विमान अधिनियम की धारा 12बी के तहत शिकायत दर्ज करने के लिए अधिकृत है। हम इस बात पर विचार नहीं कर रहे हैं कि विमान अधिनियम के तहत अपराध किए गए हैं या नहीं। हम उस प्रश्न को खुला छोड़ देंगे। उन्हें शिकायत दर्ज करनी होगी, मामला बनाना होगा।”

    इन टिप्पणियों के साथ निर्णय सुरक्षित रखा गया।

    केस टाइटल- झारखंड राज्य बनाम निशकांत दुबे

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