दिल्ली दंगाः नेताओं की कथित हेट स्पीच पर एफआईआर की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट को तीन महीने के भीतर फैसला करने को कहा

LiveLaw News Network

17 Dec 2021 10:21 AM GMT

  • दिल्ली दंगाः नेताओं की कथित हेट स्पीच पर एफआईआर की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट को तीन महीने के भीतर फैसला करने को कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट से कहा कि वह भाजपा नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और अभय वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और जांच की मांग करने के संबंध में दायर रिट याचिका पर तीन महीने के भीतर फैसला करे।

    उल्‍लेखनीय है कि इन नेताओं पर आरोप है कि इन्होंने कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसके बाद 2020 के दिल्ली दंगे भड़के थे।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने दिल्ली दंगों के तीन पीड़ितों की ओर से दायर एक रिट याचिका पर निर्देश पारित किया। याचिका में उन्होंने कहा था कि दिल्ली हाईकोर्ट मामले की सुनवाई नहीं कर रहा है। ( मामला: मोहम्मद नाजिम और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य डब्ल्यूपी (सीआरएल।) नंबर 448/2021 )।

    याचिकाकर्ताओं ने दंगों के मामलों की जांच, पीड़ितों के लिए मुआवजे और सीसीटीवी फुटेज और हिंसा के सबूतों के संरक्षण के लिए दिल्ली के बाहर के अधिकारियों को शामिल कर एक स्वतंत्र विशेष जांच दल के गठन की भी मांग की थी।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डॉ कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि,

    वे "उम्मीद खो रहे हैं" क्योंकि समयबद्ध तरीके से मामलों को तय करने के सुप्रीम कोर्ट के पहले के निर्देश के बावजूद हाईकोर्ट कार्यवाही में देरी कर रहा था।

    डॉ. गोंजाल्विस ने बताया कि मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट से इस मामले पर जल्द से जल्द फैसला करने को कहा था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि दिसंबर 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया परिसर में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हुई कथित पुलिस बर्बरात की जांच की मांग संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई के बाद मामले की सुनवाई की जाएगी। गोंजाल्विस ने प्रस्तुत किया कि जामिया मामला भी आगे नहीं बढ़ रहा है और याचिकाकर्ताओं का मामला भी रुक गया है।

    याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक स्तर पर मौजूद वीडियो साक्ष्यों के आधार पर एफआईआर दर्ज करने के लिए यह एक "सरल और सीधा" मामला था। मामलों पर फैसला करने में देरी पूरी तरह से अनुचित थी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कई दिनों की सुनवाई के बावजूद जामिया हिंसा के मामले पर फैसला नहीं नहीं हुआ है।

    गोंजाल्विस ने प्रस्तुत किया,

    "माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हमें एक वर्ष 10 माह पहले हाईकोर्ट वापस भेज दिया था।...2 साल बाद जामिया मामला अभी शुरू हो रहा है। हम उम्मीद खो रहे हैं।"

    जस्टिस राव ने कहा,

    "हम केवल हाईकोर्ट से इस मामले की जल्द सुनवाई करने और निस्तारित करने का अनुरोध कर सकते हैं। यही एकमात्र राहत है, जिसे हम दे सकते हैं ।"

    डॉ गोंजाल्विस ने निवेदन किया,

    "यह आधे घंटे का मामला है। आप मुझे सुप्रीम कोर्ट में आधा घंटा दें।",

    जस्टिस राव ने जवाब दिया ,

    "मामला हाईकोर्ट में भेजे जाने के बाद हम कुछ नहीं कर सकते हैं। हम आपकी चिंता की सराहना करते हैं।"

    गोंजाल्विस ने कहा,

    "फिर इसे दूसरी बेंच को वापस भेज दें। मैं आपको स्पष्ट रूप से बता रहा हूं कि हमें विश्वास नहीं है। जामिया के छात्रों के लिए क्या न्याय है....दिल्ली दंगों के लिए न्याय क्या है....।

    इसके बाद पीठ ने निम्नलिखित आदेश के साथ रिट याचिका निस्तारण किया-

    "हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस रिट याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। श्री कॉलिन गोन्सलेव्स, विद्वान सीनियर एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका में कोई प्रगति नहीं हुई है, हालांकि इस अदालत ने हाईकोर्ट को रिट याचिका पर शीघ्रता से निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यह रिट याचिका दायर करना आवश्यक था क्योंकि हाईकोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका पर विचार नहीं कर रहा है। हम हाईकोर्ट से अनुरोध करते हैं कि रिट याचिका पर शीघ्रता से निर्णय ले अधिमानतः तीन महीने की अवधि के भीतर।"

    उल्लेखनीय है कि फरवरी 2020 में दिल्ली हाईकोर्ट में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा दायर याचिका पर नाटकीय घटनाक्रम हुआ था। याचिका में कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और अभय वर्मा जैसे राजनेताओं के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषणों के लिए एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। 26 फरवरी, 2020 को डॉ जस्टिस एस मुरलीधर की अगुवाई वाली पीठ ने कोर्ट में कपिल मिश्रा के भाषणों वाले वीडियो चलाए थे और दिल्ली पुलिस को एक दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करने पर निर्णय लेने को कहा था ।

    अगले दिन, दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट को बताया कि उसने एफआईआर दर्ज करना स्थगित करने का फैसला किया है क्योंकि सांप्रदायिक तनाव को देखते हुए स्थिति "अनुकूल" नहीं है। उसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई दो महीने के लिए स्थगित कर दी थी। लंबे समय तक स्थगन से व्यथित याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। चार मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट को "जितनी जल्दी हो सके" मामले को तय करने के लिए कहा था, यह देखते हुए कि "लंबे समय तक स्थगन उचित नहीं था"।

    एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सत्य मित्र के माध्यम से दायर वर्तमान याचिका में, याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि 17 सितंबर, 2020 को उनका मामला अंतिम बहस के लिए पोस्ट किया गया था। हालांकि, चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि जामिया मामले की सुनवाई के बाद दिल्ली दंगा मामले में इसे लिया जाएगा। उसके बाद मामला कई तारीखों पर स्थगित हो गया, और 23 अगस्त, 2021 के बाद मामले को सूचीबद्ध नहीं किया गया।

    मामला: मोहम्मद नाजिम और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य डब्ल्यूपी (सीआरएल।) नंबर 000448 - / 2021

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