दिल्ली की अदालत ने पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की जमानत अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखा; पुलिस से साक्ष्य मांगे कि 26 जनवरी की हिंसा से टूलकिट कैसे जुड़ा
LiveLaw News Network
20 Feb 2021 7:21 PM IST
दिल्ली की एक अदालत ने 22 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की ओर से दायर नियमित जमानत अर्जी पर शनिवार को आदेश सुरक्षित रख लिया। दिशा को दिल्ली पुलिस ने 13 फरवरी को बेंगलुरू स्थित उनके आवास से 'किसान विरोध टूलकिट' मामले में दर्ज केस में गिरफ्तार किया था। टूलकिट को अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने साझा किया था।
पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने 3 घंटे की सुनवाई के बाद मंगलवार (23 फरवरी) को जमानत अर्जी पर आदेश देने का फैसला किया है।
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने संक्षेप में बताया कि दिशा रवि, खालिस्तान समर्थक संगठन "सिख्स फॉर जस्टिस' और 'पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन'के संपर्क में थीं, और भारत किसानों के विरोध की आड़ में नफरत फैलाने के लिए एक टूलकिट तैयार की थी।
एएसजी ने कहा कि दिशा ने अपने चैट और दस्तावेजों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड डिलीट करने की कोशिश की, जो कि "प्रथम दृष्टया उनकी आपराधिक मानसिकता " का सुझाव देता है।
सुनवाई के दौरान, जज ने पूछा कि क्या 26 जनवरी की हिंसा से 'टूलकिट' को जोड़ने वाला कोई सबूत है। जज ने पूछा, "इस महिला के खिलाफ 26 जनवरी को हुई हिंसा के संबंध में आपके द्वारा जुटाए गए सबूत वास्तव में क्या हैं? क्या कोई सबूत है, या हमें केवल अनुमानों पर काम करना है?"
जज ने यह भी पूछा कि क्या किसी व्यक्ति के खिलाफ किसी अन्य व्यक्ति या संगठन के साथ जुड़ाव के आधार पर आरोप लगाया जा सकता है। एएसजी ने जवाब दिया कि साजिश ऐसी चीज नहीं है, जिसे "देखा या छुआ जा सके" और इसे परिस्थितियों से इकट्ठा किया जाना चाहिए।
एएसजी ने कहा, "साजिश यह नहीं है कि मैं किसी विशेष व्यक्ति को जानता था और उन्हें हिंसा करने के लिए कहा था, जबकि यह है कि मैंने एक दस्तावेज बनाया था, जिसे मैं जानता था और हिंसा भड़काने का इरादा रखता था। यह साजिश मन के मिलन में है।"
जज ने दलील के जवाब में पूछा, "क्या मुझे यह मानना चाहिए कि मामले में कोई सीधा लिंक नहीं है?", एएसजी ने जवाब दिया कि पुलिस अभी जांच कर रही है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि जब तक उनकी न्यायिक अंतरात्मा संतुष्ट नहीं हो जाती, तब तक उन्हें आगे न बढ़ने की "बुरी आदत" है।
"मुझे एक बुरी आदत है। मैं तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि मैं अपनी न्यायिक अंतरात्मा को संतुष्ट नहीं करता"।
दिशा रवि की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा, "मैं 22 साल की एक लड़की हूं, जो बेंगलुरु की रहने वाली है, एक स्नातक हूं, जिसका इतिहास, भूगोल, अतीत, वर्तमान या भविष्य, किसी का खालिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है।"
अग्रवाल ने कहा, "उन्होंने सिख फॉर जस्टिस और उनके बीच एक भी बातचीत पेश नहीं की है। वे यह भी नहीं कहते हैं कि सिख फॉर जस्टिस संगठन, पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन से जुड़ा है।"
Agarwal: There is no mark on a person's face saying that they are a secessionist. It's a very nice English word, conspiracy. I've learnt it from Mr. Raju himself, "jiska koi nahi hota, uska conspiracy hota hain."#DishaRavi#Toolkit
— Live Law (@LiveLawIndia) February 20, 2021
दिशा के वकील ने कहा, "एफआईआर में कहा गया है कि मैंने चाय और योग पर हमला किया है। क्या यह देशद्रोह का पैमाना है?"
अग्रवाल ने तर्क दिया कि दिशा केवल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का आयोजन कर रही थी और इसे धारा 124 ए आईपीसी के तहत राजद्रोह के अपराध के तहत नहीं लाया जा सकता है।
"अगर अपराध यह है कि मैंने शांतिपूर्वक विरोध किया, तो मैं दोषी हूं! यदि अपराध यह है कि मैंने इस शांतिपूर्ण विरोध के बारे में विज्ञापन दिया है, तो मैं दोषी हूं। यदि यह पैमाना है, तो मैं निश्चित रूप से दोषी हूं। मसलन, अगर योग है। और मुझे योग पर कुंग फू पसंद है। क्या मैं चीनी जासूस बन जाऊंगा? यह मैं नहीं कह रहा हूं। यह उनकी एफआईआर में है।
एफआईआर में उनका आरोप है कि मैंने चाय और योग पर हमला किया है। क्या यह देशद्रोह का पैमाना है? "
Agarwal: Their allegations in the FIR state that I have attacked chai and yoga. Is this the parameter for sedition?#DishaRavi#Toolkit
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टूलकिट भारत के खिलाफ कोई "असंतोष" पैदा नहीं करता है और इसे राजद्रोह नहीं माना जा सकता है।
अग्रवाल ने कहा "124A का परिणाम उच्चारण या संचार है। यदि यहां संचार टूलकिट का है, तो टूलकिट में कोई भी असंतोष नहीं है। न तो सामन्य पठन में, न ही एएसजी की आंखों के माध्यम से पठन में। उनका मामला यह है कि टूलकिट राजद्रोह नहीं है बल्कि ये लोग बुरे हैं।"
यह उल्लेख करते हुए कि धारा 124A में साधारण जुर्माने की सजा का प्रावधान भी है, अग्रवाल ने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मुझे इस आधार पर छोड़ दिया जाना चाहिए, लेकिन कृपया विचार करें कि अंत में एक संभावना हो कि मैं केवल एक जुर्माने के साथ छूट सकता हूं"।
अग्रवाल ने अभियोजन पक्ष की इस दलील पर भी हमला किया कि दिशा के पास और मोबाइल फोन या लैपटॉप हैं, यह पता लगाने के लिए उसकी हिरासत आवश्यक है।
"मैं बहुत आश्चर्यचकित हूं, वे कह रहे हैं कि और मोबाइल और लैपटॉप हो सकते हैं .. मेरी 5 दिनों की हिरासत में, मुझे बैंगलोर भी नहीं ले जाया गया, कोई छापा नहीं पड़ा। मेरा कहना है कि क्या वे सो रहे थे, जब मैं हिरासत में थी?"
यह बताते हुए कि सह-आरोपी एडवोकेट निकिता जैकब और शांतनु मुलुक को बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी है, अग्रवाल ने कहा कि जमानत पर रिहा होने पर उनके मुवक्किल भी पुलिस के समक्ष जांच के लिए उपस्थित होंगे।
अग्रवाल ने कहा, "मेरा उद्देश्य केवल स्वतंत्रता के अधिकार और जांच के अधिकार के बीच एक संतुलन की मांग है। संतुलन पहले दिन उनके पक्ष में था, लेकिन अब यह मेरे पक्ष में है।"
पृष्ठभूमि
अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने सोशल मीडिया पर किसान के विरोध से संबंधित एक "टूलकिट" साझा किया था, जिस पर दर्ज एक मामले में दिशा को दिल्ली पुलिस ने 13 फरवरी को बेंगलुरु स्थिति उनके निवास से गिरफ्तार किया।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले में सह-अभियुक्त एडवोकेट निकिता जैकब को तीन हफ्ते की ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी है।
दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने 4 फरवरी को किसानों के विरोध प्रदर्शनों के समन्वय के संबंध में साझा किए गए 'टूलकिट' पर अनाम व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। पुलिस ने कहा कि अज्ञात लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश, राजद्रोह और कई अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। मामले में रवि की पुलिस द्वारा की गई पहली गिरफ्तारी थी।
रवि ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है, जिसके बारे में मीडिया रिपोर्ट पर दुख जताया गया था।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति प्रथिबा एम सिंह की पीठ ने कहा कि मीडिया को सनसनीखेज रिपोर्टिंग से बचने के लिए संपादकीय विवेक का प्रयोग करना चाहिए। पीठ ने दिल्ली पुलिस को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि उसके हलफनामे में उसके द्वारा लिए गए स्टैंड के अनुपालन के अनुसार कोई भी मीडिया लीकेज ना हो।