न्यायिक अधिकारियों के लिए बनी नई पेंशन योजना के खिलाफ याचिका, दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस
LiveLaw News Network
3 Feb 2020 11:43 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की 'नई पेंशन योजना' को चुनौती देने वाली एक याचिका पर नोटिस जारी किया है। यह एक जनवरी, 2004 के बाद नियुक्त न्यायिक अधिकारियों पर लागू होती है।
जस्टिस एके चावला की सिंगल बेंच ने दिल्ली सरकार समेत केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर याचिका में उठाए गए सवालों का जवाब देने को कहा है। दिल्ली जूडीशल सर्विस असोसीएशन द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि उक्त योजना सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों को उल्लंघन करती है, क्योंकि योजना के तहत न्यायिक अधिकारियों को सिविल सर्वेंट के बराबर माना गया है।
याचिका में योजना में तय लाभों के पूर्वव्यापी उपयोग को भी चुनौती दी गई है।
वर्तमान में जो योजना चल रही है, उसके दिशानिर्देशों को ऑल इंडिया जजेज़ असोसीएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1989) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया था। उक्त योजना के तहत पेंशन के रूप में न्यायिक अधिकारियों को दिए गए अंतिम वेतन के न्यूनतम 50% की गारंटी दी जाती है।
हालांकि, नई पेंशन योजना के तहत पेंशन के लिए कर्मचारी के मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10% की अनिवार्य कटौती, और इसी के बराबर केंद्र सरकार द्वारा योगदान दिए जाने का प्रावधान है।
नई योजना के अनुसार, सेवानिवृत्ति के बाद, न्यायिक अधिकारी सेवानिवृत्ति पर अपनी कुल पेंशन की मात्र 60% राशि ही निकाल सकते हैं, और शेष 40% राशि अनिवार्य रूप से बीमा वार्षिकी योजना में जमा/ निवेश करना आवश्यक है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि दिल्ली सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना, न्यायिक अधिकारियों को देय वेतन और पेंशन की मात्रा को संशोधित करने की कोई शक्ति नहीं है।
याचिका में आगे कहा गया है कि ऑल इंडिया जजेज़ असोसिएशन यूनियन ऑफ इंडिया (1989) के मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार, न्यायिक अधिकारियों की सेवा की शर्तों को विशेष रूप से राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
याचिका में दलील दी गई है कि न्यायिक अधिकारियों के वेतन और पेंशन से संबंधित मामले, जस्टिस शेट्टी आयोग और जस्टिस पद्मनाभन समिति की सिफारिशों के आधार पर तय होंगे। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि 'दिल्ली सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बिना पेंशन योजना को संशोधित करने का कोई अधिकार नहीं है।'
अपने दावों के समर्थन में याचिकाकर्ताओं ने महाराष्ट्र और कर्नाटक के उदाहरणों का हवाला दिया है, जहां समान रूप से तैयार नई पेंशन योजनाओं को संबंधित राज्यों के न्यायिक अधिकारियों के लिए अनुपयुक्त माना गया था।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से कहा है कि वह न्यायिक अधिकारियों पर लागू होने वाली नई पेंशन योजना को रद्द कर दे, क्योंकि उक्त योजना के प्रावधान कथित रूप से जस्टिस शेट्टी आयोग की सिफारिशों, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।