भड़काऊ भाषणों पर याचिका, बेंच बदलते ही कैसे बदल गया कोर्ट का नजरिया
LiveLaw News Network
27 Feb 2020 6:54 PM IST
एसजी की जिन दलीलों को कल जस्टिस मुरलीधर ने खारिज़ कर दिया था, आज बेंच ने उन्हीं दलीलों को स्वीकार कर लिया।
दिल्ली हाईकोर्ट में दंगों के मामले मामले की बुधवार और गुरुवार की कार्यवाहियों के अंतर ने स्पष्ट कर दिया है कि कैसे अदालत में बेंच की संरचना किसी मामले के नतीजे को प्रभावित कर सकती है, दो अलग-अलग दृष्टिकोणों को भी जन्म दे सकती है।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की याचिका, जिसमें उन्होंने दिल्ली में हुए दंगों की स्वतंत्र जांच और नेताओं के घृणा फैलाने वाले भाषणों के आरोप के मामलों में एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, की सुनवाई बुधवार को जस्टिस डॉ एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की खंडपीठ ने की थी। गुरुवार को यही मामला चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने सुना।
आइए देखते हैं कि एक ही मामले पर दोनों पीठों की प्रतिक्रियाओं कितनी अलग-अलग थीं।
कल यानी बुधवार
बुधवार को सुनवाई की शुरुआत में जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा था कि मामले की तात्कालिकता को देखते हुए याचिका पर सुनवाई की जा रही है। उनकी टिप्पणी थी, " बाहर हालात बहुत बुरे हैं।"
सुनवाई के बीच में जब सॉलिसिटर जनरल ने स्थगन की मांग की, तब जस्टिस मुरलीधर ने जवाब दिया, "क्या दोषियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना अत्यावश्यक मामला नहीं है?" उन्होंने पूछा था, 'ऐसे वीडियो हैं, जिन्हें सैकड़ों लोग देख चुके हैं। क्या आपको अब भी लगता है कि यह एक अत्यावश्यक मामला नहीं है?'
जब कोर्ट में मौजूद पुलिस अधिकारी और एसजी ने दावा किया कि उन्होंने कथित भड़काऊ भाषणों वाले वीडियो नहीं देखे हैं तो उन्हें दिखाने के लिए कोर्ट में ही वीडियो चलाने की व्यवस्था की गई।
एसजी ने बाद में यह कहते हुए पीठ को आदेश देने से रोकने की कोशिश की कि एफआईआर दर्ज करने के लिए 'स्थिति अनुकूल नहीं है'। उन्होंने कहा, "हम उचित समय पर एफआईआर दर्ज करेंगे। फिलहाल स्थिति अनुकूल नहीं है।"
एसजी की दलीलों को जस्टिस मुरलीधर ने स्वीकार नहीं किया और कहा, "उचित समय क्या है, मिस्टर मेहता? शहर जल रहा है।" पीठ ने उसके बाद कथित भड़काऊ भाषणों के मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्णय लेने के लिए दिल्ली पुलिस को एक दिन का समय दिया।
जस्टिस मुरलीधर ने त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा था, "एफआईआर दर्ज करने में एक-एक दिन का विलंब महत्वपूर्ण है। जितनी देर आप करते हैं, उतनी ही अधिक समस्याएं पैदा होती हैं।",
आज यानी गुरुवार
इसी मामले पर आज यानी गुरुवार को चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने सुनवाई की। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि इस मामले को मूल रूप से चीफ जस्टिस पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष ही सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि कल वह छुट्टी पर थे, जिसके चलते जस्टिस मुरलीधर की पीठ ने इस पर विचार किया था।
जस्टिस मुरलीधर की बेंच ने कल जैसे तीव्रता दिखाई थी, आज की बेंच में वैसी तेजी नहीं दिखी। बेंच 'भाषणों' से भी अनजान लग रही थी। सॉलिसिटर जनरल ने आज जब अपनी दलील में 'भाषणों' का उल्लेख किया तो मुख्य न्यायाधीश पटेल ने पूछा- "कैसे भाषण?"
एसजी को तब स्पष्ट करते हुए कहा कि वह कथित घृणा फैलाने वाले भाषणों का जिक्र कर रहे हैं। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने के आदेश पर पुलिस के फैसले से बेंच को अवगत कराते हुए कल की ही दलील को दोहराया कि एफआईआर दर्ज करने के लिए 'स्थिति अनुकूल नहीं है'।
एसजी की जिन दलीलों को कल जस्टिस मुरलीधर ने खारिज़ कर दिया था, आज बेंच ने उन्हीं दलीलों को स्वीकार कर लिया।
एसजी ने कहा कि पुलिस ने सभी वीडियो देखे हैं और उचित कार्रवाई के लिए उसे अधिक समय की आवश्यकता है। फिलहाल स्थिति अनुकूल नहीं है। बेंच ने अपने आदेश में इस दलील को दर्ज किया और केंद्र सरकार को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दे दिया।
मामले पर अगली सुनवाई 13 अप्रैल को होगी।
एक ही मामले पर एक बेंच 24 घंटे के भीतर एफआईआर चाहती थी, जबकि दूसरी बेंच ने सहजता से उसी मामले में चार सप्ताह से अधिक का समय दे दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कोलिन गोन्सलेव्स के और करीब की तारीख की गुहार लगाई, उन्होंने कहा कि लोग हर दिन मर रहे हैं, हालांकि बेंच न उनकी अपील पर ध्यान नहीं दिया।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स के खिलाफ कथित पुलिस क्रूरताओं के मामले में कार्रवाई की मांग वाली एक याचिका इसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गई थी, तब इन्होंने इसे 4 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दिया था। 4 फरवरी को जब दुबार सुनवाई हुई तो पीठ ने मामला 29 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दिया।