'द वायर' के खिलाफ मानहानि का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने जेएनयू से यह सत्यापित करने को कहा कि क्या प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय को 'संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा' बताने वाला डोजियर सौंपा था?

Avanish Pathak

3 July 2023 4:39 PM IST

  • द वायर के खिलाफ मानहानि का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने जेएनयू से यह सत्यापित करने को कहा कि क्या प्रोफेसर ने विश्वविद्यालय को संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा बताने वाला डोजियर सौंपा था?

    Supreme Court

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश, जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर अमिता सिंह की ओर से दायर आपराधिक मानहानि मामले में द वायर के संपादक और उप संपादक के खिलाफ 2017 में एक ट्रायल कोर्ट की ओर से जारी समन आदेश को रद्द कर दिया था, के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया।

    सिंह ने 2016 में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने अप्रैल 2016 में वायर के उप संपादक अजॉय आशीर्वाद महाप्रस्थ द्वारा लिखे गए एक लेख का उल्लेख किया था, जिसका शीर्षक था "डोजियर कॉल जेएनयू "डेन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड सेक्स रैकेट"; स्टूडेंट्स, प्रोफेसर्स एलेजेट हेट कैंपेन”।

    सिंह ने दावा किया था कि लेख में आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक डोजियर तैयार किया था, जिसमें कथित तौर पर जेएनयू को "संगठित सेक्स रैकेट के अड्डे" के रूप में दिखाया गया था। शिकायत में आरोप लगाया गया कि संपादक ने डोजियर की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की और सिंह की प्रतिष्ठा का हनन करते हुए इसका इस्तेमाल अपनी पत्रिका के मौद्रिक लाभ के लिए किया।

    2017 में दिल्ली मेट्रोपॉलिटन अदालत ने वायर के संपादक सिद्धार्थ भाटिया और उप संपादक अजॉय आशीर्वाद के खिलाफ समन आदेश पारित किया था। मार्च 2023 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने समन आदेश को रद्द कर दिया, जिसके बाद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सीमित पहलू की कि क्या डोजियर सबमिट किया गया था और यदि किया गया था तो इसका क्या प्रभाव और किसने सबमिट किया था, की जांच करने के लिए जेएनयू को नोटिस भी जारी किया।

    कोर्ट ने कहा,

    “हम यह सत्यापित करने के लिए कुलपति के माध्यम से जेएनयू को भी जोड़ना चाहेंगे कि क्या विश्वविद्यालय को कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया गया था और यदि हां तो किस प्रभाव से और किसके द्वारा। उपरोक्त पहलू तक ही सीमित होकर जेएनयू को भी नोटिस जारी किया जाए।''

    सिंह ने स्वयं डोजियर प्रस्तुत किया था या नहीं, इस बारे में अस्पष्टता के कारण विश्वविद्यालय को नोटिस जारी किया गया। इस संबंध में जस्टिस कौल ने कहा, "क्या आपने डोजियर जमा किया?.. मानहानि तब होगी जब आपके द्वारा कुछ जमा नहीं किया गया है और इसका श्रेय आपको दे दिया गया है।"

    सिंह के वकील ने शुरू में सकारात्मक दलील दी, लेकिन बाद में स्पष्ट किया कि सिंह ने डोजियर जमा नहीं किया है। उन्होंने तर्क दिया कि, इसके विपरीत, वह डोजियर की सामग्री का खंडन करती है। उन्होंने कहा, 'डॉजियर को सत्यापित किए बिना वे इसे अखबार में प्रकाशित कर रहे हैं।'

    जस्टिस कौल ने टिप्पणी की, "हमारे सामने आपकी प्रस्तुति भ्रम पैदा कर रही है"।

    जज ने दोहराया, "क्या आपने डोजियर जमा किया है या नहीं किया है।"

    वकील ने जवाब दिया, “मेरा बयान दर्ज किया जा सकता है। मैं डोजियर के बारे में कुछ नहीं जानता।”

    दिल्ली हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश, जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने आपराधिक शिकायत पर ध्यान दिया था और राय दी थी कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे सिंह के खिलाफ मानहानिकारक माना जा सके।

    हाईकोर्ट ने कहा था कि शिकायत में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे लगे कि लेख सिंह के खिलाफ कुछ भी कहता है, मानहानिकारक तो बिल्कुल भी नहीं।

    [केस टाइटल: अमिता सिंह बनाम द वायर, संपादक सिद्धार्थ भाटिया और अन्य के माध्यम से। एसएलपी (सीआरएल) नंबर 6146/2023]

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