आपराधिक मुकदमों में आरोप तय करने में देरी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता, देशभर में दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार
Praveen Mishra
29 Oct 2025 12:40 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आपराधिक मुकदमों में आरोप तय करने में हो रही अत्यधिक देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। यह देरी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 251(b) के तहत दिए गए स्पष्ट प्रावधान के बावजूद हो रही है, जिसके अनुसार जिन मामलों की सुनवाई केवल सत्र न्यायालय द्वारा की जानी है, उनमें पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए।
न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि आरोप तय करने में देरी आपराधिक कार्यवाहियों के ठहराव का प्रमुख कारण है। इसलिए, यह “संपूर्ण देश में एक समान दिशा-निर्देश जारी करने की आवश्यकता” महसूस करता है, ताकि वैधानिक प्रावधानों का पालन सुनिश्चित हो सके।
अदालत ने सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा को मामले में अमाइकस क्यूरी (न्यायालय मित्र) के रूप में सहायता करने का अनुरोध किया है, साथ ही बिहार राज्य के वकील को भी इसमें शामिल किया गया है। साथ ही, अदालत ने भारत के अटॉर्नी जनरल से भी सहायता मांगी है क्योंकि वह पूरे देश के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर रही है ताकि इस प्रणालीगत देरी को दूर किया जा सके।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की खंडपीठ एक आपराधिक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप तय न किए जाने का मुद्दा उठाया, जबकि आरोपी दो साल से हिरासत में था। इस पर न्यायमूर्ति कुमार ने पूछा,
“आरोप तय करने में वर्षों क्यों लगते हैं? दीवानी मामलों में मुद्दे तय नहीं होते और आपराधिक मामलों में आरोप तय नहीं होते। हम जानना चाहते हैं कि कठिनाई क्या है, वरना हम पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी करेंगे। हम ऐसा करने का इरादा रखते हैं।”
बिहार राज्य के वकील ने भी यह सुझाव दिया कि दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है, क्योंकि अक्सर आरोपपत्र दाखिल होने और आरोप तय होने के बीच काफी अंतर होता है। वहीं महाराष्ट्र राज्य के वकील ने जस्टिस संजय करोल की पीठ के एक आदेश का उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया था कि महाराष्ट्र में 649 मामलों में आरोप तय नहीं किए गए हैं, जो “चिंताजनक स्थिति” है। इस पर न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि अदालत जिला अदालतों से रिपोर्ट का इंतजार नहीं करेगी बल्कि सीधे संपूर्ण भारत के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगी।
अदालत ने अपने आदेश में कहा:
“याचिकाकर्ता, जिस पर BNSS की धाराएँ 309(5), 109(1), 103, 105 और शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत आरोप हैं, नियमित जमानत की मांग कर रहा है। उसका कहना है कि वह निर्दोष है और झूठा फंसाया गया है। वह 10 अगस्त 2024 से न्यायिक हिरासत में है और अब तक लगभग 11 महीने 26 दिन बीत चुके हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने जोर देकर कहा कि यद्यपि आरोपपत्र दाखिल हो चुका है और सभी आरोपी जेल में हैं, फिर भी बिना किसी उचित कारण के अब तक आरोप तय नहीं किए गए हैं।
धारा 251 BNSS का अवलोकन करने पर स्पष्ट है कि यदि मामला केवल सत्र न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय होने चाहिए। हमने देखा है कि आरोपपत्र दाखिल होने के महीनों और वर्षों बाद भी आरोप तय नहीं किए जाते। यही कारण है कि मुकदमों में देरी होती है। जब तक आरोप तय नहीं होंगे, मुकदमे की शुरुआत नहीं हो सकती। यह स्थिति अधिकांश अदालतों में पाई जा रही है, इसलिए हम यह मानते हैं कि इस संबंध में पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए।”
“हम सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा से न्यायालय की सहायता करने का अनुरोध करते हैं और बिहार राज्य के वकील को भी शामिल करते हैं। हम याचिकाकर्ता के वकील को यह भी अनुमति देते हैं कि वह याचिका और यह आदेश भारत के अटॉर्नी जनरल को उपलब्ध कराएं, क्योंकि हम पूरे देश की अदालतों के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का प्रस्ताव रखते हैं। मामला दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाए।”

